कानपुर, 08 अगस्त (हि.स.)। अगस्त माह में स्वतंत्रता दिवस की याद में पूरा देश स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर रहा है। ऐसे में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कानपुर के नायकों को कैसे भूला जा सकता है, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की कानपुर में चूले हिला दी थीं। हां हम बात कर रहे हैं कानपुर के नायक रहे पेशवा नानाराव द्वितीय की महिला सैनिक बेगम हुसैनी खानम की, जिन्होंने कानपुर में दोबारा अंग्रेजों के कब्जे से प्रतिशोध के चलते बीबीघर में सैकड़ों अंग्रेजों का कत्ल करा दिया था और परिसर में ही स्थिति कुएं में सभी की लाशों को दफना दिया था।
कानपुर में आज जहां फूलबाग है वहां पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पहले एक अंग्रेज अफसर ने भारतीय बीबी (प्रेयसी) के रहने के लिए एक मकान बनवाया था जिसे बाद में बीबीघर के नाम से जाना जाने लगा। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में कानपुर से अंग्रेजों को भगाने के लिए पेशवा नानाराव द्वितीय के सैनिक कई लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों को कानपुर छोड़ने पर विवश होना पड़ा। 27 जून को जब अंग्रेज सत्तीचौरा घाट से इलाहाबाद के रास्ते कलकत्ता के लिए नावों के जरिये रवाना हो रहे थे उसी दौरान नानाराव के सैनिकों ने अंग्रेजों पर हमला कर दिया और चार सौ से अधिक अंग्रेज मारे गये। इसके बाद फतेहगढ़ से आ रही अंग्रेजों की बटालियन को विद्रोही सैनिकों ने गंगा नदी में नाव के जरिये पकड़ लिया और फूलबाग स्थित बीबीघर में रखा गया। इन अंग्रेजों की निगरानी के लिए नानाराव ने महिला सैनिक बेगम हुसैनी खानम को जिम्मेदारी सौंपी थी। इतिहासकारों के मुताबिक उस समय बीबीघर मे तीन अंग्रेज अफसर, 73 महिलाएं व 124 बच्चे थे।
अंग्रेजों ने दोबारा कानपुर में किया कब्जा
इतिहासकार बताते हैं कि मेरठ से मई माह में शुरु हुई प्रथम स्वतंत्रता की लड़ाई कानपुर उसी माह आ गई और पेशवा नानाराव द्वितीय की अगुवाई में भारतीय अंग्रेजों को खड़ेदने के लिए तैयारी कर लिये। मई माह से लेकर पूरे जून माह तक अंग्रेजों से नानाराव के सैनिक कई लड़ाइयां लड़ी और अंगेज कानपुर छोड़ने के लिए विवश हो गयें। इसी बीच 15 जुलाई 1857 को जनरल हैवलाक सेना के साथ कानपुर पहुंचा तो क्रांतिकारियों के पैर उखडने लगे। 17 जुलाई 1857 को अंग्रेजी फौजों ने कानपुर पर पूरी तरह कब्जा कर लिया। नाना साहब 16 जुलाई की रात में ही कानपुर से पलायन कर गए। इसी रात बेगम हुसैनी खानम ने कई जल्लाद बुलाए और बीबीघर में बंद अंग्रेजों का कत्ल करा दिया। सभी के शव अहाते के कुएं मे डलवा दिए गए। इसके बाद अंग्रेजों ने बीबीघर को ढहा दिया और कुएं को पाट दिया। वर्तमान में यहां तात्याटोपे की प्रतिमा स्थापित है।
बीबीघर में रहते थे अंग्रेज अफसर
इतिहासकार बताते हैं कि फूलबाग में बीबीघर नाम का एक छोटा सा भवन था। इसे एक अंग्रेज अफसर ने अपनी हिंदुस्तानी बीबी (प्रेयसी) के लिए बनवाया था, जिसे बाद में लोग बीबीघर कहने लगे। इसमें छह गज लंबा आंगन था। इसके दोनों ओर 20 फीट लंबे व 16 फीट चौड़े दो कमरे थे। इन कमरों के सामने बरामदे थे। कमरों के दोनो ओर स्नानघर बने थे। इसके परिसर में ही एक कुआं भी था। बीबीघर में 1857 की क्रांति के पहले तक वह अंग्रेज अफसर रहते थे जिनका परिवार यहां नहीं रहता था। यहां पर अंग्रेज अफसरों को खुश करने के लिए कुछ भारतीय दलाल भारतीय महिला और लड़कियों को उनके पास भेजते थे। अंग्रेजों के लिए बीबीघर अय्यासी का अड्डा था। इस बीबीघर को भारतीय स्टाइल में बनाया गया था।
विश्व भर में चर्चित हुआ था बीबीघर कांड
इतिहासकार बताते हैं कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय जब बीबीघर कांड हुआ तो पूरे विश्व भर में यह घटना चर्चित हो गई। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में विद्रोहियों के हाथों लगातार मात खा रहे अंग्रेजों ने बाद में बीबीघर को ढहा दिया था। यहां तमाम लोग मारे गए। पुराना कुआं अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। पर्यटन विभाग ने संरक्षित स्मारक का बोर्ड जरूर लगा दिया है लेकिन रखरखाव के नाम पर सिर्फ खानापूरी हो रही है।