मटिया महल सीट पर भाजपा और कांग्रेस का अब तक नहीं खुल सका खाता

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वर्ष 1993 से लगातार पांच बार विधायक रहे हैं शोएब इकबाल



नई दिल्ली, 28 जनवरी (हि.स.)। दिल्ली में मटिया महल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र एक ऐसी सीट है जहां से आज तक न तो भाजपा का खाता खुला है और न ही कांग्रेस का। वर्ष 1993 से दिल्ली विधानसभा का यह सातवां चुनाव हो रहा है। इस सीट पर शोएब इकबाल वर्ष 1993 से 2013 तक लगातार पांच बार जीते, लेकिन वर्ष 2015 के मध्यावधि चुनाव में वह आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार असीम अहमद खान से हार गये थे। शोएब ने यह चुनाव पहली बार कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लड़ा था। इस बार के चुनाव में आप ने अपने मौजूदा विधायक असीम अहमद खान को टिकट नहीं देकर कांग्रेस से पार्टी में आए शोएब इकबाल को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं भाजपा ने रविंद्र गुप्ता और कांग्रेस ने मिर्ज़ा जावेद अली को चुनाव मैदान में उतारा है।

करीब आठ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी सात सीटें जीतीं। लोकसभा चुनाव के इन नतीजों का यदि विधानसभावार आकलन करें तो सभी 70 विधानसभा सीटों में से 65 पर भाजपा पहले नंबर पर रही, जबकि बाकी पांच सीटों पर कांग्रेस।

हर बार की तरह इस बार भी मटिया महल सीट पर सभी की नजरें टिकी हैं, जोकि कांग्रेस के बागी और फिलहाल सत्ताधारी आप के उम्मीदवार इकबाल का गढ़ माना जाता है। मटिया महल इलाका मध्य दिल्ली जिले का हिस्सा है। मुगलकाल में यह इलाका एक बड़े फुटकर बाजार के रूप में जाना जाता था। वर्ष 1993 में हुए विधानसभा के चुनाव में इस सीट से जनता दल के उम्मीदवार के रूप में शोएब इकबाल ने भाजपा की बेगम खुर्शीद को हराकर अपनी जीत का आगाज किया था। तब से वह लगातार 2013 तक जीत दर्ज करते रहे हैं। हालांकि 2015 के चुनाव में केजरीवाल की पार्टी आप की आंधी में शोएब इकबाल का किला ढह गया था। आप के उम्मीदवार आसिम अहमद खान ने इकबाल को 26 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया था।

निर्णायक भूमिका निभाते हैं मुस्लिम मतदाता

मटिया महल विधानसभा सीट चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र में आता है। इस क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता प्रभावी संख्या में होने के कारण निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। मुस्लिम आबादी ज्यादा होने के कारण चुनाव में यहां पर धार्मिक कार्ड भी खूब खेला जाता है। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय की दिल्ली में पहली पसंद आम आदमी पार्टी बनी थी। इसका नतीजा रहा कि मुस्लिम बहुल सीटों पर आप के उम्मीदवारों ने कांग्रेस के दिग्गजों को करारी शिकस्त देकर कब्जा जमाया था। आप ने सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में जीत दर्ज की थी। आप से जीते चार मुस्लिम विधायकों में से एक विधायक को केजरीवाल ने मंत्री बनाया था। इसके पहले 2013 के चुनाव में कांग्रेस के चार मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे। इस बार दिल्ली में भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को चुनाव मैदान में नहीं उतारा है। जबकि कांग्रेस और आप ने पांच-पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं।

पिछले दो चुनावों में किसको कितना मिले वोट

वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में आप उम्मीदवार असीम अहमद खान को 47,584 मत मिले थे। उन्होंने कांग्रेस के शोएब इकबाल को 26 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया था। शोएब इकबाल को कुल 21,488 मत मिले थे।

वर्ष 2013 के चुनाव में शोएब इकबाल ने जदयू उम्मीदवार के तौर पर अपनी किस्मत आजमाई थी। उनको 22,732 मत मिले थे। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार मिर्जा जावेद अली को 2,891 मतों से पराजित किया था। जावेद अली को कुल 19,841 मत मिले थे।

क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे

इलाके की खराब सड़कें, पाइपलाइन से पानी की कमी और सीवर कनेक्शन क्षेत्र के मुख्य मुद्दे हैं। संकरी गलियों के साथ बिजली तारों के जंजाल भी लोगों की चिंता का मुख्य कारण है। इस क्षेत्र में अधूरे काम इस बार आप के लिए मुसीबत बन सकते हैं।

कौन कब जीता

2015 – असीम अहमद खान, आम आदमी पार्टी

2013 – शोएब इक़बाल, जदयू

2008 – शोएब इकबाल, लोजपा

2003 – शोएब इक़बाल, जदएस

1998 – शोएब इक़बाल, जनता दल

1993 – शोएब इक़बाल, जनता दल

चौधरी ब्रह्म प्रकाश थे पहले मुख्यमंत्री

देश में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के करीब दो साल बाद दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुये। कांग्रेस को बहुमत मिला और चौधरी ब्रह्मप्रकाश ने 17 मार्च 1952 को प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। वह इस पद पर 12 फरवरी 1955 तक रहे। इसके बाद कांग्रेस के ही गुरुमुख निहाल सिंह दूसरे मुख्यमंत्री बने। सिंह इस पद पर 12 फरवरी 1955 से एक नवम्बर 1956 तक रहे। इसके बाद दिल्ली में मुख्यमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया। यानी दिल्ली में एक नवम्बर 1956 से दो दिसम्बर 1993 तक मुख्यमंत्री का पद नहीं हुआ करता था। इस दौरान दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल थी और इसके प्रमुख को चीफ एग्जिक्यूटिव काउंसलर (सीईसी) कहा जाता था। दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल को विधायी शक्तियां नहीं प्राप्त होने से शासन संचालन में दिक्कतें आती थीं। इस कारण फिर से विधानसभा की मांग उठने लगी। इन मांगों पर विचार के लिए केंद्र सरकार ने 24 दिसम्बर 1987 को बालकृष्ण कमेटी का गठन किया। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 14 दिसम्बर 1989 को सौंपी। कमेटी की सिफारिश के आधार पर ‘संघशासित क्षेत्र दिल्ली’ को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) दिल्ली कहा जाने लगा। वर्ष 1993 में एनसीटी-दिल्ली विधानसभा के लिए चुनाव कराये गए। भाजपा को बहुतम मिला और मदनलाल खुराना ने दो दिसम्बर 1993 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। तब से लेकर विधानसभा का यह सातवां चुनाव हो रहा है। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 22 फरवरी 2020 तक है। इस बार 70 सदस्यीय विधानसभा के लिए आठ फरवरी को मतदान होगा और मतगणना 11 फरवरी को होगी।

 


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