सीमावर्ती बिहार से नेपाल की ओर हो रहा मजदूरों का पलायन

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गंडक बराज पर स्थित कस्टम कार्यालय के पास मजदूरी के लिए जाने वाले मजदूरों का जमघट इन दिनों सुबह-सुबह लगा रहता है जहां से नेपाल के दलाल मजदूरी तय कर उन्हें अपने निजी वाहन से नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में ले जाते हैं और भू-स्वामियों से इसके बदले मोटी रकम  लेते हैं।



बगहा,15 जुलाई(हि.स.)। रोजी-रोटी के लिए बिहार सीमावर्ती क्षेत्रों से मजदूरों का पलायन नेपाल की तरफ होने लगा है। सीमावर्ती क्षेत्र के मजदूर मजदूरी करने दलालों के माध्यम से नेपाल जा रहे हैं।
गंडक बराज पर स्थित कस्टम कार्यालय के पास मजदूरी के लिए जाने वाले मजदूरों का जमघट इन दिनों सुबह-सुबह लगा रहता है जहां से नेपाल के दलाल मजदूरी तय कर उन्हें अपने निजी वाहन से नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में ले जाते हैं और भू-स्वामियों से इसके बदले मोटी रकम  लेते हैं। अभी भारी बारिश  के कारण नेपाल की तराई क्षेत्र में धान की रोपनी शुरू हो गई है, जिसके लिए नेपाल के  भू-स्वामियों को काफी संख्या में धान रोपने के लिए मजदूरों की जरूरत पड़ती है। आवश्यकता की पूर्ति के लिए वे दलालों से मजदूरों की मांग करते हैं। दलाल भारतीय मजदूरों से मजदूरी तय कर अपने साथ लेकर नेपाल में भूपतियों के पास पहुंचा जाते हैं।
बताया जा रहा है कि भारत (बिहार) के सीमावर्ती क्षेत्र स्थित वाल्मीकि नगर, रामनगर नरकटियागंज, सेमरा, भैरोगंज सहित आदिवासी क्षेत्र चंपापुर, हरनाटांड़ के मजदूर नेपाल पलायन कर रहे हैं। ये मजदूर आदिवासी बहुल क्षेत्र के थारू एवं धानगढ़ जाति के रहते हैं जो अपने पूरे परिवार के साथ मोटी रकम की चाह में बरसात के समय हर  साल नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में चले जाते हैं। नेपाल के भू-स्वामियों की ओर से इन मजदूरों को नि:शुल्क रहने एवं खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है और ऊपर से इन्हें मुंह मांगी  मजदूरी भी दी जाती है। इस कारण सीमावर्ती बिहार के ये  मजदूर प्रत्येक साल बरसात के समय नेपाल की तरफ अपना रुख कर लेते हैं। इन मजदूरों के पलायन  के बाद स्थानीय भू-स्वामियों की खेती गृहस्थी बाधित हो जा रही है।
नेपाल के एक मजदूर ने किसी दलाल का नाम लिये बगैर बताया कि इन मजदूरों को बिहार से अच्छी मजदूरी नेपाल के तराई क्षेत्र के भू स्वामियों से मिलती  है  जिसके चलते हम लोगों की भी कमाई हो जाती है और उनको भी मुंह मांगी मजदूरी भू स्वामियों से मिल जाती है। इस कारण गरीब तबके के लोग नेपाल की तरफ अपना रुख बरसात में धान रोपनी के समय कर लेते हैं।

 


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