देश-दुनिया में कोरोना से पहले भी तबाही मचा चुके हैं कई वायरस
नई दिल्ली, 10 अप्रैल (हि.स.)। देश-दुनिया में कोरोना वायरस की महामारी ने आम लोगों के जीवन को परेशान करके रख दिया है। इस खतरनाक वायरस से दुनिया में जहां 16 लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं, वहीं 95 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में इससे 6700 से अधिक लोग संक्रमित हैं, जबकि 237 मौत के शिकार हो चुके हैं। लेकिन विश्व में सिर्फ कोरोना ही ऐसा वायरस नहीं है जिसने तबाही मचा रखी है बल्कि इससे पहले के दशकों में इंफ्लूएंजा, रेबीज, डेगूं, इबोला, सार्स, मारबर्ग, स्मालपाक्स, हंता, एचआईबी व मर्स आदि ऐसे वायरस रहे हैं जिसके कारण भी देश औऱ दुनिया में महामारी फैली और लाखों लोगों को जान गई।
देखा जाए तो 1918 में इंफ्लूएंजा ने भारी तबाही मचाई थी और करीब 5 करोड़ लोगों की जान गई थी। भारत में हर साल इंफ्लूएंजा के करीब 1 करोड़ मामले सामने आते हैं। यह भी एक महामारी है और इसके लक्षण भी कोरोना वायरस जैसे ही हैं। इसके किसी न किसी वायरस से हर साल करीब 5 लाख लोग मारे जाते हैं। 1580 के करीब यह रूस, यूरोप और अफ्रीका में फैला था। रोम में इसके कारण 8,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। इसी तरह का रेबेजी भी है जो पालतू कुत्तों के काटने से फैलता है। इस वायरस का पता पहली बार 1920 में चला था। कुत्ते के काटने पर इलाज नहीं हो तो इंसान की जान भी जा सकती है। रेबीज के मामले भारत और अफ्रीका में अधिकतर देखे जाते हैं।
पिछले दशक में डेंगू ने मचाया था कोहराम:
यह मच्छरों के काटने से फैलता है और दिल्ली-एनसीआर जैसे शहरों में हर साल इसके कई मामले सामने आते हैं। हालांकि, इससे मरने वालों का प्रतिशत 20 ही है। डेंगू के बारे में पहली जानकारी 1950 में फिलीपींस और थाईलैंड में मिली थी। लेकिन बाद के वर्षों में इसके कारण देश में बड़े पैमाने पर यह रोग फैला। वर्ष 2014 में 40571 लोग इसका शिकार हुए और अगले ही साल यह आंकड़ा दोगुना हो गया। वहीं साल 2015 में 99913 लोगों में डेंगू के मामले सामने आए। उसके बाद साल 2016 में 129166 और 2017 में 150482 लोग डेंगू से प्रभावित हुए थे।
मारबर्ग वायरस:
मारबर्ग वायरस वर्ष 1967 में जर्मनी की एक लैब से लीक हो गया था जो कि बंदरों से इंसानों में आया था। जो व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित होता है उसे तेज बुखार के अलावा शरीर के अंदर अंगों से खून निकलने लगता है। इसके कारण व्यक्ति की जान भी जा सकती है। मारबर्ग को एक जानलेवा वायरस बताया गया था।
इसी तरह से इबोला का पता पहली बार 1976 में कांगो और सूडान में चला था। इस वायरस के कारण भी कई लोगों की मौत हुई थी। 1976 के बाद इस वायरस ने 2014 में अफ्रीका में तबाही मचाई थी। इसके अलावा वायरस स्मॉलपॉक्स को चेचक भी कहा जाता है। स्मॉलपॉक्स को खत्म करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1980 में मुहिम चलाई थी जिसके बाद लोगों को टीके लगाए गए। 20वीं सदी में इस रोग से 30 करोड़ लोगों की जान चली गई थी।
हंता वायरस भी एक महामारी का ही नाम है। कोरोनो के तुरंत बाद चीन में हंता वायरस से एक शख्स की मौत हो गई, लेकिन इस वायरस के बारे में पहली बार 1993 में पता चला था। यह वायरस चूहों से फैला था और चंद दिनों में 600 लोगों की मौत हो गई थी।
वायरस की कड़ी में अगला नाम मर्स का है जिसके बारे में वर्ष 2012 में पता चला था। सबसे पहले यह सऊदी अरब में फैला था। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति में निमोनिया और कोरोना वायरस के लक्षण मिले थे। इस वायरस से संक्रमित होने पर बचने की संभावना 50 फीसदी ही होती है। कहा जाता है कि मर्स भी कोरोना परिवार का ही वायरस है। इसके अलावा सार्स को कोरोना वायरस के पूर्वज का दर्जा मिला है। यह वायरस भी कोरोना की तरह चीन से ही फैला। सार्स चीन के गुआंगडांग प्रांत से आया था। यह वायरस भी चमगादड़ों से ही इंसानों में पहुंचा था। इस वायरस ने 2 साल में 8 हजार लोगों की जान ली थी। सार्स दुनिया के 26 देशों में फैला था।
अगले वायरस का नाम ह्युमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) है। एचआईवी से पीड़ित होने पर बचने की संभावना बहुत ही कम होती है क्योंकि इससे संक्रमित 96 फीसदी लोगों की मौत हो चुकी है। यह पहली बार 1980 में सामने आया था और अब तक यह 3.20 करोड़ लोगों की जान ले चुका है। वहीं रोटो वायरस से भी हर करीब 4 लाख बच्चों की मौत हो जाती है।