प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वराज इन आइडिया को दिया है मूर्त रूप: प्रो. राकेश सिन्हा

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कहा, भारतीय चिंतन, दर्शन और साहित्य को भी पहुंचाया व्यष्टि से समष्टि तक



बेगूसराय, 18 सितम्बर (हि.स.)। राष्ट्रवादी विचारक और बेगूसराय निवासी राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई कारणों से प्रशंसनीय हैं। लेकिन एक कारण अनछुआ रहा और वह है औपनिवेशिक दासता के वैचारिक पक्ष से मुक्ति में उनके मौलिक योगदान का। गुरुवार देर रात सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रो. सिन्हा ने कहा कि आजादी के आन्दोलन के दौरान लाल-बाल-पाल और गांधी के भाषण व लेखनी में राजनीतिक दासता से मुक्ति से कहीं अधिक महत्त्व सांस्कृतिक और वैचारिक गुलामी से मुक्ति को मिलता था।
उन्होंने कहा कि किसी राष्ट्र की संप्रभुता का निर्धारण निश्चित तौर पर राजनीतिक आजादी से होती है, परन्तु उसकी आत्मा की गुलामी तब समाप्त होती है जब विचारों पर दूसरी संस्कृति और विचार का अधिपत्य समाप्त होता है। प्रो. सिन्हा ने कहा कि यहां नरेन्द्र मोदी की निर्णायक भूमिका साफ दिखाई पड़ती है। प्रधानमंत्री बनने के बाद चाहे लाल किले के प्राचीर से उनका संबोधन हो या मन की बात, उन्होंने बिना अपवाद के भारतीय भाषाओं के विद्वानों को ही उद्धृत किया। चाहे वे तिरुवल्लुवर हों या दिनकर। प्रधानमंत्री के भाषणों में वेद, उपनिषद, पंचतंत्र आदि के दृष्टांत, भारतीय सुधारकों के विचार बिना किसी अपवाद या अपराध बोध अथवा संकोच के उपयोग होता है। इसीलिए भारत के आम लोग सहजता से उन्हें अच्छी तरह समझ लेते हैं।
उन्होंने कहा कि शीर्ष पर बैठे लोग समाज के सभी आयामों को प्रभावित करते हैं। अगर यह शीर्ष पर केन्द्रित है, तब विचारों की गुलामी कम नहीं होती है। यह गुलामी वैसे ही होती है, जैसे दीमक पुस्तक को समाप्त कर देता है और जिल्द को अंत में छूता है। विचारों की गुलामी मौलिकता खत्म करती है। गांधी ने कहा था कि अनुवादकों से राष्ट्र का निर्माण नहीं होता है। मोदी जी ने भारतीय चिंतन, दर्शन, साहित्य को व्यष्टि से समष्टि तक पहुंचाया है। विचारों की गुलामी खत्म होने की यह बड़ी और प्रभावी शुरुआत है। नरेन्द्र मोदी इतिहास में इस कारण से भी जाने जाएंगे। भट्टाचार्य के विचारों में स्वराज इन आइडिया को मोदी जी ने मूर्त रूप दिया है। उनके इस योगदान पर जितनी नजर जानी चाहिए नहीं गई।
प्रो सिन्हा ने कहा कि घटनाएं तर्क नहीं होती हैं, उनका विश्लेषण तर्क पैदा करता है। इसीलिए इसे अनछुआ पहलू मैंने कहा है। मोदी जी का भाषण सन्दर्भ की घटनाएं होती हैं, लेकिन जब उसकी तुलना साउथ ब्लॉक में उनसे पहले बैठने वालों और समकालीन बौद्धिक उत्पादनों से करते हैं, तब हमे वैचारिक दासता से मुक्ति का उसमें तर्क मिलता है। यह हमारी कल्पना को भी औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त करता है।

 


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