एशिया फेमस काबर झील के सैकड़ों एकड़ में खिल उठा कमल

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बेगूसराय, 06 मई (हि.स.)। मनुष्य, जीव-जंतु, पेड़-पौधे एवं अन्य सभी जीवों को जीवन के लिए उचित पर्यावरण की आवश्यकता है। इसके लिए प्रदूषण मुक्त पर्यावरण की संरचना प्रकृति ने तैयार की थी। निश्चित पर्यावरण की संरचना किसी भी अवांछित पदार्थ के प्रवेश से बिगड़ सकती है।
 पर्यावरण की इन्हें संरचनाओं में गड़बड़ी से एशिया फेमस काबर झील सूख गयी थी। काबर झील जब सूख गयी तो बिहार में कमल फूल का सबसे बड़ा स्रोत समाप्त हो गया था। इस वर्ष जब वर्षा हुई तो काबर में हरियाली छाई और एक बार फिर काबर कमलमय हो गया। इसके बाद जब लॉकडाउन हुआ तो तमाम नदी, झीलों के साथ काबर भी स्वच्छ और सुंदर हो गया।
 प्रदूषण में कमी आई तो कमल खिल उठे और कमल जब खिला तो महीना तक काबर के मालिक कहे जाने वाले मछुआरों के चेहरे भी खिल उठे। यह लॉकडाउन काबर और कमल के लिए वरदान साबित हो रहा है। काबर के पांच सौ एकड़ से अधिक में कमल पूरी तरह से खिल गए हैं। कमल के साथ-साथ गरीबों के भोज की थाली पूरन का पात (कमल का पत्ता) काबर की रौनकता में चार चांद लगा रहे हैं। भारी मात्रा में कमल खिलने से मछुआरों के चेहरे खिल उठे हैं। लेकिन लॉकडाउन उन्हें परेशान कर रहा है। पहले जब कमल खिलते थे तो बेगूसराय जिला ही नहीं आसपास के जिले से लोग यहां आकर भोज के लिए कमल का पत्ता ले जाते थे। कमल के पत्ते पर भोज में चावल का स्वाद कमल के खुशबू के साथ खिल उठता था। सुबह से ही लोग यहां आकर मछुआरों के पास बैठ जाते थे और मछुआरे उन्हें छह सौ रुपए प्रति हजार की दर से पत्ता तोड़कर दे देते थे।
लेकिन लॉकडाउन के कारण शादी-विवाह, श्राद्ध बंद हैं तो कमल के पत्तों की भी डिमांड नहीं है। यही हाल कमल के फूल का है, काबर के कमल का फूल बेगूसराय जिला के अलावे खगड़िया, समस्तीपुर, लखीसराय, वैशाली, मुजफ्फरपुर, पटना समेत कई अन्य शहरों में जाता था। थोक व्यापारी चार सौ से पांच सौ रुपया प्रति सैकड़ा की दर से काबर से कमल का फूल ले जाते थे। जहां की थोक मंडी से होते हुए यह फूल तमाम मंदिर के समीप स्थित दुकानों तक पहुंचता था। खासकर भोला बाबा और तमाम देवी के मंदिर में कमल के फूल की काफी डिमांड थी। लेकिन लॉकडाउन के कारण यहां ग्राहक नहीं आ रहे हैं तो कमल के फूल मुरझाकर सुख रहे हैं। हालांकि मुरझाकर सूख रहा कमल भी पैसा देकर ही जाएगा। कमल के फूल से कमलगट्टा बनता है और लक्ष्मी पूजन समेत विभिन्न पूजन और तांत्रिकों के बीच कमलगट्टे के माला की काफी डिमांड रहती है।
फिलहाल सारी कवायद के बीच काबर में खिला कमल इलाके को ना केवल सुगंधित कर रहा है। बल्कि हरियाली देख लोग आकर्षित हो रहा है तथा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए काबर जाकर कमल का नजारा देख रहे हैं। बता दें कि बिहार के बेगुसराय जिला में काबर झील एशिया की सबसे बड़ी शुद्ध जल (वेट लैंड एरिया) का 42 वर्ग किमी (6311 हेक्टेयर क्षेत्र) के क्षेत्रफल में फैला है। यह 1984 में सरकार द्वारा घोषित पक्षी अभयारण्य (बर्ड संचुरी) भी है। जैव विविधता और नैसर्गिक-प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण काबर झील के क्षेत्र में मौसम के अनुसार परिवर्तन होते रहता है। 59 तरह के प्रवासी विदेशी पक्षी और 107 तरह के देसी पक्षियों की शरण स्थली के साथ विविध प्रकार के जलीय पौधों के आश्रय के रूप में भी यह झील मशहूर है।

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