फिलाडेल्फिया, 17 नवम्बर (हि.स.)। अब ह्रदय रोगियों को व्यायाम के दौरान दिल में पीड़ा होने पर सटेंट डलवाने की जरूरत नहीं है। यह दावा एक नई स्टडी रिपोर्ट में किया गया है। इसमें कहा गया है कि दवाओं और बेहतर जीवन शैली से इसकी जरूरत को खत्म किया जा सकता है।
यह रिपोर्ट अमेरिकिन हार्ट एसोसिएशन की वार्षिक बैठक में यहां प्रस्तुत की गई। इसमें कहा गया है कि अब चिकित्सक और मरीज को यह सोचने-समझाने की जरूरत नहीं है कि उसके लिए कौन सा उपचार सही होगा। बेयलर कालेज मेडिसिन के प्रोफेसर और ह्यूस्टन में ह्रदय रोग सेंटर के निदेशक डाक्टर गलें लेवीन ने कहा है कि ऐसी स्थिति में मरीज से पूछा जाएगा तो वह किसी शल्य प्रक्रिया की जगह मेडिसिन का विकल्प चुने।
यह स्टडी ‘इसेचिमक’ ह्रदय रोगियों पर फोकस है । इसका अभिप्राय है कि ‘प्लेक’ अथवा थक्का ह्रदय की धमनियों में जमा हो जाता है जो ह्रदय की धमनियों से प्रवाहित होने वाले रक्त में बाधक होता है। इससे धमनियों में रक्त प्रवाह का मार्ग संकुचित हो जाता है और रक्त को प्रवाहित किए जाने में ब्लड पम्प को अतिरिक्त दबाव झेलना पड़ता है। इसे यूं कहना उचित होगा कि इससे ह्रदय में पीड़ा होती है। इसे एंजाइना भी कहते हैं। यह स्थिति उस समय होती है जब ह्रदय रोगी कसरत करता है अथवा किसी भावनात्मक स्थिति से गुजरता है। महप विश्राम करने से यह पीड़ा स्वत: लुप्त हो जाती है। ह्रदय चिकित्सक इसे ‘स्टेबल एंजाइना’ का नाम देते हैं।
अमेरिकिन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार अमेरिका में प्रति वर्ष 23 लाख मरीज ह्रदय रोग केंद्रों में आते हैं। ऐसे रोगियों की जांच के दौरान ट्रेड मिल अथवा स्थिर बाइसिकल पर जांच की जाती है और उनकी ह्रदय धमनियों की सिकुड़न पर नजर रखी जाती है। ऐसे में मरीजों को कोलोस्ट्रोल कम करने अथवा एस्परीन की दवा लेने का आग्रह किया जाता है। कुछ ऐसे भी मरीज होते हैं, जिनकी धमनियों को चौड़ा करने के लिए बाईपास शल्य क्रिया करनी पड़ती है।
इस स्टडी में सहायक न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ. जूडिथ होचमैन और उनकी टीम ने 37 देशों के 5171 ह्रदय रोगियों को एस्प्रीन और एलडीएल कोलोस्ट्रोल को कम करने की दी। उन्हें वजन कम करने और धूम्रपान से दूर रहने की भी सलाह दी गई। इसी तरह इन मरीजों में से आधे मरीजों को स्टेंट अथवा बाईपास सर्जरी की सलाह दी गई। इसके चार साल बाद स्टडी में देखा गया कि हार्ट अटैक से मृत्यु अथवा ऐसी किसी अनहोनी घटनाओं में दोनों में परिणाम करीब-करीब एक जैसे रहे। इसके बावजूद स्टडी में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि जिन मरीजों ने बाईपास सर्जरी करवाई थी, उन्हें इन चार सालों में अपेक्षाकृत कम ह्रदय पीड़ा हुई। बोस्टन के ब्रिगम महिला अस्पताल में ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ. इलियट एंटमैन ने भी जोर दिया है कि शल्य क्रिया की तुलना में कंजर्वेटिव उपचार पर जोर दिया जाए, तो बेहतर होगा।