उल्लेखनीय है कि जब तक विधान तैयार नहीं होता है तब तक लोकायुक्त विभिन्न विभागों के भ्रष्टाचार की शिकायतों पर ना तो कार्रवाई कर सकते हैं और ना ही जांच। विधान तैयार हो जाने के बाद उसमें इस बात का जिक्र किया जाता है कि किस तरह से लोकायुक्त जांच करेंगे और उसकी प्रक्रिया क्या होगी। 2018 के नवंबर महीने में विधानसभा के सत्र चलने के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार ने बहुप्रतीक्षित लोकायुक्त की नियुक्ति की थी। वर्ष 2003 में ही संसद में लोकायुक्त कानून पारित हो गया था। 2007 में दोबारा संशोधित किया गया था और 2013 में केंद्र सरकार ने इसे लागू कर दिया था। लेकिन बंगाल सरकार ने इससे पांच सालों तक पल्ला झाड़ कर रखा था। चौतरफा आलोचना होने के बाद नवंबर 2018 में सेवानिवृत्त न्यायधीश असीम राय को लोकायुक्त के तौर पर नियुक्त किया गया।
मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच नहीं कर सकेंगे लोकायुक्त
राज्य सरकार द्वारा विधानसभा में पारित कराये गये संशोधित लोकायुक्त नियुक्ति अधिनियम के मुताबिक विधानसभा के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और विधानसभा में विपक्ष के नेता लोकायुक्त नियुक्ति कमिटी के सदस्य होंगे।इसके साथ ही पब्लिक ऑर्डर से संबंधित मुख्यमंत्री के निर्देश के बारे में किसी तरह की कोई शिकायत की जांच लोकायुक्त नहीं कर सकेंगे। हालांकि किसी और तरह की शिकायत मिलने पर उसकी जांच करेंगे लेकिन इसके लिए भी शर्त लगाई गई है। अगर मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की कोई शिकायत आती है तो विधानसभा में दो तिहाई विधायकों का जांच के पक्ष में मत आता है तभी लोकायुक्त इसकी जांच कर सकेंगे।
कोलकाता, 08 जून (हि.स.)। पश्चिम बंगाल में लोकायुक्त नियुक्ति के आठ महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी आयुक्त लगभग निष्क्रिय पड़े हुए हैं। राज्य सरकार ने लोकायुक्त की नियुक्ति तो कर दी लेकिन इसके क्रियान्वयन के लिए विधान तैयार नहीं किया है। इस कारण से विभिन्न सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार का मामला प्रकाश में आने के बावजूद उससे संबंधित शिकायतें मिलने पर लोकायुक्त ना जांच कर पा रहे हैं और ना ही कार्रवाई। इस बारे में प्रतिक्रिया के लिए जब राज्य के नवनियुक्त लोकायुक्त सेवानिवृत्त न्यायाधीश असीम राय से संपर्क किया गया तो उन्होंने इस पर बात करने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि छोटी-छोटी शिकायतें मिल रही हैं। अधिकार क्षेत्र के अधीन उन शिकायतों के निवारण पर काम कर रहा हूं। राज्य सरकार द्वारा विधान नहीं बनाए जाने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि लोकायुक्त कानून के अनुसार विधान तैयार करने के लिए राज्य सरकार के संबंधित विभाग से बातचीत चल रही है।
दरअसल लोकायुक्त विशेषाधिकार प्राप्त अधिकारी होते हैं लेकिन विभाग के क्रियान्वयन संबंधी नियंत्रण का जिम्मा राज्य सरकार के कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग का होता है। विभाग के एक अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि विधान नहीं बनने पर काम नहीं होगा, ऐसा नियम नहीं है फिर भी राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के अंतर्गत भ्रष्टाचार की शिकायतों पर कार्रवाई के लिए लोकायुक्त कानून के अनुसार विधान तैयार करना पड़ता है जो अभी तक हुआ नहीं है। इसे जल्द से जल्द तैयार करने के लिए लोकायुक्त से बातचीत चल रही है। जल्द ही सरकार इस पर ठोस फैसला लेगी। हालांकि जब उनसे पूछा गया कि लोकायुक्त की नियुक्ति के आठ महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी सरकार इस पर निष्क्रिय क्यों बनी रही है? तब उन्होंने इ कुछ भी बताने से इनकार कर दिया।
राज्य सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि 2013 में ही संसद में इसके लिए कानून बना दिया था लेकिन बंगाल सरकार ने इसे लागू नहीं किया। इसके अलावा जमीन अधिग्रहण से संबंधित कानून भी 2013 में केंद्र सरकार ने लागू किया था बावजूद इसके बंगाल सरकार ने आज तक इसे लागू नहीं किया है। लंबे समय तक टालने के बाद लोकायुक्त की नियुक्ति और नियुक्ति के बाद विधान तैयार नहीं करने को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ ढुलमुल रवैये को लेकर सवालों के घेरे में है।