भोपाल, 9 सितंबर (हि.स.)। गाय सिर्फ एक पशु नहीं है, उससे भी आगे भारतीय वांग्मय में उसे माता की संज्ञा दी गई है। सनातन धर्म में उसकी महिमा को लेकर अब तक बहुत कुछ लिखा जा चुका है। उससे प्राप्त होनेवाले हर पदार्थ की अपनी धार्मिक महत्ता तो है ही इसके पीछे वैज्ञानिकता भी है। यही कारण है कि पशुओं में सबसे पवित्र गौ को भारतीय परंपरा स्वीकार्य करती है और उसके गोबर का भी बखान करती है। प्रदेश में इन दिनों राजधानी भोपाल में उसके गोबर से श्रीगणेश की मूर्तियां बड़ी संख्या में तैयार की जा रही हैं और इसकी प्रेरक बनी हैं मूर्तिकार कांता यादव। इन मूर्तियों की मांग मध्य प्रदेश के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश से भी आ रही है।
दरअसल, प्रशासन द्वारा गणेश उत्सव को लेकर जारी गाइडलाइन के बीच कांता का प्रयास यही है कि अपने वातावरण को अधिकतम शुद्ध रखने में भगवान की ये मूर्तियां भी सहायक बनें। उनकी इस पहल की यहां प्रदेश की राजधानी भोपाल में ही सराहना नहीं हो रही बल्कि उनकी बनाई श्रीगणेश मूर्तियों की मांग पड़ोसी राज्यों से भी आ रही है, जिसकी पूर्ति करने का प्रयास वे अपने सहयोगियों के साथ लगातार कर रही हैं। इन मूर्तियों को खरीदार ऑनलाइन भी मंगवा रहे हैं।
कांता यादव ने बताया कि गाय के गोबर से बनी ये श्री गणेश की मूर्तियां पूरी तरह से इको फ्रेंडली हैं। उन्होंने बताया कि गाय के गोबर के श्रीगणेश मूर्तियों के विधान के बारे में विस्तार से हमारे धर्मग्रंथों में चर्चा मिलती है। देशभर में गाय के गोबर से बने भगवान के बड़े स्वरूप के मंदिर आज मौजूद हैं, जिसमें से एक अपने प्रदेश के महेश्वर में भी बना हुआ है, जहां पर भगवान श्री गणेश का वर्षों पुराना करीब एक हजार साल से अधिक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में गोबर की मूर्ति होने के कारण यह मंदिर ‘गोबर गणेश मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध है।
कांता यादव ने कहा कि हम हर साइज के हिसाब से मूर्तियां उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे हैं। उनके द्वारा अब तक छोटी-बड़ी सभी प्रकार की श्रीगणेश मूर्तियां उपलब्ध कराई जा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि मूर्तियों की मांग अपने राज्य के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक आई है। बाहर के राज्यों से आ रही ज्यादातर बुकिंग ऑनलाइन हो रही है।