काठमांडू/नई दिल्ली, 31 मई (हि.स.)। नेपाल सरकार ने रविवार को संसद के निचले सदन में नया विवादास्पद राजनीतिक मानचित्र संबंधी विधेयक संसद में पेश किया जिसमें काला पानी सहित कुछ भारतीय भूभाग को नेपाल का हिस्सा बताया गया।
विधेयक को नेपाल की कानून, न्याय और संसदीय मामलों के मंत्री शिव माया तुम्बाहम्फे ने पेश किया। संविधान यह दूसरा संशोधन विधेयक अनुच्छेद 3 में बदलाव करेगा तथा गत 20 मई को जारी किए गए राजनीतिक मानचित्र वर्तमान मानचित्र के स्थान पर संविधानिक दर्जा हासिल कर लेगा। नेपाल ने कथित ऐतिहासिक दस्तावेजों और द्विपक्षीय समझौतों का हवाला देते हुए भारत के 336 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर दावा किया है। नेपाल ने नए मानचित्र में काली नदी के पूर्व के लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी क्षेत्र को अपने भू-भाग के रुप में दर्शाया है। यह भू-भाग उत्तराखंड के पिथौड़ागढ़ जिले में आता है।
उल्लेखनीय है कि नए मानचित्र संबंधी संशोधन विधेयक को बुधवार को सूचीबद्ध किया गया था लेकिन विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सहमति न बनने के कारण इसे टाल दिया गया था। भारत ने विधेयक को टाले जाने प्रकारंतर से स्वागत किया था। विदेश मंत्रालय ने एक वक्तव्य में कहा था कि यह अच्छी बात है कि नेपाल में इस मुद्दे की गंभीरता को समझा जा रहा है तथा इसपर मंथन जारी है। अब विधेयक पेश किये जाने के बाद भारत की ओर से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई है।
नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस से समर्थन मिलने का बाद यह विधेयक संसद में पेश किया गया है। विधेयक को पारित करने के लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए और इस पूरी प्रक्रिया में करीब एक सप्ताह का समय लगेगा। इस संबंध में नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली पहले ही कह चुके हैं कि भारत को कालापानी और लिपुलेख से अपनी सेना हटा लेनी चाहिए और वहां यथा स्थिति बनाए रखनी चाहिए। भारत इसे बड़ा विवाद न बनाते हुए नेपाल के शीर्ष नेतृत्व के साथ संपर्क बनाए हुए है।
नेपाल और ब्रिटिश भारत के बीच साल 1816 में दो साल के युद्ध के बाद सुगौली संधि हुई थी। इसमें सीमा संबंधी प्रावधान थे। इसके तहत काली नदी के पश्चिम का क्षेत्र भारत का होगा और पूर्व का क्षेत्र नेपाल का होगा। हालांकि काली नदी के किस उदगम स्थल को सीमा माना जाएगा इसको लेकर कोई आम राय नहीं है। दोनों देशों ने इस क्षेत्र पर करीब 150 सालों तक अपना दावा नहीं किया है। यह क्षेत्र भारत के अंतर्गत ही रहा है। हालांकि साल 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के समय स्थिति में एक बड़ा बदलाव आया। उस समय एक रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण और ऊंचाई वाला स्थान होने के चलते भारतीय सेना ने कालापानी में अपनी चौकी तैयार की। उसी समय से नेपाल और भारत के बीच इस क्षेत्र को लेकर विवाद शुरू हुआ।
हाल के दिनों में यह विवाद फिर उभकर तब सामने आया जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 को हटाया। राज्य के पुनर्गठन के बाद बाद एक नया मानचित्र जारी किया गया। इस मानचित्र में कालापानी सहित इन भू-भागों को भारत ने पहले की ही तरह अपने हिस्से के तौर पर दिखाया। इसके बाद नेपाल ने अपना विरोध जताना शुरू कर दिया। कुछ दिनों पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस क्षेत्र से होकर जाने वाले कैलाश मानसरोवर जाने वाले मार्ग का उदघाटन किया था। इस पर नेपाल ने कड़ी आपत्ति जाहिर की थी। इसके बाद नेपाल ने अपना नया आधिकारिक मानचित्र जारी किया जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को उसने अपना बताया।