नई दिल्ली, 16 जुलाई (हि.स.)। मंगलवार को मुंबई के डोंगरी इलाके में 100 साल पुरानी इमारत गिरने से 12 लोगों की मौत हो गई। हादसे में 30 से अधिक लोग मलबे में दब गए। राहत एवं बचाव कार्य पूरा होने तक मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है। मुंबई में इस तरह का हादसा कोई पहली बार नहीं हुआ। बारिश के दौरान सिस्टम के नकारापन की वजह से सैकड़ों लोगों की जान हर साल जाती है। भारी बारिश की वजह से कई इमारतें भरभरा कर गिर जाती हैं। हमारी सरकार और व्यवस्था लाचार दिखती है। जवाबदेह लोग हादसों से मुंह छिपाते हैं। राजनेता घड़ियाली आंसू बहाते हैं। वोट बैंक के लिए मुआवजे की घोषणा की जाती है। सरकार राजनीतिक छिछालेदर से बचने के लिए जांच बैठा देती है। तब तक दूसरा हादसा हो जाता है।
हम मुंबई को शंघाई बनाने का सपना देखते हैं। न्यू इंडिया की बात करते हैं। लेकिन सिस्टम इस तरह के हादसों को कितनी गंभीरता से लेता है यह भी अपने आप में बड़ा सवाल है। कभी इमारत गिरती है तो कभी रेल ओवर ब्रिज ढह जाता है। कभी मासूम बच्चा नाले या फिर बोरबेल में समा जाता है। फैक्टरियों में आए दिन आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं। सड़क हादसों में अपने देश में डेढ़ लाख लोग हर साल मारे जाते हैं। आखिर इसका गुनाहगार कौन है? इसे हम प्राकृतिक आपदा नहीं कह सकते हैं। यह सब मानव जनित और व्यवस्था से जुड़ा सवाल है। जिसके लिए हमारी व्यवस्था गुनहगार है। ऐसे हादसों के शिकार लोग सीधे हत्या के शिकार बनते हैं। लेकिन दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। जिम्मेदार लोग लचीले कानूनों का लाभ उठाते बच निकलते हैं। जिसका नतीजा है कि सिर्फ मुंबई में ही नहीं, पूरे देश में मानव निर्मित आपदाएं बढ़ रही हैं। लेकिन सुधार के लिए हमने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। देश में बढ़ते हादसों को देखते हुए सरकार को संसद में जीवन सुरक्षा गारंटी बिल लाना चाहिए, क्योंकि इस तरह के हादसे प्राकृतिक नहीं, मानवीय हैं।
14 जुलाई को हिमाचल प्रदेश के सोलन में एक होटल गिरने से 13 फौजियों की मौत हो गई थी। सोचिए, क्या इस मौत की भरपाई हो पाएगी? हमारे सैनिक यु़द्ध में नहीं, नक्कारे सिस्टम के शिकार हुए। मुंबई के डोंगरी में जो हादसा हुआ उसमें 12 लोगों की मौत हुई है। यह बिल्डिंग 100 साल पुरानी थी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस ने खुद स्वीकार किया है कि म्हाड़ा ने इसके पुनर्निर्माण का नोटिस जारी किया था। लेकिन लोगों ने बिल्डिंग नहीं खाली किया और मौत को गले लगा लिया। मलबे में तब्दील होने वाली चार मंजिला इमारत अवैध रुप से बनायी गयी थी। इसी इमारत के बगल में एक चार मंजिला भवन भी खड़ा कर दिया गया। अहम सवाल है कि अवैध रुप से बनायी गयी चार मंजिला इमारत कई बेगुनाहों को भी अपने साथ ले गई। लेकिन मुंबई नगर निगम के अफसर आंख पर पट्टी बांधे रहे। अगर इमारत अवैध थी तो इसे बना कैसे लिया गया? जब इमारत नगर निगम के बगैर परमिशन के बनायी जा रही थी तब निगम के अफसर कर क्या रहे थे? इससे भी दुःखद बात यह है कि हादसे के बाद वहां पहुंचने के लिए रास्ता भी नहीं था। राहत एवं बचाव के लिए पहुंची एनडीआरएफ टीम को पैदल जाना पड़ा। मलबे हटाने के लिए जेसीबी अंदर तक नहीं पहुंच पायी। लोगों ने मानव श्रृंखला बना कर किसी तरह मलबे को हटाया और पांच लोगों की जान बचाई।
मुंबई में हर साल बारिश आफत लेकर आती है। बारिश की वजह से मुंबई थम जाती है। रेल और सड़क यातायात ठप पड़ जाता है। हर बारिश में दर्जनों लोगों की मौत होती है। मुंबई में भू-माफिया राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कर झीलों, समुद्र तटों और तालाबों को पाट कर गगनचुंबी इमारत खड़ी कर देते हैं। यह सब कानून को ताख पर रख किया जाता है। बिल्डर निगम के अफसरों को मोटी रकम देकर अवैध रुप से इमारतें खड़ी कर लेते हैं। बाद में मुंबई जैसे महानगर में घर का सपना देखने वालों को बेच दिया जाता है। ऐसी अवैध इमारतों में सुरक्षा मानकों का ध्यान नहीं दिया जाता है। मुंबई में इंसान की जान बेहद सस्ती जबकि जमीन की कीमत काफी महंगी होती है। डोंगरी में जो बिल्डिंग हादसे का शिकार हुई है उसे 2016 में ही खाली करने का आदेश दिया गया था। लेकिन उसमें रहने वाले लोगों ने बिल्डिंग खाली नहीं किया और मौत को गले लगा लिया। मुंबई नगर निगम ने तकरीबन 500 इमारतों को जर्जर होने की वजह से चिन्हित किया है। 80 बिल्डिंग इस श्रेणी में हैं जिसमें म्हाड़ा की तकरीबन 40 इमारतें हैं। एक आंकड़े के मुताबिक 14 हजार इमारतें ऐसी हैं जिनकी उम्र 70 साल से अधिक हो चली है। यह हालात मुंबई के साथ पूरे हिंदुस्तान का है। लेकिन हमने सुधार के कदम नहीं उठाए।
हमारे देश में सरकार और व्यवस्था की नजरों में मानव जीवन की कोई कीमत नहीं है। यहां मौत पर भी राजनीति होती है। इंसानी मौत पर भी राजनीति अपने नजरिए से विश्लेषण करती है। हमने कभी हादसों से सबक नहीं सीखा। रोजगार के लिए महानगरों में बढ़ती भीड़ और रिहायशी इमारतों की कमी जैसे सवाल पर सरकारों ने कभी सोचने की जहमत नहीं उठाई। प्राकृतिक स्थलों पर बनाई गयी झुग्गी-झोपड़ियों को अवैध घोषित कर दिया जाता है। उपनगरों में भू-माफिया राजनीतिक रसूख की वजह से सार्वजनिक भूखंडों पर कब्जा कर बड़ी-बड़ी इमारतें तैयार कर अच्छा पैसा कमा लेते हैं। इस खेल में राजनेता, नगर निगम और कई तरह के चैनल काम करते हैं। जिसकी वजह से बेगुनाह लोगों की मौत होती है। हम बातें अधिक करते हैं, लेकिन काम नहीं करते। मौत पर संवेदनाएं जता और मुआवजों की घोषणाएं कर अपने दायित्व की इतिश्री कर ली जाती है। वक्त रहते सख्त कदम उठाते हुए अगर दो साल पूर्व इस इमारत को खाली करा लिया गया होता तो यह हादसा नहीं होता।
वक्त के साथ हमें कायदे-कानूनों में भी बदलाव लाना होगा। जिम्मेदार लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। नगर निगम या म्हाड़ा से जुड़े लोग इमारतों के संबंध में बनाए गए नियमों का कड़ाई से अनुपालन करते तो डोंगरी जैसे हादसों को रोका जा सकता था। अभी तो बारिश की शुरुआत में ही मुंबई पानी-पानी हो गई है। कई लोगों की जान जा चुकी है। इसके अलावा सरकार इंसानी जीवन को सुरक्षित रखने के लिए गंभीर नहीं है। सिस्टम में बढ़ते गैर जिम्मेदाराना रवैये को देखते हुए अब जरूरी हो गया है कि खाद्य सुरक्षा गारंटी एवं मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी की तरह संसद में मानव जीवन सुरक्षा गारंटी बिल भी लाया जाए। जिसमें डोंगरी और सोलन जैसे हादसे के गुनहगारों को सजा दिलाई जाए। देशभर के महानगरों में अभियान चला इस तरह की इमारतों को धराशाई किया जाए। हादसे की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय की जाए। दोषी अफसरों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं। प्राकृतिक आपदा से हम सुरक्षित नहीं बच सकते लेकिन जो समस्याएं मानवकृत हैं उस पर समय रहते कदम उठा कर हम मानवहानि को रोकने में कामयाब हो सकते हैं।