दिल्ली, 12 सितम्बर (हि.स.)। चन्द्रमा पर उलटे पड़े भारत के विक्रम लैंडर से संपर्क साधने में इसरो के साथ-साथ अब दुनिया की सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी कोशिशें शुरू कर दी हैं। नासा ने चांद की सतह पर गतिहीन पड़े विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित करने के लिए उसे ‘हैलो‘ का संदेश भेजा है। इधर, इसरो ने अब विक्रम लैंडर से संपर्क न होने पर चंद्रयान-3 मिशन में विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का अपग्रेडेड वर्जन भेजने पर विचार करना शुरू कर दिया है।
भारत का चंद्रयान-2 मिशन तब अधूरा रह गया, जब लैंडर विक्रम की आखिरी समय में सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई और 7 सितम्बर की रात 1.55 बजे बेंगलुरु स्थित कमांड सेंटर से संपर्क टूट गया। उस समय इसरो वैज्ञानिकों ने बताया था कि लैंडिंग से ठीक पहले चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर की दूरी पर विक्रम लैंडर से संपर्क टूटा था लेकिन अब जानकारी मिल रही है कि इसरो सेंटर का विक्रम लैंडर से संपर्क 335 मीटर की ऊंचाई पर टूटा था, न कि 2.1 किमी की ऊंचाई पर। लैंडिंग के आखिरी 15 मिनट के समय इसरो के मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स की स्क्रीन पर ग्राफ में तीन रेखाएं दिखाई गई थीं जिसमें बीच वाली लाल रंग की लाइन पर ही चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर अपना रास्ता तय कर रहा था। यह विक्रम लैंडर के लिए इसरो वैज्ञानिकों द्वारा तय किया गया पूर्व निर्धारित मार्ग था जबकि विक्रम लैंडर का रियल टाइम पाथ हरे रंग की लाइन में दिख रहा था। यह हरी लाइन पहले से तय लाल लाइन के ऊपर ही बन रही थी।
ग्राफ की इन लाइनों के मुताबिक 4.2 किमी. के ऊपर विक्रम लैंडर ने अपना थोड़ा रास्ता बदला था लेकिन बाद में वह अपने निर्धारित रास्ते पर आ गया था। इसके बाद ठीक 2.1 किमी. की ऊंचाई पर वह तय रास्ते से अलग दिशा में चलने लगा। उस समय वह चांद की सतह पर 59 मीटर प्रति सेकंड (212 किमी/सेकंड) की गति से नीचे आ रहा था। 400 मीटर की ऊंचाई तक विक्रम लैंडर की वही स्पीड थी, जिस गति से उसे सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी। 10 मीटर की ऊंचाई तक विक्रम लैंडर को 5 मीटर प्रति सेकंड की गति से और 10 से 6 मीटर की ऊंचाई तक 1 या 2 मीटर प्रति सेकंड की गति से नीचे लाकर फिर इसकी गति जीरो करके सॉफ्ट लैंडिंग कराई जानी थी। चांद की सतह पर उतरने के लिए 15 मिनट के तय कार्यक्रम के दौरान 13वें मिनट में मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स की स्क्रीन पर सिग्नल मिलने बंद हो गए और स्क्रीन पर हरे रंग का एक डॉट बन गया। उस समय विक्रम लैंडर की गति 59 मीटर प्रति सेकंड थी और वह चांद की सतह से 335 मीटर की ऊंचाई पर था। अपनी दिशा से भटकने के बाद विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई और वह चांद की सतह से टकरा गया।
इसके बाद दो दिनों तक तो विक्रम लैंडर का पता ही नहीं चल पाया लेकिन 09 सितम्बर को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने साफ़ किया कि चंद्रमा पर उतरने से ठीक पहले लैंडर विक्रम से संपर्क जरूर टूटा है लेकिन उसमें कोई टूट-फूट नहीं हुई है। इसरो ने बताया कि ऑर्बिटर ने एक तस्वीर भेजी है, जिसके अनुसार लैंडर विक्रम एक ही टुकड़े के रूप में दिखाई दे रहा है। अभी भी लैंडर विक्रम से संपर्क करने की कोशिशें की जा रही हैं। धीरे-धीरे जिस तरह समय बीतता जा रहा है, वैसे-वैसे लैंडर से संपर्क होने की संभावनाएं ख़त्म होती जा रही हैं। इसलिए इसरो ने अब इस बात पर विचार करना शुरू कर दिया है कि अगर विक्रम लैंडर से संपर्क नहीं हुआ तो वे चंद्रयान-3 मिशन में विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का अपग्रेडेड यानी आधुनिक वर्जन भेजेंगे। चंद्रयान-3 में जाने वाले लैंडर और रोवर में ज्यादा बेहतरीन सेंसर्स, ताकतवर कैमरे, अत्याधुनिक नियंत्रण प्रणाली और ज्यादा ताकतवर संचार प्रणाली लगाई जाएगी। हालांकि अभी इसरो में चंद्रयान-3 के बारे में तैयारियों को लेकर कोई चर्चा नहीं है लेकिन यह तय है कि चंद्रयान-2 से मिले आंकड़ों के आधार पर ही चंद्रयान-3 मिशन पूरा किया जाएगा।
दूसरी तरफ, चंद्रमा की सतह पर उलटे पड़े लैंडर विक्रम से संपर्क साधने में दुनिया की सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी इसरो का साथ देना शुरू कर दिया है। नासा ने अपने गहरे अंतरिक्ष ग्राउंड स्टेशन नेटवर्क के जरिए लैंडर से संपर्क स्थापित करने के लिए विक्रम को एक रेडियो फ्रीक्वेंसी भेजी है। विक्रम से संपर्क स्थापित करने की उम्मीदें दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। 14 पृथ्वी दिवस के बाद 20-21 सितम्बर को जब चंद्रमा पर रात होगी तब विक्रम से दोबारा संपर्क स्थापित करने की सारी उम्मीदें खत्म हो जाएंगी।