नई दिल्ली, 11 अप्रैल (हि.स.)। कोविड-19 (कोरोना वायरस) महामारी के मद्देनजर देशव्यापी पूर्णबंदी (लॉकडाउन) को दो सप्ताह के लिए और बढ़ाए जाने के संबंध में जल्द ही दिशा-निर्देश जारी होंगे। शनिवार की दोपहर प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुई बैठक में यह आम राय बनी कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए लॉकडाउन को दो सप्ताह (30 अप्रैल) के लिए और बढ़ाना जरूरी है। बैठक में महसूस किया गया कि देश में जारी 21 दिन के लॉकडाउन से महामारी की चुनौती का सामना करने में मदद मिली है।
बैठक में मोदी ने ‘जान भी, जहान भी’ का सूत्र देकर यह संकेत दिया कि सरकार अब अपनी रणनीति में बदलाव कर रही है। उसकी प्राथमिकता अब लोगों की रक्षा के साथ ही जीविकोपार्जन को सुरक्षित करने के लिए है। इस नई रणनीति के साथ कुछ क्षेत्रों में सीमित औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियों के संचालन की अनुमति दे सकती है। सरकार का यह भी प्रयास है कि कृषि क्षेत्र में फसल कटाई और उत्पाद की बिक्री संबंधी गतिविधियां प्रभावित न हों।
यह भी संकेत मिले हैं कि बीमारी के प्रकोप का आंकलन करने के बाद विभिन्न क्षेत्रों को ‘ए,बी,सी’ श्रेणियों में बांटा जा सकता है। जो क्षेत्र बीमारी से अपेक्षाकृत मुक्त हैं या जहां इस महामारी का कम प्रकोप है, वहां पूरे एहतियात के साथ औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियों की अनुमति दी जा सकती है। ऐसे कर्मचारियों को परिसर में ही रहने और प्रतिष्ठानों में काम करने की हिदायत दी जाएगी। कर्मचारियों को पारियों (शिफ्ट) में काम करने के लिए कहा जाएगा ताकि उनकी संख्या कम रहे और एक दूसरे से दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) रखी जा सके।
प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की बहुप्रतीक्षित बैठक के संबंध में सबसे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक ट्वीट के जरिए जानकारी दी कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ाई जा रही है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का यह फैसला सही है। बैठक के तुरंत बाद केंद्र सरकार की ओर से फैसले का ऐलान नहीं किया गया लेकिन कई राज्यो ने अपने स्तर पर लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की घोषणा की। दिल्ली के मुख्यमंत्री का सुझाव था कि लॉकडाउन को कारगर बनाने के लिए जरूरी है कि इस संबंध में केंद्र की ओर से घोषणा की जाए।
कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक लॉकडाउन जारी रखना भी देशहित में नही है। इलाज का तरीका ऐसा नहीं होना चाहिए कि उसका नुकसान बीमारी से भी अधिक हो। ये विशेषज्ञ श्रमिकों, विशेषकर दैनिक मजदूरों की जीविका को लेकर चिंतित हैं। उनका तर्क है कि लंबा लॉकडाउन देश में गरीबी और अभाव का कारण बनेगी। वह परिस्थितियों के आंकलन के आधार पर एक संतुलित नीति अपनाने के पक्ष में हैं। सीमित पैमाने पर आर्थिक गतिविधियों की बहाली करते समय इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि लॉकडाउन से अब तक हुए लाभ व्यर्थ न हों।
अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई पश्चिमी देशों ने शुरूआत में लॉकडाउन के विचार को खारिज कर दिया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि उनका देश लॉकडाउन के लिए नहीं बना है। बाद में जब इन देशों में संक्रमण और उसके कारण बड़ी संख्या में लोगों के मरने का सिलसिला शुरू हुआ तो उन्हें लॉकडाउन का सहारा लेना पड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिका और अन्य देशों में पहले लॉकडाउन हुआ होता तो स्थिति इतनी विषम नही होती।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सहित अनेक संस्थाओं ने भारत में शुरूआती दौर में ही बंदी की घोषणा किए जाने को दूरदर्शितापूर्ण कदम बताया।