नई दिल्ली, 25 नवम्बर (हि.स.)। महाराष्ट्र में सरकार गठन के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट कल यानि 26 नवम्बर (मंगलवार) को फैसला सुनाएगा।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यपाल के सचिव की लिखी चिट्ठी और दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट को दिए जिसमें विधायकों के हस्ताक्षर वाला सूची का समर्थन पत्र भी है। तुषार मेहता ने कहा कि 24 अक्टूबर से 9 नवम्बर तक राज्यपाल सरकार बनाने के लिए पार्टियों का इंतजार कर रहे थे कि वो दावा करें। सबसे पहले राज्यपाल ने बीजेपी को बुलाया, फिर शिवसेना, फिर एनसीपी लेकिन कोई नहीं आया। 12 नवम्बर को राष्ट्रपति शासन लगाया गया। मेहता ने कहा कि अजित पवार ने 54 विधायकों के समर्थन पत्र दिया था जिसे गवर्नर के पास दिया गया था। इस पत्र में पवार ने खुद को एनसीपी विधायक दल का नेता बताया था। तुषार मेहता ने कोर्ट को राज्यपाल का फडणवीस को शपथ ग्रहण के लिए आमंत्रित करने वाला पत्र कोर्ट को सौंपा। इसके मुताबिक राज्यपाल को भरोसा था कि फडणवीस के पास 170 विधायकों का समर्थन हासिल था और इनमे सभी 54 एनसीपी विधायक शामिल थे। मेहता ने कहा कि राज्यपाल के पास समर्थन पत्र था, इसलिए उन्होंने सरकार बनाने के लिए बुलाया। ये राज्यपाल का काम नहीं है कि वो जांच कराए कि इनके पास बहुमत कैसे आया। तुषार मेहता ने कहा कि संवैधानिक सवाल पर आदेश देने की जरूरत नहीं है। सवाल हॉर्स ट्रेडिंग का नहीं है सवाल स्थिरता का है।
बीजेपी की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि एक पवार हमारे साथ हैं और दूसरे ने इस कोर्ट में याचिका दायर की है। ये उनका पारिवारिक मामला है। इससे हमें कोई लेना-देना नहीं है। ये मामला कर्नाटक मामले से बिल्कुल अलग है। तब सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकार के पास बहुमत है या नहीं इसका पता केवल फ्लोर टेस्ट यानी बहुमत परीक्षण से चल सकता है। जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि विधायकों के पत्र में यह कहीं नहीं है कि वे किसे समर्थन कर रहे हैं। तब रोहतगी ने कहा कि समर्थन का पत्र संलग्न है। रोहतगी ने कहा कि मेरा सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश जारी कर सकता है, इस पर मेरा जवाब है कि नहीं। रोहतगी ने कहा, अब जो होगा विधानसभा के फ्लोर पर होगा। लेकिन राज्यपाल पर आरोप क्यों? उन्होंने भी तो फ्लोर टेस्ट के लिए ही बोला है। फ्लोर टेस्ट कब होगा यह तय करने का अधिकार राज्यपाल को है। इसे कोर्ट को तय नहीं करना चाहिए।
अजित पवार की ओर से मनिंदर सिंह ने कहा कि 22 नवम्बर को मैंने एनसीपी विधायक दल के नेता के रूप में फैसला लिया था। उस समय उसके उलट कोई फैसला नहीं हुआ था।
शिवसेना की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 22 नवम्बर को शाम 7 बजे गठबंधन की घोषणा की गई। ऐसे में राज्यपाल 24 घंटे इंतजार नहीं कर सकते थे। हमारे पास 154 विधायकों का हलफनामा है। हमारे पास इस बात का मूल हलफनामा है कि अजीत पवार को एनसीपी को प्रतिनिधित्व करने का अधिकार नहीं था। वो एनसीपी का हिस्सा नहीं थे। सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल के फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है और ये बोम्मई केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था।
अखिल भारत हिन्दू महासभा की तरफ से कहा गया कि उन्होंने कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के गठबंधन को चुनौती दी है। हिन्दू महासभा ने मांग की है कि इस मामले के साथ सुनवाई की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को साथ सुनने से इनकार कर दिया।