रांची, 05 जनवरी (हि.स.)। झारखंड विधानसभा का चुनाव इसबार चौंकाने वाला तो था ही, विधानसभा का सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष का गवाह बनेगा। विधानसभा का विशेष सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है। झारखंड के इतिहास में पहली बार सदन का कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं होगा। रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ी और पार्टी 25 सीटों पर सिमट गयी। रघुवर दास अपनी सीट बचाने में भी विफल रहे। वे इसबार नेता प्रतिपक्ष तो क्या सदन के सदस्य के रूप में भी मौजूद नहीं रहेंगे।
अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन तीन-तीन बार बने नेता प्रतिपक्ष
झारखंड के अस्तित्व में आने के बाद अर्जुन मुंडा तीर बार सदन के नेता बने और जब उनका दल चुनाव हारा तो वे नेता प्रतिपक्ष के नेता बने। इसी तरह हेमंत सोरेन भी सदन के नेता और सबसे लंबे समय तक नेता प्रतिपक्ष रहे। इनके अलावा बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन और मधु कोड़ा नेता सदन बने। लेकिन बाबूलाल मरांडी पूर्व मुख्यमंत्री बने तबतक वे सदन के सदस्य थे और उनकी पार्टी की ही सरकार थी। 2005 के बाद वे सदन के सदस्य नहीं बने। शिबू सोरेन तीन बार सदन के नेता (मुख्यमंत्री) बने लेकिन तीनों बार वे सदन के निर्वाचित सदस्य नहीं थे। मधु कोड़ा निर्दलीय थे इसलिए वे नेता प्रतिपक्ष नहीं थे।
प्रतिपक्ष के नेता को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है। सदन में कार्यवाही के दौरान नेता प्रतिपक्ष कभी भी वेल में नहीं आते हैं। यह संसदीय परंपरा रही है। नेता सदन या नेता प्रतिपक्ष जब भी सदन में अपनी बात रखने के लिए खड़े होते हैं, तो अन्य सदस्य स्वत: बैठ जाते हैं। संसदीय कार्यवाही में विपक्षी सदस्यों को एकजुट और एकमत रखने में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका विशेष होती है।