भारत ने तवांग सेक्टर में तैनात की ‘ब्रह्मास्त्र’ माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स

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अभ्यास में आक्रामक क्षमताएं बढ़ाने पर ध्यान देने के साथ ही वायुसेना भी शामिल होगी

 सेना की इकलौती इसी कॉर्प्स के कैलाश रेंज की पहाड़ियों पर कब्जे से बौखलाया है चीन



नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (हि.स.)। तवांग सेक्टर में चीन की सेना की हलचल बढ़ने के बाद भारतीय सेना की इकलौती माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स अभ्यास के लिए अरुणाचल प्रदेश पहुंच गई है। सेना की ‘ब्रह्मास्त्र’ माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स के यह वही जांबाज जवान हैं जिन्होंने पिछले साल अगस्त में पैन्गोंग झील के दक्षिणी और कैलाश रेंज की पहाड़ियों को अपने कब्जे में लेकर चीन को चौंकाते हुए दिन में तारे दिखा दिए थे। भारतीय सेना के इन रणनीतिक ऊंचाइयों से चीन बौखलाया है। वह अभी भी यहां से भारत के जवानों को हटाने की मांग पर अड़ा है। इस अभ्यास में माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स अपनी आक्रामक क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान देगी और इनके साथ ही वायुसेना भी शामिल होगी।

चीन बॉर्डर पर ज्यादा फोकस

भारतीय सेना की यह टीम अत्यधिक ठंड की स्थिति में प्रशिक्षण के लिए उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अपनी एकीकृत युद्ध समूह (आईबीजी) रणनीति को मजबूत कर रही है। भारतीय सेना ने चीन और पाकिस्तान की सीमा पर अपने सैनिकों की तैनाती को और मजबूत किया है। सेना ने अपनी इकलौती माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स में लगभग 10 हजार और सैनिक शामिल किए हैं। भारतीय सेना के यह जांबाज जवान दोनों देशों की सीमाओं पर पैनी नजर रखेंगे। सीमा सुरक्षा को नए सिरे से संतुलित करने की कवायद के तहत इन्हें दोहरी जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन उन्हें चीन बॉर्डर पर ज्यादा फोकस करने को कहा गया है।

इसी कॉर्प्स ने कैलाश रेंज पर किया था कब्जा

भारतीय सेना की योजना एक पूर्ण माउंटेन स्ट्राइक कोर बनाने की है, जिसमें 90 हजार से अधिक सैनिक शामिल होंगे। भारतीय सेना की स्पेशलाइज्ड कोर माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स ने 2019 में अपना पहला अभ्यास ‘हिमविजय’ पूरा किया था लेकिन पिछले साल पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध के कारण यह अभ्यास नहीं हो पाया था। इसके बावजूद अगस्त, 2020 में पैन्गोंग झील के दक्षिणी तट पर महत्वपूर्ण कैलाश रेंज पर कब्जा करने में माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ चल रहे तनाव के बीच पानागढ़ (पश्चिम बंगाल) स्थित माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स इस साल अभ्यास करने के लिए पहुंची है।

अरुणाचल प्रदेश में बुनियादी ढांचा तैयार करने में आई तेजी

इसके अलावा चीन का मुकाबला करने के लिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश में अपना बुनियादी ढांचा तेजी से तैयार करना शुरू किया है। सीमा क्षेत्रों में नई सुरंगों पर काम तेज करने के साथ ही हर मौसम में उपयोगी नई सड़क, पुल, हेलीकॉप्टर बेस और भूमिगत गोला बारूद भंडार बनाए जा रहे हैं। इनमें से अधिकांश परियोजनाओं की योजना पहले बनाई गई थी लेकिन चीन के साथ गतिरोध शुरू होने के बाद इन परियोजनाओं में तेजी लाई गई है। तेजी से निर्माण के बावजूद रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्र स्वीकार करते हैं कि बुनियादी ढांचे के मामले में फिलहाल हम चीनियों से पीछे हैं। चीनी कई वर्षों से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ अपने बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और एलएसी तक उनका बेहतर सड़क संपर्क है।

अगले साल जून तक पूरी होगी सेला सुरंग परियोजना

चीनी सेना के बुनियादी ढांचों के मुकाबले भारत ने भी सीमावर्ती इलाकों में और भी परियोजनाएं शुरू की हैं।पिछले तीन वर्षों में बुनियादी ढांचे में बदलाव आया है जिसमें आने वाले समय में और सुधार होता रहेगा।अरुणाचल प्रदेश में बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति को इस हद तक बढ़ा दिया गया है कि अधिकारी 700 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण सेला सुरंग परियोजना को अगले साल जून में समय से पहले पूरा करने पर विचार कर रहे हैं। 13,700 फीट की ऊंचाई पर स्थित सेला सुरंग के अलावा 980 मीटर की एक और छोटी सुरंग और लगभग 1.2 किलोमीटर सड़क है जिससे चीनी क्षेत्र में यातायात की आवाजाही पर निगरानी रखी जा सकेगी करने में सक्षम नहीं हैं।

कामेंग और तवांग जिलों में पूरे साल आवाजाही बनी रहेगी

इसके अलावा 317 किलोमीटर लंबी बालीपारा-चारदुआर-तवांग (बीसीटी) सड़क पर नेसीफू सुरंग भी रणनीतिक परियोजना है, जिससे अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग और तवांग जिलों की ओर पूरे साल आवाजाही बनी रहेगी। सुरंगों को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इससे बोफोर्स, टैंक और यहां तक कि भविष्य में वज्र हॉवित्जर सहित सेना के सभी उपकरण आसानी से ले जाये जा सकेंगे। सेला सुरंग परियोजना निदेशक कर्नल परीक्षित मेहरा ने बताया कि पहली सुरंग सेना दिवस (15 जनवरी) 2022 तक और दूसरी जून तक पूरी हो जाएगी। माउंटेन डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग मेजर जनरल जुबिन ए. मिनवाला ने कहा कि न केवल सैन्य दृष्टिकोण से बल्कि नागरिक पहलू से भी बुनियादी ढांचे पर एक प्रमुख ध्यान दिया गया है। ऐसे पहाड़ी इलाकों में एक सुगम कनेक्टिविटी मायने रखती है जहां मौसम का भी अपना खेल हो सकता है।


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