हमीरपुर : बदहाली से नहीं उबरा सिटी फॉरेस्ट, अराजकतत्वों ने डेरा जमाया

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कई करोड़ रुपये का बजट फॉरेस्ट और वन चेतना केन्द्र की सूरत संवारने में अब तक खर्च हो गया होगा। मगर देखरेख के अभाव में यह स्थान अराजकतत्वों के अड्डे बन गए हैं।



हमीरपुर, 14 जुलाई (हि.स.)। हमीरपुर  में बदहाल वन चेतना केन्द्र को फिर से संवारने केे लिए अब तक कागजों में दौड़ाई गयी कार्ययोजना जमीन पर उतरने के बजाय फाइलों में ही दफन हो गयी। उम्मीद की गयी थी कि वन चेतना केन्द्र आम लोगों की चहल-पहल से गुलजार होगा मगर यहां तो सब कुछ उजड़ा हुआ है। हालत यह है कि यह वन चेतना केन्द्र  अराजकतत्वों का अड्डा बन गया है जहां हर रोज जुआं के फड़ में हारजीत के दांव लगते देखे और सुने जा सकते है।
गौरतलब है कि हमीरपुर जिला मुख्यालय से कोई चार किमी दूर कालपी मार्ग पर स्थित बदनपुर गांव के दो हेक्टेयर क्षेत्रफल के जंगल में वर्ष 1985 में तत्कालीन वन मन्त्री जगदम्बिका पाल ने यहां आकर वन चेतना केन्द्र का शिलान्यास किया था। लाखों की लागत खर्च कर वन चेतना केन्द्र को काफी संवारा गया था। कुछ साल यहाँ के लोग वन चेतना केन्द्र की सैर करने जाते थे। जहां बच्चों के लिये चिल्ड्रेन पार्क व झूले लगे थे जबकि घडिय़ाल भी टैंक में पाले गये थे मगर देखरेख के अभाव में वन चेतना केन्द्र बदहाली के भंवर में ऐसा फंसा कि आज तक यह उबर नहीं पा रहा है। लाखों की लागत से चिल्ड्रेन पार्क व झूलों का अस्तित्व अब पूरी तरह से खत्म हो गया जबकि घडिय़ाल टैंक भी जर्जर हो गये। हालत यह है कि पिछले दो दशक से कोई भी आदमी वन चेतना केन्द्र नहीं जा रहा है। और तो और उपेक्षा और धनाभाव के कारण वन चेतना केन्द्र की हरियाली भी न के बराबर रह गयी है।
यही हाल सिटी फॉरेस्ट का है। जहां शहर के लोग भी इसे देखने नहीं जाते। सिटी फॉरेस्ट व वन चेतना केन्द्र में अराजकतत्व घूमते रहते हैं। प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव वन चंचल तिवारी हमीरपुर आये थे तब उन्होंने वन विभाग के आला अधिकारियों के साथ वन चेतना केन्द्र व सिटी फॉरेस्ट का स्थलीय निरीक्षण किया था।
प्रमुख सचिव ने बदहाल वन चेतना केन्द्र को देख अफसरों पर कड़ी नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी ललित कुमार गिरि को वन चेतना केन्द्र की सूरत संवारने के लिये कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिये थे। उन्होंने कार्ययोजना को हरी झण्डी देकर धन दिलाने का भरोसा भी दिया था लेकिन आज तक न तो कार्ययोजना जमीन पर आयी और न ही वन चेतना केन्द्र की कायाकल्प हो सकी।
बताते चले कि तत्कालीन डी.एफ.ओ. ने दस लाख की कार्ययोजना तैयार कर इसकी मंजूरी के लिए परियोजना निदेशक ग्राम्य विकास अभिकरण के यहां भेजी थी जिसमें वन चेतना केन्द्र में ओवलसेफ फव्वारा की सफाई, नोजल लाइट सहित अन्य उपकरणों की मरम्मत कराने के लिये तीस हजार रुपये की मांग की गई थी जबकि क्षतिग्रस्त विद्युत लाइन को हटाकर नयी लाइन का विस्तार कराने के लिए पचहत्तर हजार रुपये खर्च करने का प्रावधान रखा गया था। वन चेतना केन्द्र में सिंचाई के लिये पाइप लाइन बिछाने व मोटर पम्प की मरम्मत कराने में साठ हजार तथा पार्क के अन्दर दो लान बनाकर घास उगाने तथा मौसमी फूल और पौधे तैयार करने के लिये पचास हजार रुपये कार्ययोजना में माँगे गये थे। इसी तरह से चिल्ड्रेन पार्क में सोडियम लाइन लगाने में पचास हजार, वन चेतना केन्द्र में स्ट्रीट, सोडियम व ट्यूबलाइट लगाने में पचास हजार, खाली स्थान पर शोभाकार पौधे लगाने में चालीस हजार, झूलों की मरम्मत में पचास हजार, दो शौचालयों के निर्माण में पचास हजार, घेरबाड़ लगाने में दस हजार तथा घडिय़ाल टैंक की मरम्मत में पचास हजार की धनराशि खर्च करने का प्रावधान किया गया था।
इसके अलावा क्यारी, पैदल पाथवें बनाने तथा अन्य कार्यों के लिये भी लाखों रुपये मांगे गये थे लेकिन यहाँ वन चेतना केन्द्र को संवारने की कार्ययोजना ही फाइलों में दफन हो गयी। इसी तरह से कई करोड़ की खुराक ले चुका सिटी फारेस्ट भी काफी अर्से से बदहाली के दौर से गुजर रहा है। इस फारेस्ट में न तो बच्चों के लिये कोई जीव जन्तु है और न ही सुन्दर पक्षी है। और तो और बच्चों के मनोरंजक झूले व अन्य सामान भी कबाड़ हो चुके है। सिटी फारेस्ट में कभी मर्करी और सोडियम लाइटें तथा फब्बारा होते थे जो मौजूदा में कहीं भी नहीं दिखायी देते। हमीरपुर नगर की जनता भी शहर के सिटी फारेस्ट और वन चेतना केन्द्र की दुर्दशा को देख खासे क्षुब्ध है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई करोड़ रुपये का बजट फॉरेस्ट और वन चेतना केन्द्र की सूरत संवारने में अब तक खर्च हो गया होगा। मगर देखरेख के अभाव में यह स्थान अराजकतत्वों के अड्डे बन गए हैं। आये दिन सिटी फॉरेस्ट में जुआडिय़ों की पौ बारह रहती है जबकि मनचले लोगों के लिये भी यह सुरक्षित स्थान बन गया है। जहां न तो जल्दी कोई पुलिस कर्मी फॉरेस्ट जाता है और न ही सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों की नजर पड़ती है।

 


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