लखनऊ, 28 मार्च (हि.स.)। कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन के बावजूद अपने आशियाने पहुंचने की चाहत में बाहर निकले लोगों की वजह दिल्ली-उत्तर प्रदेश बार्डर पर जहां अफरातफरी का माहौल देखने को मिला। वहीं इसने केजरीवाल सरकार के दावों की भी पोल खोल दी। वहीं अपनों की इस स्याह पीड़ा के समय भी विपक्षी दल मदद करने के बजाय सोशल मीडिया पर सियासत करते नजर आये तो कुछ ऐसे भी मिले जिन्होंने इंसानियत पर भरोसा जिन्दा रखने का काम किया।
केजरीवाल सरकार मदद के बजाय लोगों को बसों से भेजने में रही व्यस्त
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को तुरन्त संज्ञान में लेते हुए जिस तरह से शुक्रवार आधी रात के बाद लोगों को घर पहुंचाने के लिए एक हजार बसों का इंतजाम किया, उसकी लोग सराहना तो कर रहे हैं, लेकिन इससे दिल्ली सरकार की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं। शनिवार को भी दिल्ली परिवहन निगम की बसों से लोगों को सीमा से बाहर पहुंचाने का कार्य किया जाता रहा। खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली दोनों सरकारों ने बसों का इंतजाम तो कर दिया। लेकिन मेरी अभी भी सभी से अपील है कि वे जहां है, वहीं रहें। हमने दिल्ली में रहने, खाने, पीने, सबका इंतजाम किया है। कृपया अपने घर पर ही रहें। अपने गांव ना जायें। नहीं तो लॉकडाउन का मकसद ही खतम हो जाएगा।
लोगों ने बयां की पीड़ा, न काम न खाने का इंतजाम, बाहर नहीं जाते तो क्या करते
हालांकि जिस तरह से दिल्ली में रहने वाले गैर प्रान्त के श्रमिकों, दिहाड़ी पर कार्य करने वाले लोगों को सुविधाएं नहीं मिली और उन्हें वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ा, उससे दिल्ली सरकार का दिखावटी चेहरा सामने आया है।
अपने घरों की ओर जाने को मजबूर लोगों ने दर्द बयां करते हुए कहा कि पानी और बिजली का कनेक्शन तक काट दिया गया। जब तक राशन की व्यवस्था थी, किसी तरह वहीं रुके। अब न तो काम है और न खाने-पीने का इंतजाम। ऐसे में बाहर नहीं निकलें तो कहां जाएं। बिहार जा रहे एक श्रमिक ने कहा कि दिल्ली में रहते तो कोरोना बाद में मारती, गरीबी पहले मार देती। अगर केजरीवाल सरकार को इतना ही ख्याल था तो पहले से इंतजाम क्यों नहीं किए गए। मीलों के फासले की परवाह नहीं करते हुए लोग पैदल ही सड़कों पर उतर आये। गाजियाबाद के कौशांबी बस डिपो में उमड़े लोगों ने कहा कि दिल्ली में उद्घोषणा की जा रही थी कि उत्तर प्रदेश की सीमा पर बसें खड़ी हैं, जो उन्हें उनके गन्त्वय तक लेकर जाएंगी। ऐसे में भीड़ और बढ़ती चली गई।
मुख्यमंत्री योगी ने दिखायी सक्रियता
उधर स्थिति बेकाबू होते देख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसों से यात्रियों को ले जाने का काम शुरू हो गया है। ये नोएडा और गाजियाबाद बॉर्डर से मिल रही हैं, लेकिन अगर इसी तरह लोग घरों से बाहर आकर निकलते रहे तो लॉकडाउन घोषित करने का कोई औचित्य नहीं रहेगा।
वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र शुक्ला कहते हैं कि केजरीवाल सरकार का चार लाख लोगों के लिए खाने का इंतजाम के दावा लफ्फाजी साबित हुआ। मुख्यमंत्री ने दावा किया कि हमारी दिल्ली में कोई भूखा नहीं सोएगा। हम 568 स्कूल और 238 शेल्टरों के जरिए रोजाना चार लाख लोगों को भोजन खिलाने के लिए तैयार हैं। पर सवाल उठता है कि दिल्ली इन्हें रोक क्यों नहीं सकी? अगर वाकई में व्यवस्था इतनी चौकस थी तो हजारों की भीड़ सिर्फ भूख की छटपटाहट में सड़कों पर नहीं उतरती।
इसके साथ ही इन श्रमिकों, कर्मचारियों के फैक्टरी मालिकों, ठेकेदारों ने भी जो सलूक किया है, वह सही नहीं है। ये लोग मुसीबत के इस दौर में इंसानियत के नाते ही कम से कम अपने कामगारों को का एक महीने का खर्च दे सकते थे, जो इनके पेट की आग बुझाने भी मददगार होता, लेकिन उन्होंने भी ऐसा नहीं किया। आपदा के वक्त बेबेसों को ऐसे ही छोड़ दिया गया। ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही पहल वास्तव में सराहनीय है, जिन्होंने जरूरी कदम उठाने की पहल की।
मुफ्त में बिजली-पानी की बात करने वाले कुछ दिन का खाना भी नहीं खिला सके
पूर्वांचल जा रहे एक युवक ने कहा कि मुफ्त में पानी बिजली देने की बात करने वाले कुछ दिन का खाना भी नहीं खिला सके। वहीं दिल्ली से वापस आ रहे युवक मिथिलेश ने कहा कि इस महामारी में सबसे बड़ी समस्या मजदूर वर्ग को हो रही है, जो अपने गांव घर से बाहर हैं। लॉकडाउन की वजह से लोगों को अपने घर पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ रहा है। हालांकि योगी सरकार सरकार में प्रशासन ने राह में ही सैनिटाइज करने के साथ खाना पानी देने की व्यवस्था की। ये राहत की बात है। लोगों को बसों से घर भी पहुंचाया जा रहा है। युवक मनोज कनौजिया ने कहा कि पलायन व्यवस्था पर से अविश्वास का प्रतीक है। लोग घबरा कर तभी पलायन करते हैं जब उन्हें सरकारी व्यवस्था पर से विश्वास उठ जाता है। सरकार को चाहिये इस आपदा की घड़ी में पलायन कर रहे लोगों को विश्वास दिलाये ताकि वह अपनी जगह रुक जायें। इन हालातों में जिस तरह से कई जगह आम जनता, जागरूक नागरिक, पुलिसकर्मी, पत्रकारों ने जिस तरह से संवेदनशीलता दिखाते हुए अपने-अपने स्तर पर मदद की, वास्तव में वह मिसाल देने वाली है।
इंसानियत के जज्बे को सलाम
इन सबके बीच इंसानियत की मिसाल पेश करने वाले लोग भी कम नहीं हैं। लखनऊ पहुंचे एक समूह में कुछ लोग कंधे पर बल्ली के सहारे लटका कर बुजर्ग सालिग को लेकर जाते मिले। इनमें से कोई इस बुर्जुग का बेटा नहीं है, रिश्तेदार हैं। करीब चालीस लोगों में से हर कोई कंधे बदल-बदल कर वृद्ध को ढो रहा है। इसमें से एक ने बताया कि उन्हें फालिज मार गया है। जब वृद्ध से इतने लोगों के सेवा करने के कारण उसे भाग्यशाली कहा तो वह आंसू छलकाते हुए बोले कि मौत नहीं आ रही है, क्या करें। मौके पर मौजूद वरिष्ठ आईपीएस अफसर नवनीत सिकेरा और गोमतीनगर पुलिस ने इन लोगों के खाने की व्यवस्था की। इसके बाद इन्हें बस से रवाना करने का इंतजाम किया गया।
अखिलेश आपदा के समय भी छोड़ रहे शब्द बाण
उधर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि ऐसे मानसिक एवं शारीरिक दबाव के समय भोजन और काम के बिना बेघर लोगों का घर की ओर गमन स्वाभाविक है। सरकार द्वारा व्यवस्था की निरंतरता एवं दूरी बनाए रखते हुए लोगों को उनके घर तक पहुंचाना जरूरी है। ऐसे बीच में फंसे लोगों के भोजन, जांच और आवश्यकतानुसार इलाज की व्यवस्था भी होनी चाहिए। अखिलेश ने इससे पहले तंज कसा था कि आज प्रदेश की सड़कों पर जिस प्रकार लाखों लोग भूखे-प्यासे हैं और आपूर्ति के अभाव में जनता त्रस्त है, ऐसे में मुख्यमंत्री जी सपा सरकार के समय भोजन के लिए वितरित किए गये ‘समाजवादी राहत पैकेट’ को बांटने का निर्देश जिलाधिकारियों को जारी करें जिनके नियम भी बने हैं। चाहें तो नाम बदल दें
आंख मूंदे हुए है योगी सरकार, बसों की संख्या नाकाफी
कांग्रेस नेता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश, बिहार के हजारों लाखों लोग अपने घर जाने के लिये सड़कों पर पैदल चल चुके हैं। ये हमारे अपने हैं। इनसे अपनों जैसा व्यवहार करिये। उन्होंने कि कांग्रेस महाचिव प्रियंका गांधी के कहने कहने के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार चेत नहीं रही है। बसों की संख्या काफी कम हैं, इन्हें और बढ़ाया जाना चाहिए। लोगों को भोजन, दवा की दरकार है, लेकिन सरकार आंख मूंदे हुए है जो बेहद निन्दनीय है। तुरन्त साधन सुविधा मुहैया कराते हुए इन्हें इनके घरों तक पहुंचाया जाना चाहिए।
भाजपा बोली आलोचना छोड़ महामारी से लड़ने में दें सहयोग
भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि यह आपदा है और पूरी तरह आकस्मिक है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी पूरी टीम अहर्निश आपदा में राहत पहुंचाने का भरपूर प्रयास कर रही है। सभी राजनीतिक दलों के प्रबुद्ध कार्यकर्ताओं को चाहिए कि इस समय सियासत और सरकार की आलोचना छोड़कर व्यापक जनहित में महामारी से लड़ने में सहयोग दें।
ओछे व्यक्ति ही इस समय कर सकते हैं राजनीति-मालिनी अवस्थी
लोकगायिका मालिनी अवस्थी कहती हैं कि सिर पर गठरी लादे घर जा रहे प्रवासी बंधुओं को सादर नमन करती हूं। जिन बड़ी अट्टालिकाओं में बैठकर लोग उन पर टिप्पणी कर रहे हैं, वे ये न भूलें कि उसके ईंटगारे में भी इनका पसीना शामिल है। इस नए हिंदुस्तान की इबारत हमारे उत्तर प्रदेश बिहार के भाइयों के परिश्रम व त्याग के बल पर गढ़ी गई है। हम उनके बल पर तरक्की की झांकी देख रहे हैं,और अब उनके बड़ी संख्या पर सड़क पर आने और उनकी घर जाने की अधीरता पर सवाल उठा रहे हैं? ओछे व्यक्ति ही इस समय राजनीति कर सकते हैं। यदि वाकई फिक्र है तो उन्हें भोजन कराएं, उनके घर पहुचायें, प्रधानमंत्री राहत कोष में सहायता पहुचायें। और नहीं कर सकते, तो जो कर रहे हैं उनकी आलोचना मत कीजिए।
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के असाधारण समय में सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश के सामने कठिन चुनौतियां हैं। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान से आ रहे हजारों प्रवासी भाई बहनों की भोजन व उन्हें अपने घर पहुंचाने की व्यवस्था के लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस का आभार भी जताया।