इस्लामाबाद, 02 सितम्बर (हि.स.)। पिछले तीन साल से पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण यादव से सोमवार को भारत के उप उच्चायुक्त गौरव अहलूवालिया ने मुलाकात की। हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि मुलाकात कहां हुई लेकिन सूत्रों को कहना है कि यह मुलाकात पाकिस्तान की सब-जेल में हुई है। तीन साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि जाधव को बिना किसी बाधा के कॉन्सुलर एक्सेस मिला है। हांलाकि आज सुबह भी पाकिस्तान ने जाधव से मिलने के स्थान पर सीसीटीवी लगाने और वहां सुरक्षा गार्ड की मौजूदगी की शर्त रखी थी। पर भारत ने उसे सिरे से नकार दिया। जिसके बाद पाकिस्तान ने शर्तें वापस लीं और एक नए स्थान पर भारतीय राजनयिक के साथ 2 घंटे की एकांत मुलाकात संभव हो सकी।
उल्लेखनीय है कि पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव सेवानिवृत्ति लेने के बाद व्यापार के सिलसिले में ईरान सीमा पर थे जहां से पाकिस्तानी सेना ने 3 मार्च,2016 को गिरफ्तार कर लिया था। पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने कुलभूषण जाधव को भारतीय जासूस बताकर 10 अप्रैल, 2017 में फांसी की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ भारत ने 10 मई, 2017 में अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस- आईसीजे ) का दरवाजा खटखटाया था। अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय ने भारत की याचिका पर पाकिस्तान को नोटिस जारी कर कहा था कि वह जाधव के मामले में आगे कोई कार्रवाई न करे। इसके बाद हुई सुनवाई और जिरह के बाद इसी साल 17 जुलाई को अन्तरराष्टीय न्यायालय ने 15-1 के बहुमत से फैसला करते हुए जाधव की फांसी को निलंबित रखा और कहा कि पाकिस्तान जाधव के मामले में पुनर्विचार करे।
अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय के कारण ही पाकिस्तान कुलभूषण जाधव को राजनयिक पहुंच देने को मजबूर हुआ है। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि पाकिस्तान ने न केवल विएना संधि का उल्लंघन किया है बल्कि कुलभूषण जाधव मामले में काउंसलर एक्सेस देने की भारत की मांग को ठुकराता रहा है। जाधव को अपनी बात रखने व बचाव पक्ष का वकील खड़ा करने का भी अवसर नहीं दिया गया।
क्या है कॉन्सुलर एक्सेस
किसी देश का नागरिक दूसरे देश की जेल में बंद होता है तो उसे कॉन्सुलर एक्सेस (राजनयिक पहुंच) की सुविधा मिलती है। ऐसे में दोनों सरकारों की सहमति के बाद जो भारतीय राजदूत या वकील कुलभूषण जाधव से मुलाकात कर पाएगा, उसे कॉन्सुलर एक्सेस कहा जाता है। इसमें अधिकारी कैदी के साथ कैसा व्यवहार हो रहा है इसकी जानकारी के साथ आगे की प्रक्रिया पर चर्चा करता है। न्यायालयी प्रक्रिया के दौरान वह बचाव में बहस भी कर सकता है।
कॉन्सुलर एक्सेस का विचार 1963 में हुए विएना सधि में आया था। यह वह दौर था जब सोवियत रूस और अमेरिका के जासूस एक-दूसरों के मुल्कों में जासूसी करते थे। कॉन्सुलर एक्सेस देने के पीछे का उद्देश्य पकड़े गए जासूसों तक पहुंच बनाना था। विएना संधि दुनिया में हुई कुछ चुनिंदा संधियों में से एक है, जिसे 170 से ज्यादा देश मान्यता देते हैं।