नई दिल्ली, 23 नवम्बर (हि.स.) । एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजीत पवार राजनीतिक जोड़तोड़ के मामले में अपने चाचा के ‘नक्शेकदम’ पर चलते दिख रहे हैं। 54 सीटों वाली एनसीपी के विधायक दल के नेता अजीत पवार ने जिस तरह से भाजपा को समर्थन देने की घोषणा की, वह उनके चाचा शरद पवार के राजनीतिक दांव-पेंच की याद दिला रहे हैं।
अजीत पवार वर्ष 1991 में बारामती लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पहली बार सांसद बने, लेकिन कुछ महीने बाद ही उन्होंने यह सीट अपने चाचा शरद पवार के लिए छोड़ दी थी। शरद पवार उस समय बारामती विधानसभा सीट से विधायक थे। शरद पवार ने भी विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। लोकसभा और विधानसभा की दोनों सीटों पर उपचुनाव हुए। शरद पवार सांसद और अजीत पवार विधायक बने। 60 वर्षीय अजीत पवार बारामती विधानसभा सीट से लगातार सातवीं बार जीते हैं। शरद पवार ने जब एनसीपी बनायी तो अजीत पवार उनके साथ चले गये।
शरद पवार ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस से की थी। वर्ष 1967 में पहली बार बारामती सीट से पहली बार विधानसभा में पहुंचे। 21 मार्च 1977 को आपातकाल खत्म होने के बाद देश में लोकसभा के चुनाव हुए। चुनाव के बाद कांग्रेस में विभाजन हो गया। पहला धड़ा कांग्रेस-(यू) के नाम से जाना गया, जबकि दूसरा कांग्रेस-(आई)। शरद पवार कांग्रेस-(यू) में शामिल हुये। वर्ष 1978 में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हुए। कांग्रेस-(आई) और कांग्रेस-(यू) अलग-अलग चुनाव लड़ीं, लेकिन जनता पार्टी को सत्ता में आने से रोकने के लिए मिलकर सरकार बनायीं। कुछ महीने बाद शरद पवार कुछ विधायकों को लेकर कांग्रेस-(यू) से अलग हो गए और जनता पार्टी के समर्थन से 18 जुलाई 1978 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पवार की उम्र उस समय सिर्फ 38 साल थी। इसके बाद पवार 1986 में फिर कांग्रेस में शामिल हुए और राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे।
शरद पवार ने वर्ष 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनायी। पवार के साथ कांग्रेस छोड़ने वालों में पी.ए. संगमा, तारिक अनवर और अजीत पवार भी थे। इसके बाद एनसीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में वर्ष 1999 से लेकर 2014 तक लगातार 15 साल तक सरकार चलायी। इस दौरान लगातार चार साल तक अजीत पवार उपमुख्यमंत्री रहे।