कैग की समीक्षा रिपोर्ट एक साल से ममता सरकार की फाइलों में बंद

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राज्य के आर्थिक कोष, कर संग्रह, कर्ज का परिमाण, राज्य पर मौजूदा ब्याज समेत अन्य आर्थिक आंकड़ों की रिपोर्ट कैग तैयार करता है। इससे हर साल राज्य के आर्थिक नफ़ा-नुकसान की पूरी तस्वीर साफ होती है।



कोलकाता, 17 जुलाई (हि.स.)। भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (‍कैग) द्वारा की गई समीक्षा रिपोर्ट को एक साल से पश्चिम बंगाल सरकार ने सचिवालय में ही फाइलों में बंद रखा है। विधानसभा का बजट सत्र हाल ही में संपन्न हुआ है लेकिन बंगाल सरकार ने इसे लेकर पूरी तरह से निष्क्रियता बरती है। इसकी वजह से कैग पश्चिम बंगाल से संबंधित रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं कर पा रहा है।
दरअसल राज्य के आर्थिक कोष, कर संग्रह, कर्ज का परिमाण, राज्य पर मौजूदा ब्याज समेत अन्य आर्थिक आंकड़ों की रिपोर्ट कैग तैयार करता है। इससे हर साल राज्य के आर्थिक नफ़ा-नुकसान की पूरी तस्वीर साफ होती है। विगत एक साल में सीएजी ने पश्चिम बंगाल से संबंधित छह रिपोर्ट राज्य के वित्त विभाग को दी हैं लेकिन एक साल के अंदर विधानसभा का सत्र आया और चला गया। बजट सत्र भी हाल में बीत चुका है लेकिन बंगाल सरकार के वित्त विभाग ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है। जानकारों के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 के बीच कैग ने रिपोर्ट दी थी। साल 2018 के मार्च से जुलाई के बीच उन रिपोर्टों को राज्य सचिवालय में वित्त विभाग को भेज दिया गया था।
सीएजी रिपोर्ट मिलने के बाद राज्य सरकार उसे विधानसभा के पटल पर रखती है। सीएजी ने विभिन्न राज्यों की 127 रिपोर्ट पेश कर दी है लेकिन बाकी सभी राज्यों ने उन रिपोर्टों को विधानसभा के पटल पर रख दिया है जबकि पश्चिम बंगाल ने छह रिपोर्टों को और जम्मू कश्मीर में तीन रिपोर्ट को अभी तक सदन में पेश नहीं किया। नगालैंड ने भी दो रिपोर्ट को अभी तक पेश नहीं किया है। कुल मिलाकर 11 रिपोर्टें अभी भी प्रकाशन के इंतजार में हैं।
वित्त मंत्री से नहीं मिल रही अनुमति
राज्य वित्त विभाग के एक अधिकारी ने बुधवार को नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि  मंत्रालय की अनुमति के बिना इसे सदन में पेश नहीं किया जा सकता। 2016-17 के पहले की सारी रिपोर्ट पेश कर दी गई है। सूत्रों का कहना है कि मौजूदा रिपोर्ट में जीएसटी के जरिए राज्य सरकार के आर्थिक कोष में बढ़ोतरी का जिक्र किया गया है। इसके अलावा नोटबंदी और जीएसटी के कारण पश्चिम बंगाल के आर्थिक सुधारों को भी बल मिला है। अगर इस रिपोर्ट को राज्य सरकार विधानसभा में रखती है तो इससे केंद्र के इन दोनों फैसले के खिलाफ लगातार विरोध कर रही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और वित्त मंत्री अमित मित्रा के दावे पर सवाल उठने लगेंगे। इसकी वजह से राज्य सरकार इस रिपोर्ट को पेश नहीं कर रही हैं।
इसे पेश नहीं करने की वजह से देश की समग्र आर्थिक स्थिति का आकलन कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है। सीएजी प्रत्येक राज्य की आर्थिक स्थिति से संबंधित रिपोर्ट पेश करती है। संबंधित राज्य उसे जब विधानसभा में पेश करते हैं तो उसकी एक समग्र सूची बनाकर कैग एक अंतिम रिपोर्ट पेश करता है।
सख्ती बरत सकता है कैग
कैग की ओर से बताया गया है कि 2018 में ही इन सभी रिपोर्टों को विधानसभा के पटल पर रख दिया जाना चाहिए था लेकिन एक साल से अधिक समय बीतने पर भी बंगाल सरकार निष्क्रिय बनी हुई है। नियम है कि कैग की रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने के पहले सदन के पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के पास रखा जाता है। उसमें अगर कोई समस्या होती है तो उसके समाधान के लिए सिफारिश की जाती है। कई बार कैग रिपोर्ट के विस्तृत अध्ययन से बड़े-बड़े भ्रष्टाचार का भी खुलासा हुआ है। अब जब राज्य सरकार इसे सदन के पटल पर नहीं रखने से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
साल  2011 में जब ममता बनर्जी की सरकार बनने के बाद से लेकर तीन सालों तक राज्य सरकार ने राज्य की आर्थिक आय और व्यय की रिपोर्ट भी विधानसभा में पेश नहीं की थी। बाद में सीएजी के लेकर सख्त रुख के बाद दबाव में आई ममता सरकार ने 2011 के बाद सीधे 2014 में राज्य के आय-व्यय की रिपोर्ट सदन में रखी थी। वित्त वर्ष 2015-16 में भी इसी तरह से ममता बनर्जी की सरकार ने रिपोर्ट को दबा दिया, जिसके बाद कैग ने सख्त रुख अख्तियार किया था। इस बार पश्चिम बंगाल में कटमनी और मेट्रो डेयरी घोटाला उजागर हुआ है। ऐसे में कैग की रिपोर्ट काफी अहम है। अगर जल्द राज्य सरकार इसे प्रकाशित नहीं करती है तो कैग एक बार फिर इस पर सख्त रुख अख्तियार करने वाला है।

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