एनसीवीटीसी-एनआरसीई के वैज्ञानिकों ने कोरोना को मात देने की खोजी दवा

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महीनों के अनुसंधान से निकला बेहतरीन परिणाम, एमेटिन दवा को पाया कारगर  



नई दिल्ली, 17 दिसम्बर (हि.स.)। जब पूरी दुनिया खतरनाक कोरोना वायरस (कोविड-19) के कहर से जूझ रही थी तो नेशनल सेंटर फॉर वेटरनरी टाइप कल्चर (एनसीवीटीसी) एवं राष्ट्रीय अश्व अनुसन्धान केंद्र (एनआरसीई),हिसार-हरियाणा के वैज्ञानिक इस महामारी को मात देने के लिए अनुसंधान में जुटे हुए थे, ताकि इस खतरनाक वायरस को हराने की दवा खोजी जा सके। अंतत: नौ महीने के अथक परिश्रम और अनुसंधान के उपरांत इन वैज्ञानिकों ने अमीबियासिस रोग में काम आने वाली दवा एमेटिन को कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए कारगर पाया।

एनसीवीटीसी के प्रधान वैज्ञानिक डा. नवीन ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से बातचीत में बताया कि कोरोना वायरस (कोविड-19) के अनुसंधान के दौरान विभिन्न एंटीवायरल दवाओं के परीक्षण में यह पाया गया कि एमेटिन दवा कोरोना वायरस के खिलाफ बहुत असरकारक और मारक है। यह दवा इस खतरनाक वायरस को नष्ट कर देती है। यह एमेटिन दवा पहले से ही अमीबियासिस (परजीवी) रोग में काम आती रही है और इसका मानव शरीर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए एमेटिन कोरोना संक्रमित रोगियों के उपचार में बेहतरीन साबित होगी।

100 से अधिक केमिकल इन्हिबिटर्स का है संग्रहण-
एनसीवीटीसी हिसार (हरियाणा) के वैज्ञानिक लंबे समय से एंटीवायरल दवा विकसित करने की प्रक्रिया में हैं। इसके लिए उनके पास 100 से अधिक केमिकल इन्हिबिटर्स का एक अनूठा संग्रहण (लाइब्रेरी) है जो सेल्यूलर काइनेज, फॉस्फेटेज और एपीजेनेटिक संशोधकों को टारगेट (लक्षित) करते हैं। इन इन्हिबिटर्स को इस्तेमाल करते हुए वैज्ञानिकों ने हाल के दिनों में विभिन्न प्रकार के वायरस के खिलाफ कई एंटीवायरल दवाओं की पहचान की है। कोविड-19 की शुरुआत होते ही एनसीवीटीसी,हिसार के वैज्ञानिकों ने तेजी से अपने इन्हिबिटर्स का सारस कोरोना वायरस 2 (कोविड-19) के खिलाफ परीक्षण किया।

क्या है केमिकल इन्हिबिटर्स लाइब्रेरी-
एक मानव कोशिका में 518 प्रकार के काइनेज एन्जाइम पाए जाते हैं। कैंसर पर अनुसंधान के दौरान इनमें से अधिकतर काइनेज एन्ज़ाइम के खिलाफ केमिकल इन्हिबिटर्स तैयार किए गए हैं। कैंसर एवं अन्य बीमारियों के अलावा इन एन्जाइम की वायरस के संक्रमण में भी बहुत अहम भूमिका होती है। इनमें से कुछ एन्जाइम वायरस के जीवन चक्र के लिए तो अत्यंत आवश्यक होते हैं लेकिन कोशिका के पास अपना जीवन चलाने के लिए उसके अन्य विकल्प भी मौजूद होते हैं। वैज्ञानिक इन्हीं काइनेज एन्ज़ाइम को टारगेट कर एंटीवायरल दवा बनाने की प्रक्रिया में जुटे हैं।

एनसीवीटीसी में वैज्ञानिकों के पास स्थित लाइब्रेरी में अधिकांश इन्हिबिटर्स काइनेज एन्जाइम को टारगेट (लक्षित) करने वाले हैं। इसके अलावा कुछ फॉस्फेटेज और एपीजेनेटिक संशोधकों को टारगेट करने वाले इन्हिबिटर्स भी लाइब्रेरी में मौजूद हैं जो सीधे वायरस की प्रोटीन को टारगेट करने की बजाय इन सेल्यूलर एन्जाइम को टारगेट कर दवा बनाने (जिसे होस्ट-डिरेक्टेड एंटीवायरल थेरेपी भी कहा जाता है) से यह फायदा होता है कि वायरस उस दवा के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं कर पाता है।

उल्लेखनीय है कि काइनेज, फॉस्फेटेज और एपीजेनेटिक एंजाइम सेल्यूलर मेटाबोलिज्म को बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं। मेटाबॉलिज्म (चयापचय) एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मानव शरीर भोजन को ऊर्जा में बदलता है। यह ऊर्जा मानव शरीर द्वारा रोजाना के कार्यों में खर्च की जाती है। मानव शरीर का बेसन मेटाबॉलिक रेट शरीर के बाद ही कार्यों को बनाए रखने में मदद करता है,यह एक दर है जो कि शरीर के चयापचय क्रिया का निर्धारण करती है।

अनुसंधान में कोविड वायरस के स्तर को 10,000 गुना कम करते हुए पाया गया –
प्रारंभिक अध्ययन और अनुसंधान में एमेटिन को वीरो कोशिकाओं में कोरोना वायरस 2 (कोविड-19) के स्तर (टाइटर) को लगभग 10,000 गुना कम करते हुए पाया गया। इन उत्साहजनक परिणामों के आधार पर वैज्ञानिकों ने इन्फेक्शस ब्रोंकाइटिस वायरस (आईबीवी,जिसे चिकन कोरोना वायरस के रूप में भी जाना जाता है) के खिलाफ एमेटिन की एंटीवायरल क्षमता का परीक्षण किया, जहां एमेटिन ने आईबीवी के खिलाफ मुर्गी के भ्रूणों को बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के सम्पूर्ण सुरक्षा प्रदान की एवं भ्रूणों का विकास सामान्य बनाये रखा। यह खोज बायोरेक्सिव (प्री प्रिंटरिपॉजिटरी) में प्रकाशित भी की गयी है। यह एमेटिन दवा एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) द्वारा स्वीकृत दवा है, जिसका उपयोग लम्बे समय से अमीबियासिस (एक परजीवी रोग) के इलाज के लिए किया जाता है। एमेटिन व्यावसायिक रूप से टैबलेट और इंजेक्शन दोनों रूपों में उपलब्ध है।

कोविड-19 के प्रोटीन का संश्लेषण रोक देती है एमेटिन-
वैज्ञानिक ने अपने अथक प्रयास से यह पता लगाया कि एमेटिन दवा संक्रमित मानव कोशिकाओं के अंदर वायरस (कोविड-19) के प्रोटीन का संश्लेषण रोक देती है। एमेटिन कोशिकाओं में उपस्थित एक विशेष प्रोटीन इआईऍफ़4ई और वायरस के आरएनए का संपर्क (जो प्रोटीन संश्लेषण के लिए अत्यंत आवश्यक है) नहीं होने देती है। फलस्वरूप वायरस की प्रोटीन का संश्लेषण और तत्पश्चात इसकी जीवन प्रक्रिया रुक जाती है और कोशिकाएं वायरस के दुष्प्रभाव से बच जाती हैं।

एंटीवायरल क्षमता पर प्रकाशित हो चुका है डॉ. नवीन का शोध –
एनसीवीटीसी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. नवीन का एमेटिन दवा की एंटीवायरल क्षमता के बारे में वर्ष 2017 में ‘एंटी वायरल रिसर्च’ नाम की शोध पत्रिका में एक शोधपत्र प्रकाशित हो चुका है। इसमें डॉ.नवीन और उनकी टीम ने कुछ आरएनए के साथ-साथ डीएनए वायरस के खिलाफ एमेटिन की एंटीवायरल क्षमता के बारे में अध्ययन किया था।

अमेरिका में फ्लू की दवा पर डॉ. नवीन कर चुके हैं रिसर्च –
एनसीवीटीसी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. नवीन एनसीवीटीसी में अपनी सेवाएं शुरू करने से पूर्व अमेरिका के एमोरी यूनिवर्सिटी में 5 साल तक फ्लू की दवा बनाने पर रिसर्च कर चुके हैं। एनसीवीटीसी हिसार के कोर रिसर्च ग्रुप के अन्य सदस्यों डॉ. नवीन के अलावा डॉ.संजय बरुआ (प्रधान वैज्ञानिक), बी आर गुलाटी (प्रधान वैज्ञानिक), डॉ.टी.रियाश (वैज्ञानिक) एवं रिसर्च फेलो नितिन खंडेलवाल, रामकुमार और योगेश चंद्र भी शामिल थे।

एसईआरबी (डीएसटी) एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, दिल्ली से हुई फंडिंग –
जून 2020 में डॉ. नवीन को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार से कोरोना वायरस पर रिसर्च करने के लिए अनुदान मिला था। कोरोना वायरस की एंटीवायरल दवा खोजने को लेकर भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद दिल्ली के अंतर्गत पशु विज्ञान प्रभाग के उपनिदेशक वैज्ञानिक डॉ.बी.एन. त्रिपाठी ने एनसीवीटीसी के एंटी वायरल ड्रग डिस्कवरी कार्यक्रम में बहुत दिलचस्पी दिखाई। वैज्ञानिक डॉ. त्रिपाठी ने इसके लिए संस्थान को आवश्यक फंडिंग की व्यवस्था कराने के साथ ही अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं को विकसित करने में भी बहुत मदद की। उनका कहना है कि इस दवा को बनाने वाली भारतीय कंपनियों द्वारा व्यापक क्लिनिकल ट्रायल्स किया जाना चाहिए। ताकि इसका लाभ जल्द से जल्द कोरोना वायरस के रोगियों को मिल सके। उन्होंने कहा एनसीवीटीसी-एनआरसीई के वैज्ञानिकों का यह अनुसंधान इस खतरनाक बीमारी को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाएगा।

यही नहीं संस्थान के निदेशक डॉ. यशपाल के दूरदर्शी और सशक्त नेतृत्व में संस्थान के वैज्ञानिक संक्रामक रोग और एंटीवायरल दवाओं पर अत्याधुनिक अनुसंधान करने की दिशा में निरंतर अग्रसर हैं। आईसीएआर के पशु-विज्ञान से सम्बिधित संस्थानों का संपूर्ण शोध कार्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के महासचिव डॉ.टी.महापात्र के नेतृत्व में हो रहा है। उनकी सकारात्मक सोच-पहल और सक्रियता के कारण कई आईसीएआर संस्थान कोविड-19 नमूनों के परीक्षण में जुटे हुए हैं और कोरोना वायरस के अन्य पहलुओं पर काम कर रहे हैं।

आईसीएआर की चार अन्य प्रयोगशालाएं भी कर रही हैं रिसर्च –  
हिसार की एनसीवीटीसी एवं एनआरसीई प्रयोगशाला के अलावा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों की चार अन्य प्रयोगशालाएं, अर्थात्निहसाद, भोपाल, आईवीआरआई, इज्जतनगर, मुक्तेश्वरपरिसर और आईसी-एफएमडी भुवनेश्वर कोविड-19 के नमूनों का परीक्षण कर रही हैं।

 


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