काशी का महामृत्युंजय मंदिर,रोग व्याधि और अकाल मृत्यु से बचाव के लिए होता है जप
वाराणसी, 29 जुलाई (हि.स.)। सावन मास स्वयं महादेव को अतिशय प्रिय है। सावन मास में महादेव की आराधना से सभी मनोकामना पूरी होने के साथ गंभीर बीमारी और अन्य संकटों से मुक्ति मिलती है। रोग व्याधि और अकाल मृत्यु से बचने के लिए काशी में श्रद्धालु शिव के महामृत्युंजय स्वरूप की आराधना करते है।
मान्यता है कि महामृत्युंजय स्वरूप का आखों से दर्शन और शब्द का उच्चारण कानों में सुनाई भर दे तो गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति भी रोग सैया से उठ बैठता है। महादेव का ये स्वरूप अकाल मृत्यु से अपने भक्तों को बचाता है। बनारस में महामृत्युजंय मंदिर दारानगर मोहल्ले में स्थित है। यहां महादेव का पावन विग्रह स्वंभू है। मंदिर के महंत पं. सोमनाथ दीक्षित का कहना है कि विग्रह को मंदिर में किसी ने नही स्थापित किया है। उन्होंने बताया कि शिवभक्त मंदिर में 40 सोमवार को लगातार हाजिरी लगाये तो उनकी सभी मनोकामना पूर्ति होती है। मंदिर के अंदर धनवंतरी कूप भी है। इस कूप का पानी पीने से पेट की बीमारियों से मुक्ति मिलती है, ऐसा लोगों में विश्वास है। इस कूप में भगवान धनवंतरी ने खुद जड़ी बूटियां डाली थी। पं.सोमनाथ बताते है कि मंदिर में महाकालेश्वर भी विराजमान है। मंदिर परिसर में स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान जी का मंदिर स्थापित किया था। परिसर में नागेश्वर महादेव का भी विग्रह मौजूद हैं। मंदिर परिसर के यज्ञशाला में महामृत्यंजय जप साधना भी होता है। यहां वैदिक ब्राम्हण लोगों को गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए महामृत्युंजय जप करते है।
महामृत्युंजय मंत्र को लेकर पौराणिक कथा है। शिव भक्त ऋषि मृकण्डु ने संतान प्राप्ति के लिए महादेव की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने ऋषि मृकण्डु को इच्छानुसार संतान प्राप्त होने का वर दिया । वर देने के बाद महादेव ने ऋषि मृकण्डु को बताया कि यह पुत्र अल्पायु होगा। यह सुनते ही ऋषि मृकण्डु विषाद से घिर गए। कुछ समय बाद ऋषि मृकण्डु को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ऋषि मृकण्डु को पता चला कि उनके संतान की उम्र केवल 16 साल ही होगी। ऋषि को दुखी देख उनकी पत्नी ने विषाद का कारण पूछा तो ऋषि ने बताया कि पुत्र की उम्र महज 16 साल ही है। इस पर ऋषि पत्नी ने कहा कि चिंता क्यों करते है। महादेव की लम्बी उम्र के लिए कृपा होगीं। ऋषि ने अपने पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा और उन्हें शिव मंत्र दिया।
बालक मार्कण्डेय महादेव की नियमित आराधना करते थे। मार्कण्डेय को 16वें वर्ष में प्रवेश करतेे ही ऋषि मृकण्डु उदास हो गये। पुत्र ने इसका कारण पूछा तो ऋषि ने पुत्र की अल्पायु की बात बताई। पिता की बात सुनकर किशोरवय मार्कण्डेय ने महादेव की घोर आराधना शुरू कर दी। इस दौरान किशोर मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठ कर इसका अखंड जाप भी करने लगे। कथा के अनुसार समय पूरा होने पर मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए यमदूत मंदिर में आए। किशोर को महादेव की तपस्या में लीन देखकर उल्टे पाव यमलोक पहुंचे और महाराज यमराज को पूरी बात बताई।
इसके बाद यमराज स्वयं मंदिर में प्राण हरने पहुंचे। यमराज ने जब किशोर मार्कण्डेय का प्राण हरना चाहा तो वे शिवलिंग से लिपट गए। यह देख महादेव स्वयं प्रकट हो गये। उन्हें दखकर यमराज ने किशोर की नियति का जिक्र किया। इस पर महादेव ने मार्कण्डेय को दीर्घायु होने का वरदान दिया और कहा कि जो कोई भी इस मंत्र का नियमित जाप करेगा वह कभी अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा। महादेव का आर्शिवाद देख यमराज उनका अभिवादन कर अपने लोक में लौट गये।
पं.सोमनाथ ने बताया कि मंदिर में महामृत्युंजय का साल भर में चार विशेष श्रृंगार होता है। इसमें महामृत्युंजय के साकार रूप का श्रृंगार विशेष है। महादेव की आठ भुजाएं, सिर से चंद्र वर्षा, बगल में बगला मुखी माता विराजती हैं। बगला मुखी माता को यहां महादेव के अर्धांगिनी के रूप में मान्यता प्राप्त है। एक हाथ में रुद्राक्ष की माला तो चार भुजाओं में कलश है।
मंदिर में हाजिरी लगाने वाले पं.प्रवीण तिवारी ‘गुडडू’ बताते है कि महामृत्युंजय मंत्र लंबी उम्र और अच्छी सेहत का भी मंत्र है। स्कन्द पुराण के अवंती खंड में, शिव पुराण (ज्ञान संहिता अध्याय 38), वराह पुराण, रुद्रयामल तंत्र, शिव महापुराण की विद्येश्वर संहिता के तेइसवें अध्याय तथा रुद्रसंहिता के चौदहवें अध्याय में भगवान महाकाल की अर्चना, महिमा व विधान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। मृत्युंजय महाकाल की आराधना का मृत्यु शैया पर पड़े व्यक्ति को बचाने में विशेष महत्व है।