नवरात्रि : शुद्धता, साहस और सृजन जैसे दिव्य तपों का पावन पर्व
देवी माँ वह दिव्य ऊर्जा हैं जिन्होंने सम्पूर्ण ब्रह्मांड को जन्म दिया है। नवरात्रि शुद्धता, साहस और सृजन जैसे दिव्य तपों का पावन पर्व है। शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिवस शक्ति स्वरूपा माँ शैलपुत्री की वंदना को समर्पित है, जो साहस, धैर्य और स्थिरता का प्रतीक हैं। माँ शैलपुत्री को नवदुर्गा की प्रथम स्वरूपा माना जाता है, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें “शैलपुत्री” कहा जाता है। ये नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाती हैं और इनकी आराधना से साधक को सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
माँ शैलपुत्री के सिर पर चंद्रमा का मुकुट होता है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का फूल होता है। वे बैल (वृषभ) पर सवारी करती हैं, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माँ शैलपुत्री पिछले जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं, जो भगवान शिव की पत्नी बनी थीं। दक्ष यज्ञ में जब सती ने अपने जीवन का बलिदान दिया, तब अगले जन्म में वे शैलपुत्री के रूप में जन्मी। माँ शैलपुत्री जी की पूजा में पीले रंग का विशेष महत्व होता है। भक्त माँ शैलपुत्री की आराधना करते हुए अपने जीवन में स्थिरता, शक्ति और दृढ़ संकल्प की प्राप्ति की कामना करते हैं।
पवित्र मन से माता रानी की आराधना मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड के मानव जाति का कल्याण निहित होता है। माता रानी आप सभी के शुभ संकल्पों को पूर्ण होने का आशीष दें और आप सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करे, इसी कामना के साथ आप सभी को शक्ति उपासना के पावन पर्व ‘शारदीय नवरात्रि’ के शुभारंभ की अनंत शुभकामनाएं।