नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच दूसरी अनौपचारिक बैठक शुक्रवार को शुरू होने वाली है। दोनों नेता महाबलिपुरम पहुंच चुके हैं। यह बैठक शुक्रवार रात से शनिवार 12 बजे तक चलेगी। इस बैठक पर चीन, भारत और पाकिस्तान के अलावा पूरी दुनिया की नजर है। आखिर दो एशियाई महाशक्तियां आपस में बैठक करने जा रही हैं।
पाकिस्तान की आतुरता कुछ ज्यादा ही है, क्योंकि यह बैठक कश्मीर का विशेष दर्जा हटाए जाने के बाद भारत के साथ उसका तनाव बढ़ गया है और कूटनीतिक रिश्ते लगभग समाप्त हो चुके हैं। इस पृष्ठभूमि में भारत और चीन के बीच अनौपचारिक वार्ता हो रही है।
हालांकि दोनों पक्षों ने कहा है कि यह बैठक संपर्क बढ़ाने के अलावा कुछ हासिल करने के लिए नहीं है। इस बैठक के बाद दोनों देशों के बीच कोई समझौता भी नहीं होगा। विदित हो कि पहली अनौचारिक बैठक चीनी शहर वुहान में हुई थी और उसमें भी कोई समझौता नहीं हुआ था, लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अच्छी केमिस्ट्री देखने को मिली थी।
कहने के लिए तो इस बार भी दोनों पक्षों ने अनौपचारिक बैठक का एजेंडा सार्वजनिक नहीं किया है, लेकिन माना जाता है कि दोनों नेता द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति की समीक्षा के बाद भविष्य में इसकी दशा दिशा क्या होगी, इस पर जरूर विचार करेंगे। इसके लिए दोनों देशों के अधिकारियों ने व्यापक तैयारियां की हैं। इसके अलावा चीन चाहता है कि क्षेत्र में भारत और चीन संयुक्त भूमिका निभाने की रूप रेखा तैयार करे और इस दिशा में सहयोग बढ़ाए।
जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो चीनी राष्ट्रपति ने पहले ही प्रधानमंत्री इमरान खान को कह दिया है कि वह कश्मीर की स्थिति पर करीब से नजर बनाए हुए हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि संबद्ध पक्ष बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण ढंग से इस मसले को सुलझा लेंगे।
इतना ही नहीं राष्ट्रपति शी ने खान को आश्वस्त भी किया है कि अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्थिति में बदलाव के बावजूद दोनों देशों की दोस्ती नहीं टूटेगी। इसलिए पाकिस्तान को ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए।
इस अनौपचारिक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्विपक्षीय संबंधों में व्यापारिक मुद्दा भी उठा सकते हैं। विदित हो कि भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों में भुगतान संतुलन चीन के पक्ष में है ,इसलिए भारत चाहता है कि उसके उत्पादों की पहुंच चीनी बाजार बढ़े। यह भारत की असली चिंता भी है। इस मुद्दे पर ड्रैगन कहां तक सहमत होगा कहना मुश्किल है, क्योंकि चीन दुनिया भर में अपना निर्यात बढ़ाना चाहता है। इसके अलावा चीन चाहता है कि दोनों देश अतीत और वर्तमान के मतभेदों को भुलाकर सहयोगात्मक साझेदारी को मूर्त रूप दे। शी इस मुद्दे पर मोदी के साथ चर्चा कर सकते हैं।
भारत और चीन जिस तरह से संपर्क बढ़ा रहे हैं और अनौपचारिक शिखर बैठक कर रहे है, इससे इतना तो तय लग रहा है कि नई दिल्ली और बीजिंग द्विपक्षीय संबंध मजबूत करना चाहते हैं, लेकिन भारत को ड्रैगन पर पूरा विश्वास नहीं हो पाया है, क्योंकि चीन दोस्ती की बात कर दुश्मनी को अंजाम देता रहा है और आगे ऐसा नहीं होगा, यह गारंटी के साथ नहीं कहा जा सकता है।
जानकारों का यह भी कहना है कि चीन एशिया और खासतौर पर दक्षिण एशिया में अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों को पूरा करने के मार्ग में भारत को सबसे बड़ा बाधक मान रहा है इसलिए वह भारत को साधना चाहता है, इसलिए धरातल पर इन बैठकों का नतीजा कितना सकारात्मक देखने को मिलेगा सिर्फ अनुमान ही लगाया सकता है।