“मीडिया के भारतीयकरण और समाज के अध्यात्मीकरण” की जरूरत है-प्रो संजय द्विवेदी
नई दिल्ली, 30 अगस्त। भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो संजय द्विवेदी ने भारतीय मीडिया पर पश्चिमी सोच के गहराते प्रभाव को नुकसानदायक बताते हुए रविवार को कहा कि देश में जरूरत के समय “मीडिया के भारतीयकरण और समाज के अध्यात्मीकरण” की है।
उन्होंने कहा कि भारत में आधुनिक पत्रकारिता की शुरुआत भले ही पश्चिम की तर्ज पर शुरू हुई हो पर देश की वास्तविक पत्रकारिता मूलतः भारतीय स्वाधीनता संग्राम के गर्भ-नाल से पैदा हुई है। उन्होंने गांधी, तिलक , मालवीय और नेहरू के पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि इन महापुरुषों की पत्रकारिता समाज को सशक्त और संगठित करने की पत्रकारिता थी और उसकी धवल परंपरा हमारी पथ प्रदर्शक होनी चाहिए।
प्रो द्विवेदी यहाँ गैर सरकारी संस्था प्रजापिता ब्रह्माकुमारी द्वारा भारतीय स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में “पत्रकारिता की स्वतंत्रता और तनाव मुक्त मीडिया ” विषय पर एक संगोष्ठी में मुख्य व्याख्यान दे रहे थे। कार्यक्रम में प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी के मानेसर केंद्र की प्रमुख बहन आशा, हरिनगर केंद्र की बहन शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार, मॉर्डिया प्राध्यापक प्रदीप माथुर, मनोहर सिंह, अमलेश राजू, कवीन्द्र कुमार सिंह, बीके सुशांत सहित अन्य लोगों ने अपने विचार रखे।
प्रो द्विवेदी मीडिया को मानव निर्माण का माध्यम बताते हुए कहा कि भारत में यह कार्य अंग्रेजी और अंग्रेजियत के रास्ते से संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी मीडिया में नकारात्मकता एक मूल तत्व है, उसी के कारण भारत की विविधता में एकता देखने की बजाय बिखराव और विभेद को बढ़ा चढ़ा कर दिखाने की प्रवृति बढ़ी है। प्रो द्विवेदी के अनुसार भारत ही एकमात्र देश है जिसमें पूरी वसुधा को कुटुंब माना गया है और सबको आत्मसात किया है। उन्होंने ऐसी भ्रामक धारणाओं से उबरने की जरूरत पर बल दिया कि भारत केवल गांवो और किसानों का देश रहा है। उन्होंने कहा की भारत प्राचीन काल में महाजनपदों, महानगरों , और सम्पूर्ण कलाओं का देश रहा है।
इस अवसर पर प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी के मानेसर केंद्र की प्रमुख बहन आशा ने कहा कि भारतीय मानस में आज फिर से यह विश्वास जगाने की आवश्यकता है कि भारत सर्व कलाओं का देश रहा है और यह मर्यादाओं का पालन करते हुए यह देश कभी विश्व शिरोमणि था। उन्होंने कहा कि “सामाजिक चेतना जब एक सूत्र में पिरो दी जाए तो समाज की शक्ति अपार हो जाती है’। भारतीय मीडिया के लिये अपने समाज की सोच संवारने का यह उचित समय है।