बिहार के इकलौते रामसर साइट में खतरे में है विदेशी मेहमानों की जान
बेगूसराय, 17 दिसंबर (हि.स.)। सरकार सबका साथ-सबका विकास-सबको न्याय का नारा देकर काफी तेजी से आगे बढ़ रही है लेकिन बिहार के बेगूसराय में विदेशी मेहमानों को धड़ल्ले से मारा जा रहा है और शासन-प्रशासन उसकी रक्षा नहीं कर पा रही है। हालत यह है कि रक्षक की जिम्मेदारी संभालने वाले भी उसके भक्षक बने हुए हैं। मामला बिहार के इकलौते रामसर साइट काबर झील प्रक्षेत्र का है। बिहार का काबर टाल पक्षी विहार अपनी जैव विविधताओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। अनेक जीवों और पादपों के लिए अनुकूल आवास और मौजूद आहार श्रृंखला की वजह से यह क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र बनाता है।
जैव विविधता की कड़ी में काबर वेटलैंड खासकर प्रवासी पक्षियों का स्वर्ग है तथा यहां 60 प्रजातियों की प्रवासी पक्षियां मध्य एशिया, चीन, मंगोलिया और साइबेरिया आदि जगहों से आते हैं। अपने वास स्थान में पड़ने वाले बर्फ और प्रतिकुल मौसम से बचने तथा प्रजनन के जनसंख्या वृद्धि के लिए अनुकूल वासस्थान की खोज के लिए ये पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर भारत के जलाशयों तक पहुंचते हैं लेकिन जनसंख्या में वृद्धि के बदले उनकी संख्या लगातार घटते जा रही है, जो कि दुनिया में भारत की सुदृढ़ होती छवि के लिए काफी खतरनाक है। काबर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होनेवाले चिड़ियों के शिकार पर 1986 से प्रतिबंध लागू है। लेकिन, चिड़ियों की शिकारमाही एक गंभीर समस्या है। ठंड का मौसम आते ही हजारों किलोमीटर से दूर सेे उड़ान भरकर पक्षी काबर झील आते हैं लेकिन आने के साथ ही यहां उनका शिकार शुरू हो जाता है। दिसंबर में तो शिकार माही काफी तेज हो जाती है तथा शिकारी नए साल के जश्न के लिए पकड़़-पकड़ कर स्टॉक करते हैं। काबर के चारों ओर के एक सौ से अधिक शिकारी रोज विदेशी पक्षियों को पकड़कर ऊंचे दामों में बेच रहे हैं। बताया जाता है वन विभाग एवं स्थानीय थाना की पुलिस कभी-कभार शिकार पर रोक के लिए कड़ाई करती है लेकिन कारोबारी भी प्रशासन से अधिक होशियार हैं तथा मंझौल ओपी एवंं चेरिया बरियारपुर थाना इलाका होकर पक्षी निकालने के बदलेे गढ़पुरा और छौड़ाही थाना क्षेत्र के रास्ते अहले सुबह तीन से चार बजे के बीच पक्षियों को परोड़ा, एकम्बा, दुनही के रास्ते बखरी एवं दूरदराज भेज दिया जाता है। काबर से किसानों की मानें तो पूरा काबर क्षेत्र शिकारियों के जाल और बांस से पटा हुआ है। शिकारियों का ग्रुप हथियार से लैस होकर सूर्यास्त के बाद पक्षियों का शिकार करना शुरू कर देते हैं तथा रात दो बजे के बाद इसे बाहर भेजने का सिलसिला चल पड़ता है। सुबह सूर्योदय होते-होते फिर सभी बांस और जाल समेट कर रख दिया जाता है। किसान अपने खेत में जाल रखने का विरोध करते हैं तो उनकेे साथ झगड़ाा किया जाता है, फसल को क्षति पहुंचा दिया जाता है। शिकारी और किसानों के बीच हुई बातचीत की मानें तो काबर में पक्षी का शिकार करना हो या शराब का कारोबार यह रामसर साइट सब चीज के लिए काफी सुरक्षित है तथा वन विभाग एवं थाना को प्रत्येक माह तीन लाख पहुंचा दिया जाता है। वरीय पदाधिकारी का कभी दबाव पड़ता है तो छापेमारी की औपचारिकता पूरी की जाती है।
सूत्र बताते हैं कि वन विभाग की टीम महीना में सिर्फ एक बार वसूली के लिए आती है। वहीं, चारों ओर के स्थानीय थाना की टीम भी सिर्फ उसी दिन आती है, जिस दिन पार्टी के लिए पक्षी की जरुरत होती है। अन्य दिन काबर में दिखते हैं तो सिर्फ किसान, मछुआरे या विदेशी मेहमान पक्षी का शिकार करने वाले शिकारी। मछुआरे जमकर पक्षियों का शिकार कर दो सौ से 25 सौ तक में बेच रहे हैं। अलग-अलग पक्षियों के अलग-अलग नाम तय किए गए हैं। काबर के विदेशी पक्षियों की डिमांड इतनी ज्यादा है कि वर्तमान में लालसर पन्द्रह सौ से दो हजार, सरायर आठ सौ, दिधौंच 12 सौ, कारन छह सौ, अंधगी चार सौ, बोदेन दो सौ तथा अरूण सात सौ रुपया तक में बिक रहा है।