मोदी और शी की अनौपचारिक शिखरवार्ता , सीमा पर शान्ति और विश्वास बहाली पर रहेगा जोर

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दोनों नेता तमिलनाडु के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के समुद्र तटीय नगर महाबलिपुरम में 11 और 12 अक्टूबर को बिना किसी पूर्व निर्धारित एजेंडे के विचार-विमर्श करेंगे।



नई दिल्ली, 09 अक्टूबर (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की दूसरी अनौपचारिक शिखरवार्ता की बुधवार को आधिकारिक घोषणा की गई। दोनों नेता तमिलनाडु के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के समुद्र तटीय नगर महाबलिपुरम में 11 और 12 अक्टूबर को बिना किसी पूर्व निर्धारित एजेंडे के विचार-विमर्श करेंगे। वार्ता का उद्देश्य सीमा पर शांति व स्थायित्व कायम रखना तथा विश्वास बहाली के उपायों को आगे बढ़ाना है।

यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अनौपचारिक शिखरवार्ता के रूप में अंतरराष्ट्रीय कुटनीति में एक अभिनव प्रयोग है। ऐसी वार्ता के दौरान दो शीर्ष नेता बिना किसी निर्धारित एजेंडे के द्विपक्षीय संबंधों और विश्व मामलों पर खुले दिमाग से विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। भूटान में डोकलाम क्षेत्र में हुई सैनिक तनातनी के बाद मोदी ने पिछले वर्ष चीन के वुहान नगर में शी जिनपिंग के साथ पहली अनौपचारिक वार्ता की थी। इस वार्ता में आपसी समझदारी और विश्वास के लिए ‘वुहान भावना’ उभरी थी। दोनों नेता इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहते हैं। ऐसी वार्ताओं में कोई अधिकारी शामिल नहीं होता। वह अधिक से अधिक द्विभाषीय को साथ लेते हैं।

विदेश मंत्रालय के मुताबिक 11 से 12 अक्टूबर को दोनों नेता महाबलिपुरम में समुद्र के नजदीक गहन अनौपचारिक चर्चा करेंगे। इस दौरान सीमा पर शांति और सौहार्द बनाए रखने को सबसे अधिक महत्व दिया जाएगा। दोनों नेता इस दौरान सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधियों से जुड़ी वार्ता के अगले चरण पर भी कोई फैसला ले सकते हैं।

विदेश मंत्रालय ने एक वक्तव्य में आज कहा कि आगामी अनौपचारिक शिखर सम्मेलन दोनों नेताओं के लिए द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व के अतिव्यापी मुद्दों पर चर्चा जारी रखने और भारत-चीन क्लोजर डेवलपमेंट पार्टनरशिप को गहन बनाने पर विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर प्रदान करेगी।

इसके पहले दोनों नेता वुहान में 18 महीने पहले भी इस तरह की अनौपचारिक मुलाकात कर चुके हैं। सरकार के सूत्रों ने कहा कि मोदी और शी के बीच मुलाकात पूरी तरह से असंरचित है और इसलिए किसी भी समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर नहीं किए जाएंगे और कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया जाएगा। उनका कहना है कि इसका उद्देश्य उच्चतम स्तर पर संपर्क बनाना और प्रमुख मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करना है।

 


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