नई दिल्ली, 19 जुलाई (हि.स.)। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती खुद को दलित की बेटी कहती हैं। उन पर दौलत की बेटी और भ्रष्टाचार की देवी होने का आरोप लगता रहा है। यह आरोप केवल विपक्ष लगाता रहा हो, ऐसा भी नहीं है। उनके सहयोगी भी नाराज होने के बाद उन पर इसी तरह के आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन मायावती हमेशा उनके आरोपों को झुठलाती रही हैं। यह भी सच है कि मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में हुए भ्रष्टाचार के अधिकांश मामलों में उनके मोहरे ही फंसते रहे। मायावती अभी तक जेल नहीं गईं। लेकिन लगता है कि अब मायावती के बुरे दिनों की शुरुआत हो गई है। आयकर विभाग ने उनके भाई आनंद कुमार और भाभी विचित्रलता का नोएडा स्थित तकरीबन 400 करोड़ रुपये मूल्य का बेनामी प्लॉट जब्त कर लिया है। एक दौर था जब बिजनौर में मायावती सहयोगी कार्यकर्ताओं के साथ साइकिल के कैरियर पर बैठकर क्षेत्र में जाया करती थीं। उनके भाई आनंद नोएडा प्राधिकरण में जूनियर लिपिक हुआ करते थे। लेकिन 2007 से 2012 तक मायावती के मुख्यमंत्री रहते आनंद कुमार की संपत्ति बढ़कर 1316 करोड़ हो गई थी। बिना मायावती के सहयोग के तो इतना बड़ा चमत्कार हुआ न होगा। मायावती की संपत्ति में भी तेजी से इजाफा होता रहा। हर चुनाव में उनकी चल-अचल संपत्ति में कई गुना की वृद्धि हुई। 26 दिसंबर 2016 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली स्थित एक बैंक की शाखा में बसपा के एक खाते में 104 करोड़ और मायावती के भाई आनंद कुमार के खाते में 1.43 करोड़ रुपये की रकम मिलने की बात कही थी।
सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद अखिलेश यादव ने मायावती राज में 40 हजार करोड़ के घोटाले का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था एनआरएचएम घोटाला, इको पार्क घोटाला, नोएडा घोटाला, पार्क घोटाला, हाथी घोटाला आदि करीब एक दर्जन घोटाले सामने आ चुके हैं। सरकार मामले की जांच करा रही है। इस घोटाले का दायरा और बड़ा हो सकता है। घोटाले में लिप्त लोग बख्शे नहीं जाएंगे। अखिलेश सरकार की जांच में क्या हुआ, यह तो पता नहीं चला लेकिन अखिलेश यादव ने मायावती से बुआ-भतीजे वाला रिश्ता जरूर स्थापित कर लिया। इस रिश्ते की बुनियाद पर उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव भी बसपा के साथ मिलकर लड़ा।
भारतीय जनता पार्टी तो मायावती सरकार के घोटालों की जानकारी देने में अखिलेश यादव से बहुत आगे निकल गई। भाजपा ने मायावती सरकार में 2 लाख 54 हजार करोड़ रुपये के घोटालों का आरोप लगाया था। 100 बड़े घोटालों की सूची जारी की थी। भाजपा का दावा था कि उसके पास दस्तावेजी सबूत हैं। सबूत सीबीआई के पास भी थे। इसके बावजूद मायावती पर शिकंजा न कसा जाना तो यही बताता है कि सियासत के हमाम में सभी नंगे हैं।
भाजपा नेता किरीट सोमैया ने मायाराज में 5 हजार करोड़ के नोएडा फार्म हाउस घोटाले का जिक्र किया था। उन्होंने मायावती पर मुख्यमंत्री रहते किसानों की सैकड़ों एकड़ भूखंड कौड़ियों के भाव लेकर कारपोरेट जगत को महंगे दामों पर आवंटित कर अपनी जेब भरने का आरोप लगाया था। यह भी कहा था कि यह भूखंड उन कंपनियों के नाम आवंटित की गयी जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं था। भूमि अधिग्रहण कानून 1894 की धारा 17 और धारा 4 के तहत अधिग्रहीत की गयी भूमि की कीमत किसानों को महज 888 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से दी गयी जबकि उपरोक्त क्षेत्र में जमीन की कीमत 15 से 20 हजार रुपये प्रति गज है। भूखंड लेते वक्त किसानों से कहा गया कि अधिग्रहण औद्योगिक विकास के लिए किया जा रहा है। बाद में उस पर फार्म हाउस बना दिए गए।
इसके अतिरिक्त करोड़ों रुपये के लैकफेड घोटाले में बसपा सरकार के मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, चंद्रदेव राम और रंगनाथ मिश्र का नाम आया था। उन्हें हिरासत में भी लिया गया था। इस घोटाले में पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर टी राम पर भी करोड़ों रुपये डकार जाने के आरोप लगे थे। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले में सीबीआई का दावा था कि उनके पास कई अहम सबूत हैं। मायावती पर गलत तरीके से करीब 100 पदों को सृजित कर उन पर नियुक्ति के आरोप भी लगे थे। इस घोटाले में करीब 50 आरोपपत्र के अलावा 74 एफआईआर दर्ज हो चुके हैं। केंद्र सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना के मद में छह वर्ष के दौरान उत्तर प्रदेश को 8657 करोड़ रुपये मिले, लेकिन अधिकारियों व चिकित्सकों ने इसमें पांच हजार करोड़ रुपये की बंदरबांट कर ली। इसका खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में हुआ। इस घोटाले में तीन सीएमओ समेत सात लोगों की जान जा चुकी है। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा आज भी मायावती के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। यह अलग बात है कि उन्होंने अभी तक इस मामले में मुंह नहीं खोला है, वरना मायावती का नपना तय है। 175 करोड़ के ताज कॉरिडोर घोटाले में मायावती घिरी हुई हैं। 4300 करोड़ के स्मारक घोटाला मामले में भी मायावती की किरकिरी हो चुकी है। मायावती सरकार ने उस दौरान 4200 करोड़ खर्च होने का दावा किया था लेकिन इस मामले की जांच कर रहे लोकायुक्त ने कहा था कि एक तिहाई धन का दुरुपयोग हुआ है। इतनी बड़ी रकम भ्रष्टाचार के पेट में गई है। करीब 1400 करोड़ के घोटाले में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह समेत 19 लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ।
मायावती को 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले तब बड़ा झटका लगा जब उनके खिलाफ सीबीआई ने जांच शुरू कर दी। मामला उनके शासन काल वर्ष 2010-11 में बेची गई 21 चीनी मिलों से जुड़ा है। इन चीनी मिलों को बेचे जाने से प्रदेश सरकार को 1,179 करोड़ रुपये का घाटा लगने का आरोप है। कभी उनके करीबी रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पिछले साल आरोप लगाया था कि चीनी मिलें तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के इशारे पर बेची गई थीं। हालांकि मायावती ने दावा किया था कि चीनी मिलों को बेचने के लिए जो आदेश हुआ था, उस पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी के हस्ताक्षर हैं। ये चीनी मिलें 500 हेक्टेयर जमीन पर बनी थीं और तब इनकी कीमत 2,000 करोड़ रुपये थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घोटाले की जांच के लिए सीबीआई को 12 अप्रैल 2018 को पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि प्रदेश की जो भी 21 चीनी मिलें बेची गईं, वह सब फर्जी दस्तावेजों के आधार पर निर्मित बोगस कंपनियों ने खरीदीं। जो चीनी मिलें खरीदी गईं उनमें से देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज, हरदोई, रामकोला, चित्तौनी और बाराबंकी की बंद पड़ी सात चीनी मिलें भी शामिल थीं। प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार ने बताया कि नीलाम की गईं 21 चीनी मिलों में विसंगतियां पाई गई थीं। इसलिए अब सीबीआई को इसकी जांच सौंपी गई है। योगी सरकार ने सीबीआई को उस एफआईआर की कॉपी भी सौंपी है जो नवंबर 2017 में गोमती नगर थाने में कराई गई थी। इस एफआईआर में दो कंपनियां नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड और गिरासो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड का नाम था जिन्होंने चीनी मिलें खरीदी थीं। योगी सरकार को जांच में ये दोनों कंपनियां बोगस मिली थीं। सीएजी जांच में भी चीनी मिलों की बिक्री को लेकर बड़ा घोटाला सामने आया था। इसमें संदेह नहीं कि मायावती के सत्ता में आने के बाद आनंद कुमार की संपत्ति अचानक तेजी से बढ़ी। उनके ऊपर फर्जी कंपनी बनाकर करोड़ों रुपये लोन लेने का आरोप भी लगा। उन्होंने पहले एक कंपनी बनाई थी। 2007 में मायावती की सरकार आने के बाद आनंद कुमार ने एक के बाद एक लगातार 49 कंपनियां खोलीं। देखते ही देखते वह 1,316 करोड़ की संपत्ति के मालिक बन गए। उन पर रियल एस्टेट में निवेश कर करोड़ों रुपये मुनाफा कमाने का भी आरोप है। इस मामले की जांच आयकर विभाग कर रहा था। प्रवर्तन निदेशालय के पास भी इस मामले की जांच है। आनंद कुमार नवंबर 2016 में नोटबंदी के दौरान चर्चा में आए थे। उनके खाते में अचानक 1.43 करोड़ रुपये जमा हुए थे। इतनी बड़ी रकम उनके खाते में आने के बाद से वह एक बार फिर से जांच एजेंसियों की नजर में आ गए थे। जांच एजेंसियां पहले भी कई बार आनंद के घर और दफ्तरों में छापेमारी कर चुकी हैं। गौरतलब है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने हाल ही में कुमार को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया है।
रही बात मायावती की संपत्ति की तो उनके चुनाव के दौरान दिए गए आंकड़े बताते हैं कि उनके पास भी संपत्ति कम नहीं है। यह संपत्ति उनकी आय से ज्यादा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में लगी हाथियों की मूर्तियों, बसपा के संस्थापक कांशीराम और उनकी खुद की मूर्तियों को लेकर कहा कि इन पर खर्च पैसे सरकारी खजाने में जमा करना चाहिए। मायावती पर जांच एजेंसियों और अदालत का शिकंजा कसता जा रहा है। अभी भाई और भाभी पर कार्रवाई हुई है। देर-सबेर कानून के हाथ में उनका अपना गला भी हो सकता है।