खूंटी, 12 जुलाई (हि.स.)।तीन दशक पूर्व खूंटी की पहचान देश में सर्वाधिक लाह उत्पादक क्षेत्र के रूप में रही है। दशकों पूर्व से खूंटी की लाह का निर्यात अमेरिका, जर्मनी, जापान, रूस सहित कई देशों को किया जाता रहा है, लेकिन प्रशिक्षण और पूंजी का अभाव और लाह की कीमत में लगातार उतार-चढ़ाव के और आमदनी में कमी कारण ग्रामीण क्षेत्र के लोग धीरे-धीरे लाह की खेती से दूर होते जा रहे हैं। पहले की अपेक्षा लाह की खेती अब जिले में कम होती है। इसके बाद भी खूंटी जिले में वर्तमान में करीब पांच हजार हेक्टेयर में लाह की खेती हो रही है। लाह की खेती से कम आमदनी के कारण लोग दूसरे व्यवसाय की ओर ध्यान देने लगे हैं। रोजगार की तलाश में लोगों का पलायन भी हो रहा है। लाह के जानकारों का मानना है कि सरकार यदि वैज्ञानिक तरीके से लाह की खेती को बढ़ावा दे, तो लाह के उत्पादन और निर्यात में खूंटी जिला फिर से अपना पुराना स्थान पा सकता है। लाह से जुड़े उद्योगों की स्थापना से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और पलायन पर भी रोक लगेगी।
कैसे की जाती है लाह की खेती
लाह की खेती कुसुम, खैर, बेर, सिमियालता व पलाश आदि पेड़ों पर की जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम लैसिफर लाक्का है। लाह को तैयार होने में लगभग चार महीने का समय लगता है। लाह तैयार होने के बाद डालियों सहित लाह को काट लिया जाता है। कुसुम के पेड़ बड़े होते हैं, यहां दो क्विंटल तक लाह का उत्पादन हो सकता है, जबकि बेर और पलाश के पेड़ काफी छोटे होते हैं, जहां पर 20 से 25 किलो लाह का उत्पादन होता है। लाह की खेती तैयार होने में लगभग चार माह का समय लगता है। लाह की प्रमुख दो प्रजातियां हैं वैशाखी और केतकी। इसे ही रंगीनी और कुसमी है। वैशाखी लाह के बीज मार्च-अप्रैल में लगाये जाते हैं, जबकि केतकी के बीज अक्टूबर-नवंबर महीने में पेड़ों पर डाले जाते हैं। इस समय सरकार ने रंगीनी लाह का न्यूनतम समर्थन मूल्य दो सौ रुपये और कुसमी का 275 रुपये तय कर रखा है। हालांकि खुले बाजार में लाह की कीमत एमएसपी से अधिक है। इसलिए किसान बाजार में ही लाह बेचना पसंद करते हैं।
जिला प्रशासन ने भी लाह की खेती को बढ़ावा देने की कवायद शुरू कर दी है। कई जगहों पर महिलाएं लाह की चूड़ियों का उत्पादन कर रही हैं। जिले के अड़की, रनिया और मुरहू में लाह प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की गयी है।
लाह की उपयोगिता
लाह का उपयोग चपड़ा बनाने, चूड़ियों बनाने और फर्नीचर की पालिश का निर्माण करने, लकड़ीठ के खिलौनों को रंगने और सोने चांदी के आभूषणों में रिक्त स्थानों को भरने में होता है। वहीं इसका उपयोग नेल पॉलिश, बूट पॉलिश, हेयर डाई, परफ्यूम, दवा,गोंद, लहठी, क्रीम, विद्युत यंत्र बनाने व अन्य कई वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है। परफ्यूम बनाने में लाह की जो लिक्विड उपयोग में ली जाती है उसकी कीमत तो बाजार में 40 हजार रुपये लीटर बताई जाती है।