नई दिल्ली, 31 जनवरी (हि.स.)। संयुक्त राष्ट्र की ओर से शांति स्थापित करने के लिए तैनात किए गए भारतीय सेना के मेजर अविनाश पाण्डेय को इसलिए वीरता का सेना मैडल दिया गया है क्योंकि उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो में चल रहे सशस्त्र संघर्ष के दौरान 40 हथियारबंद विद्रोहियों का आत्मसमर्पण कराने के साथ ही वहां फंसे असंख्य लोगों की इनसे जान भी बचाई। इस बहादुरी के लिये संयुक्त राष्ट्र ने भी मेजर पाण्डेय को सराहा है और आगे सम्मानित किया जाना है। इस समय भी शांति स्थापना के लिये कांगो में भारत के अलावा कई अन्य देशों के सैनिक तैनात हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अभियान के तहत कांगो में दुनिया की सबसे बड़ी शांतिरक्षक सेना तैनात हैं जिसमें विभिन्न देशों के कुल 20 हज़ार सैनिक हैं। इस मिशन के लिये भारतीय सैनिकों की भी समय-समय पर तैनाती होती रहती है। संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत कांगो में फिलहाल कुल 2,664 जवान तैनात हैं। अक्टूबर, 2017 में भी संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत कांगो में तैनात भारतीय सेना पर मिलिशिया विद्रोहियों के 30 सदस्यों ने एक बड़ा हमला किया था। इससे पहले अगस्त, 2010 में आम नागरिकों के एक समूह की मदद कर रहे भारतीय सैनिकों पर तलवारों से लैस दर्ज़नों उग्रवादियों ने हमला किया था। अफ्रीकी देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो में सक्रिय विद्रोही अक्सर भारतीय सैनिकों पर हमले करते रहते हैं लेकिन इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र की ओर से शांति स्थापित करने के लिए यह मिशन दशकों से चल रहा है।
कांगो में जिस तरह शांतिरक्षक सैनिकों पर हमले हो रहे हैं उन्हें देखते हुए आम नागरिकों की रक्षा करने के लिये तैनात भारतीय सैनिकों की बहादुरी वाकई सम्मानित किये जाने लायक है। इस बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम भारतीय सेना के मेजर अविनाश पाण्डेय ने रोशन किया है। वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ अंतर्गत कुड़वारा गांव के निवासी हैं। 2012 में सेना में लेफ्टिनेंट पद पर कमीशन पाने वाले अविनाश के पिता घनश्याम पाण्डेय भी सेना में कर्नल हैं। वह इस समय पठानकोट, पंजाब में तैनात हैं। मेजर अविनाश का विवाह कानपुर निवासी रवीन्द्र मोहन दीक्षित की पुत्री आस्था से 6 साल पहले शादी हुई थी। वह इस समय 5 कुमायूं यूनिट में तैनात हैं। उनकी यूनिट अमृतसर में भी तैनात रही है जहां उनकी पत्नी आस्था पाण्डेय सैनिक स्कूल में टीचर हैं। इसके बाद उनकी यूनिट बेलगाम (कर्नाटक) भेज दी गई जहां वे दो साल रहे।
इसके बाद मेजर अविनाश पाण्डेय की तैनाती जम्मू-कश्मीर में की गई। यहां तैनाती के दौरान मार्च, 2019 में आतंकियों ने पुलवामा में एक मकान पर आधा दर्जन से अधिक लोगों को बंधक बना लिया। इस घटना ने मेजर अविनाश ने 6 लोगों को बचा लिया लेकिन इन्हीं के सामने आतंकियों ने एक बच्चे को जिंदा जला दिया था। बच्चे को न बचा पाने की वजह से इस घटना का मेजर के दिमाग पर इतना गहरा असर पड़ा कि वह एक माह तक डिप्रेशन में रहे। स्वस्थ होने के बाद फिर कश्मीर में आतंकवादियों से मोर्चा लेने के दौरान बहादुरी के कई ऐसे कारनामे किये जिस पर उन्हें यूनिट स्तर पर प्रशंसित किया गया।
इस बीच भारतीय सेना ने 5 जून, 2019 को संयुक्त राष्ट्र के अभियान में भारतीय अधिकारियों और सैनिकों का एक दल भेजा था तो उसमें विभिन्न इकाइयों के साथ 5 कुमायूं रेजिमेंट के मेजर अविनाश पाण्डेय को भी शामिल किया गया। संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत कांगो में एक साल के लिये तैनात किये गये मेजर अविनाश पाण्डेय ने हथियारबंद उग्रवादियों से मोर्चा लिया। भारतीय सेना को 17 जुलाई, 2020 को दो गुटों के बीच झड़पों का इनपुट मिला जिस पर एक ‘क्विक रिएक्शन फोर्स’ मेजर अविनाश पांडे के नेतृत्व में भेजी गई। यह टीम जब मौके पर पहुंची तो पता चला कि हथियारबंद उग्रवादियों ने वहां के नागरिकों को बंधक बना रखा है जिस पर भारतीय सेना ने नागरिकों को मुक्त कराने के साथ ही उग्रवादियों से समर्पण के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू की।
कांगो के जंगलों के बीच अचानक भारतीय सेना की इस कार्यवाही से स्थानीय ग्रामीणों में घबराहट फैल गई। फिर भी क्षेत्र को हथियारबंद उग्रवादियों से खाली कराने और फंसे ग्रामीणों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए जगह चिह्नित की गई। आखिरकार रातभर चले संघर्ष के बाद सुबह मेजर अविनाश के नेतृत्व में ‘क्विक रिएक्शन फोर्स’ 40 हथियारबंद उग्रवादियों का समर्पण कराने में सफल रही और बंधक बने असंख्य नागरिकों की जान बची। इस बहादुरी के कारनामे के लिये अविनाश के अदम्य साहस को संयुक्त राष्ट्र ने भी सराहा और आगे सम्मानित किया जाना है। गणतंत्र दिवस पर भारत सरकार की ओर से भी मेजर अविनाश पाण्डेय को सेना मैडल (वीरता) दिया गया है।