कोलकाता, 24 दिसम्बर (हि.स.)। विश्वभारती विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में गुरुवार को छात्र-छात्रों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि आत्मनिर्भर भारत की प्रेरणा उन्हें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से ही मिली है। शांति निकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय को खास बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुदेव के विजन को आत्मनिर्भर भारत का सार बताया। इसके साथ ही उन्होंने गुरुदेव और गुजरात का कनेक्शन भी बताया। विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। इस मौके पर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी मौजूद रहे।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘गुरुदेव का सबसे प्रेरणादायी मंत्र तो याद ही है। जोदि तोर डाक सुने केऊ ना आसे तबे एकला चलो रे। यानी, कोई साथ न आए, अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अगर अकेले चलना पड़े तो चलिए।’ इस दौरान उन्होंने विश्वभारती के छात्र-छात्राओं को एक टास्क भी दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस बार कोरोना महामारी के चलते पौष मेला नहीं हो पाया। स्टूडेंट्स पौष मेले में आने वाले लोगों से संपर्क करें और कोशिश करें कि उनकी कलाकृतियां ऑनलाइन कैसे बेची जा सकती हैं? मोदी ने कहा, ‘वर्ष 2022 में देश की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हो जाएंगे। विश्वभारती की स्थापना के 27 साल बाद देश आजाद हो गया था। 27 साल बाद भारत की आजादी को भी 100 साल हो जाएंगे। हमें नए लक्ष्य गढ़ने होंगे, नई उर्जा जुटानी होगी। इस लक्ष्य में प्राप्ति में गुरुदेव की बातें ही हमारा मार्गदर्शन करेंगी। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता को भक्ति आंदोलन ने मजबूत करने का काम किया था।
बंगाल के महापुरुषों को किया याद-
देश की आजादी में बंगाल के महापुरुषों को याद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए बंगाल की पीढ़ियों ने खुद को खपा दिया था। खुदीराम बोस सिर्फ 18 वर्ष की आयु में फांसी चढ़ गए। प्रफुल्ल चाकी 19 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए। बीना दास, जिन्हें बंगाल की अग्नि कन्या के रूप में जाना जाता है, सिर्फ 21 साल की उम्र में जेल भेज दी गई थीं। ऐसे अनगिनत लोग हैं जिनके नाम इतिहास में भी दर्ज नहीं हो पाए। इन सभी ने देश के आत्मसम्मान के लिए मृत्यु को गले लगा लिया।
गुरुदेव ने दिया था स्वदेशी विकास का मंत्र-
इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गुरुदेव ने स्वदेशी समाज का संकल्प दिया था। हमारे गांवों को, कृषि को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे। उन्होंने आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आत्मशक्ति की बात कही थी। उन्होंने कहा था, राष्ट्र का निर्माण एक तरह से अपनी आत्मा की प्राप्ति का विस्तार है। जब आपने विचारों से अपने कार्यों से, अपने कर्तव्यों के निवर्हन से देश का निर्माण करते हैं तो आपको देश की आत्मा में ही अपनी आत्मा नजर आने लगती है।
आत्मनिर्भर भारत था गुरुदेव का सपना
इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आत्मनिर्भर भारत अभियान को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से जोड़ते हुए कहा, ‘विश्व भारती के लिए गुरुदेव का विजन आत्मनिर्भर भारत का सार है। आत्मनिर्भर भारत अभियान भी विश्व कल्याण के लिए भारत के कल्याण का मार्ग है। यह अभियान, भारत को सशक्त करने का अभियान है, भारत की समृद्धि से विश्व में समृद्धि लाने का अभियान है। गुरुदेव का विजन था कि जो भारत में सर्वश्रेष्ठ है, उससे विश्व को लाभ हो और जो दुनिया में अच्छा है, भारत उससे भी सीखे। आपके विश्वविद्यालय का नाम ही देखिए: विश्व-भारती। मां भारती और विश्व के साथ समन्वय।’ मोदी ने कहा, ‘वेद से विवेकानंद तक भारत के चिंतन की धारा गुरुदेव के राष्ट्रवाद के चिंतन में भी मुखर थी। और ये धारा अंतर्मुखी नहीं थी। वो भारत को विश्व के अन्य देशों से अलग रखने वाली नहीं थी।’
पांच छात्रों को लेकर गुरुदेव ने शुरू किया था ब्रह्म विद्यालय
उल्लेखनीय है कि आज से तकरीबन 100 साल पहले 1921 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने केवल पांच छात्रों को लेकर ब्रह्म विद्यालय की शुरुआत की थी जो आज विश्व भारती के नाम से जाना जाता है। यह देश की सबसे पुरानी सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। इसे मई 1951 में केंद्रीय विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा मिला था।