कोरोना काल में आगे बढ़ें धैर्य, सजगता, सक्रियता और वैज्ञानिकता से : मोहन भागवत
नई दिल्ली, 15 मई (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कोरोना महामारी के कालखंड में सकारात्मकता का संदेश देते हुए शनिवार को कहा कि वर्तमान समय गुण-दोषों पर विचार करने का नहीं है। इस समय हमें केवल भेदभाव भुलाकर आगे क्या प्रयास करने चाहिए इस पर ध्यान देना चाहिए। सामूहिक प्रयास से हमें कमियों को दूर करना होगा और धैर्य, सजगता, सक्रियता और वैज्ञानिकता के साथ आगे बढ़ना होगा।
संघ प्रमुख ने आज “पाजिटिविटी अनलिमिटेड” व्याख्यान श्रृंखला की अंतिम कड़ी को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें निराश होकर रुकना नहीं है बल्कि प्रयास करते रहना है। ‘यूनान, रोम, मिस्र मिट… हस्ती मिटती नहीं हमारी’ प्रचलित वाक्य के माध्यम से उन्होंने कहा कि देश इस संकट से भी उबर जाएगा।
अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि पहली लहर आने के बाद जनता, सरकार और प्रशासन को गलतफहमी हो गई थी। उसी के चलते दूसरी लहर आयी है और अब वैज्ञानिक तीसरी लहर की भी बात कर रहे हैं। ऐसे में हमें चाहिए कि उसके लिए अभी से तैयारियां करें।
कोरोना महामारी के चलते अपनों को खोने वाले लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए डॉ भागवत ने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि डॉ हेडगेवार ने नागपुर में प्लेग की महामारी के दौरान सेवा कार्य में लगे हुए अपने माता-पिता को खो दिया था। फिर भी निराश न होते हुए उन्होंने आगे समाज उत्थान के लिए कार्य किया। उन्होंने गीता का उदाहरण देते हुए भारतीय समाज के उस दृष्टिकोण को आगे रखा जिसमें मृत्यु को केवल शरीर के कपड़े बदलना बताया गया है।
डॉ. भागवत ने वर्तमान स्थिति में आगे धैर्य, सजगता, सक्रियता और वैज्ञानिकता को अपनाने पर विशेष बल दिया। साथ ही उन्होंने लोगों से उपचार, आहार और विहार पर विशेष ध्यान देने का अनुरोध किया।
समाज में गलत जानकारी के प्रसार को रोकने का अनुरोध करते हुए संघ प्रमुख ने वर्तमान परिस्थितियों में तर्कहीन बयान देने से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि हमें इस समय परख कर किसी जानकारी व परामर्श को स्वीकारना चाहिए। आयुर्वेद के संदर्भ में भी उन्होंने इसी को ध्यान में रखने को कहा। उन्होंने लोगों से मास्क का सही उपयोग करने, सही समय पर जांच कराने व डॉक्टरी परामर्श लेने, उचित होने पर ही अस्पताल जाने का आग्रह किया। साथ ही घरों पर रहने वालों को प्रेरित किया कि वह अपना समय परिवार के साथ बितायें और कुछ नया सीखें।
मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन के अंत में एक अंग्रेजी कहावत के माध्यम से कहा कि ‘जीत अंतिम नहीं होती, हार अंत नहीं होती, जरुरी बस इतना है कि हम निरंतर प्रयास करते रहें।’