अपने भक्तों के लिए अन्नपूर्णा स्वरूप हैं माँ महागौरी

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महाष्टमी के पुण्य पर्व पर सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं।

आदिशक्ति मां दुर्गा की आठवीं स्वरूपा ‘‘माँ महागौरी’’ के पावन चरणों में सादर नमन। माता महागौरी का स्वरूप अत्यंत सुंदर, प्रकाशमय और ज्योतिर्मय माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार नवरात्रि के अष्टमी तिथि को विशेष तिथि के रूप में मनाया जाता है। इसी कारण इसे महाअष्टमी के रूप में मनाते हैं। मान्यता है कि जो भी महाअष्टमी का व्रत रख कर माँ महागौरी की उपासना करता है, माता महागौरी उसके कष्टों का निवारण करती हैं और माता का आशीर्वाद भक्त के ऊपर सदैव बना रहता है।

मनुष्य ही नहीं देव, दानव, राक्षस, गंधर्व, नाग, यक्ष, किन्नर आदि भी अष्टमी पर मां का पूजन करते हैं। मान्यता है इस दिन जो भी भक्त माँ महागौरी की अराधना करता है, वह सुख, वैभव, धन, धान्य से समृद्ध होता है। साथ ही रोग, व्याधि, भय, पीड़ा से मुक्त होता है। माँ महागौरी का ये दिन बेहद विशेष माना जाता है। अगर आप भी माँ महागौरी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो विधि पूर्वक मां महागौरी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय व्रत कथा का पाठ अवश्य करें या कथा को सुनें। इस व्रत कथा को सुनने मात्र से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।

देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि देवी माँ के 9 रूप और 10 महाविघाएं हैं तथा सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं लेकिन भगवान शिव के साथ उनके अर्धांगिनी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। महागौरी की पूजा मात्र से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और वह व्यक्ति अक्षय पुण्य का अधिकारी हो जाता है। ज्यादातर घरों में नवरात्र की अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन किया जाता है वहीं कुछ लोग नवमी तिथि के दिन कन्या पूजन करते हैं।

शिवपुराण के अनुसार, महागौरी को आठ साल की उम्र में ही अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास होने लग गया था। उन्होंने इसी उम्र से ही भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या भी शुरू कर दी थी। इसलिए अष्टमी तिथि को महागौरी के पूजन का विधान है। इस दिन दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।

देवी भागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती माँ अपनी तपस्या के दौरान केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं। बाद में माता केवल वायु पीकर ही तप करना आरंभ कर दिया था। तपस्या से माता पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ है और इससे उनका नाम महागौरी पड़ा। माता की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको गंगा में स्नान करने के लिए कहा। जिस समय माता पार्वती गंगा में स्नान करने गईं, तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाईं और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, जो महागौरी कहलाईं।

पौराणिक कथानुसार, माता महागौरी का वर्ण रूप से गौर अर्थात सफेद हैं और इनके वस्त्र व आभूषण भी सफेद रंग के ही हैं। माँ का वाहन वृषभ अर्थात बैल है, जो भगवान शिव का भी वाहन है। मां का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशुल है। महागौरी माँ के ऊपर वाले हाथ में शिव का प्रतिक डमरू है। डमरू धारण करने के कारण माँ को शिवा के नाम से भी जाना जाता है। मां का नीचे वाला हाथ अपने भक्तों को अभय देता हुआ वरमुद्रा में हैं और मां शांत मुद्रा में दृष्टिगत है।

मां महागौरी अपने भक्तों के लिए अन्नपूर्णा स्वरूप हैं। यह धन वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। सांसारिक रूप में इनका स्वरूप बहुत ही उज्जवल कोमल, श्वेतवर्ण और श्वेत वस्त्रधारी है। मां की कांति भक्तों को सौंदर्य प्रदान करने वाली मानी जाती है साथ ही इसकी उपासना से अर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं और भक्तजनों को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। अतः इसके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए।

सम्पूर्ण संयम व नियम से शक्ति स्वरूपा माँ महागौरी की उपासना करने पर उपासक मन, वचन व काया की पवित्रता को प्राप्त करता है। आप सभी के जीवन में कष्टों का अंधकार छंटे तथा सुखों का नया सवेरा हो, यही मेरी माँ गौरी से प्रार्थना है।


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