नहाय-खाय के साथ लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शुरू
रांची, 31 अक्टूबर (हि.स.)। नहाय-खाय के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान गुरुवार को शुरू हो गया। शुद्धता.-पवित्रता के इस पावन पर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान के पहले दिन व्रतियों ने नहाय-खाय के साथ छठी मइया से मंगलकामना की। घरों में तालाबों-नदियों से जल भरकर लाए गए। इसके बाद स्वच्छता से सेंधा नमक और शुद्ध घी में प्रसाद बनाया गया। शुक्रवार को दिनभर निर्जला उपवास के बाद शाम में खरना का प्रसाद ग्रहण करने के साथ छठव्रतियों का 36 घंटे का निराहार-निर्जला उपवास शुरू होगा। शनिवार शाम को भगवान भाष्कर के अस्ताचलगामी स्वरूप को अर्घ्य दिया जाएगा। रविवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद चार दिनों के अनुष्ठान का समापन होगा।
नेम, निष्ठा, स्वच्छता, पवित्रता और अपार श्रद्धा का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान के पहले दिन गुरुवार को छठव्रतियों ने नहाय-खाय के दौरान सात्विक और परिशुद्ध अरवा चावल, चने की दाल और शुद्ध घी में कद्दू की सब्जी का प्रसाद ग्रहण किया। इस मौके पर पड़ोस और सगे-संबंधियों का भी जुटान रहा। उन सभी लोगों ने कद्दू-भात का प्रसाद पान किया। एक नवम्बर शुक्रवार को खरना है। उस दिन व्रती दिनभर निर्जला उपवास धारण करने के बाद शाम में नदियों और तालाबों में स्नान-ध्यान और सूर्य को अर्घ्य देने के बाद गोधुलि के पश्चात खरना करेंगे। उसमें दूध और गुड़ में बनी खीर के साथ ही रोटी और केला का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके चंद्रमा के दिखाई देते वक्त तक एक बार और जल ग्रहण करते हैं। इसके बाद व्रतियों को 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। दो नवंबर शनिवार को छठव्रती सांयकालीन अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को देंगे और और तीन अक्टूबर की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य और हवन के साथ चार दिवसीय अनुष्ठान का समापन हो जायेगा। इसके बाद व्रती पारण करेंगे।
छठ पूजा भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार झाऱखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश के साथ ही नेपाल में भी मनाया जाता है। महापर्व को लेकर बाजार में छठ पूजा के निमित्त सामग्री की दुकानें सोमवार से ही सज गईं। खासतौर से मिट्टी के चूल्हें, जलावन के लिए आम की लकड़ी, दउरा-सूप, मिट्टी के दीये, कलश आदि सामग्रियों की भरमार है। छठ की खरीदारी के लिए बाजारों में भीड़ उमड़ रही है।
फिजां में गूंजने लगे छठ के लोकगीत
दीपोत्सव के समापन के साथ ही शुरू हुई लोक आस्था के महापर्व छठ की तैयारियों और लोकगीतों से फिजां में महापर्व छठ की छटा छा गई है। गली-मोहल्लों में छठ के पारंपरिक मधुर गीत केलवा जे फरेले घवद से, उहे पर सुगा मंडराय…., कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी चलकत जाये…., हमहूं अरघिया देबई हे छठी मइया… गूंजने लगे हैं।
आरोग्य देवता के रूप माने जाते हैं भगवान सूर्य
पौराणिक काल से ही सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाता है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पायी गयी। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसन्धान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। सम्भवतः यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाकर विशेष सूर्योपासना की गयी। इससे शाम्ब को कुष्ठ से मुक्ति मिली थी और वे पूरी तरह ठीक हो गये थे।
सूर्य षष्ठीः कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को प्रारंभ और सप्तमी को समाप्ती
भारतीय सनातन धर्म में प्रत्यक्ष देवता सूर्य के आराधना छठ व्रत के रूप में की जाती है। इसे सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है। लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। लोकआस्था का पर्व छठ ही एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें पंडित-पुरोहितों के बिना ही लोग सूर्य देव की आराधना करते हैं। छठ पूजा चार दिवसीय अनुष्ठान है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है और समापन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को। छठ व्रती लगातार 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। इस व्रत में शुद्धता पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है।
आस्था के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है
आस्था के साथ ही इस पर्व का वैज्ञानिक महत्व भी है। सूर्य को जल देने की बात करें तो इसके पीछे रंगों का विज्ञान छिपा है। मानव शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से भी कई रोगों के शिकार होने का खतरा होता है। सुबह के समय सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से ये रंग संतुलित हो जाते हैं। प्रिज्म के सिद्धांत से जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ जाती है। सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन डी शरीर में पूरा होता है। त्वचा के रोग कम होते हैं।
लोक आस्थाः पूरे समाज का जुड़ाव, छुआछूत का ककहरा पढ़ने वाले भी हो जाते हैं मौन
लोक आस्था के छठ पर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान में पूरे समाज का जुड़ाव होता है। इसमें स्वच्छता और पवित्रता के साथ ही हर तबके का ख्याल रखा गया है। छुआछूत का ककहरा पढ़ने वाले भी मौन हो जाते हैं। जिस सूप से अर्घ्य दी जाती है और जिस दउरे में सूप सजा कर घाट तक जाते हैं, उसे समाज का महादलित समाज बनाता है। मिट्टी के सारे सामान कुम्हार भाई-बंधु बनाते हैं। इसके अलावा इस महापर्व में मौसमी फलों और सब्जी की प्रधानता है। उसे हमारे कृषक भाई उपजाते हैं। इसके अलावा जिसकी जैसी आस्था और सामर्थ्य है, उसके अनुसार सभी लोग छठ पर्व में साफ-सफाई से लेकर प्रसाद बनाने और वितरित करने सहित सभी काम में एक-दूसरे की मदद करते हैं।