शांति,समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं माता कुष्मांडा

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शारदीय नवरात्रि में मां अम्बे के चतुर्थ स्वरूप माता कूष्मांडा जी के चरणों को कोटिश: प्रणाम। नवरात्रि के नौ दिनों में से चतुर्थ दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन देवी कूष्मांडा की विशेष पूजा-अर्चना से भक्तों को सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। देवी कूष्मांडा का नाम संस्कृत शब्द “कूष्मांड” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “कुम्हड़ा” या “उत्पत्ति”। उनकी आठ भुजाएँ हैं और वह सिंह पर सवार होती हैं। देवी के हाथों में कमल, धनुष, बाण, अमृत कलश, चक्र, गदा, जप माला और कमंडल धारण किए हुए हैं।

इस दिन प्रातः उठकर पवित्र मन से देवी कूष्मांडा माँ के मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिन “ॐ कूष्माण्डायै नमः” मंत्र का 108 बार जाप अत्यंत फलदायी माना जाता है। तत्पश्चात माता को मालपुए का भोग लगाने की परंपरा है। इसके साथ ही हलवा, पुए और ताजे फल भी चढ़ाए जा सकते हैं। भोग लगाने के बाद देवी की आरती की जाती है और उनसे सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि देवी कूष्मांडा की पूजा करने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। माता की असीम कृपा से साधक के जीवन में शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। माता रानी आप सभी के जीवन से समस्त कष्टों का हरण कर आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की अमृतवर्षा करते हुए आपकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करे, ऐसी मां से कामना करता हूं।


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