29 नवंबर 2005- गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद से बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय सहित सात लोगों को गोलियों से भून दिया गया। कृष्णानंद राय पर 500 राउंड फायरिंग हुई थी। इस हमले में एके-47 का इस्तेमाल हुआ।
गाजीपुर, , 05 जुलाई (हि.स.)। दिल्ली की सीबीआई कोर्ट ने बुधवार को बहुचर्चित तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय सहित सामूहिक नरसंहार कांड में बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी, उनके बड़े भाई अफजाल अंसारी सहित सभी आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया। कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद समूचे पूर्वांचल में एक तरफ लोग खुशियां मना रहे थे तो वहीं एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो लंबे इंतजार के बाद आये सीबीआई कोर्ट के इस फैसले पर सवालिया निशान लगा रहा है। पूर्वांचल में अब यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि आखिर जब सब आरोपित बरी हो गए तो विधायक का हत्यारा कौन?
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई की कोर्ट ने इस नरसंहार कांड के 14 साल बाद निर्णय सुनाया, जिसमें सभी आरोपितों को बाइज्जत बरी कर दिया गया। इस फैसले पर गाजीपुर जनपद सहित समूचे पूर्वांचल के लोगों का कहना है कि भारतीय न्याय संहिता के मुताबिक किसी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए लेकिन यह जानना भी जनता का अधिकार है कि आखिर कृष्णानंद राय की हत्या किसने की? क्या देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी 14 वर्षों में यह पता लगाने में असफल रही कि इस हत्याकाण्ड का साजिशकर्ता कौन था या हत्या किसने की?
गाजीपुर से भाजयुमो के पूर्व प्रदेश मंत्री योगेश सिंह ने कहा कि सीबीआई कोर्ट के फैसले के बाद आरोपित बरी हो गए लेकिन आवाम यह नहीं जान पाई कि इतना बड़ा नरसंहार किसने कराया। जांच एजेंसी के अधिवक्ता कोर्ट में यह भी साबित नहीं कर पाए कि यह घटना किसने कराई। मऊ से पूर्व नगरपालिका चेयरमैन व घोसी लोकसभा के पूर्व सपा प्रत्याशी अरशद जमाल ने सीबीआई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि अंततः कोर्ट ने साबित कर दिया विधायक, सांसद सहित तमाम लोग निर्दोष हैं लेकिन उनका भी सवाल है कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी 14 वर्षों में यह पता नहीं लगा पाई कि यह नरसंहार किसने कराया था।
468 पेज में आया फैसला
भाजपा विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड का फैसला सीबीआई कोर्ट के जज अरुण भारद्वाज ने 468 पेज में लिखा है। इस फैसले को सीबीआई कोर्ट के जज ने 861 खंडों में विभजित किया है। इसमें 23 मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है। इस संदर्भ में अधिवक्ता अनिमेष शुक्ला ने बताया कि 23 बिंदुओं में जज एके भारद्वाज ने पूरे प्रकरण को शीशे की तरह साफ कर दिया। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सीबीआई के गवाह रामनारायण राय और बृजेश राय मौके पर मौजूद थे इसको सिद्ध करने में सीबीआई के अधिवक्ता असफल रहे। दूसरी बड़ी बात यह है कि अदालत ने माना कि एफआईआर 29 नवंबर 2005 की शाम को भांवरकोल थाने में नहीं दर्ज करायी गयी थी। एफआईआर घटना के दो-तीन दिन बाद दर्ज कराई गई थी। कोर्ट ने यह नहीं माना कि कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी के बीच ऐसी अदावत थी जो इस हत्याकांड को अंजाम दे सके। अधिवक्ता ने बताया कि अदालत ने यह माना कि अफजाल अंसारी और मुख्तार अंसारी के बीच इस घटना को लेकर कोई साजिश नहीं हुई क्योंकि उस समय मुख्तार अंसारी जेल में थे और अफजाल अंसारी गाजीपुर में नहीं थे। अधिवक्ता ने बताया कि हमारे मुवक्किल निर्दोष और बेगुनाह हैं उनको साजिश के तहत इस हत्याकांड में फंसाया गया था।
कृष्णानंद राय हत्याकांड में कब क्या हुआ?
29 नवंबर 2005- गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद से बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय सहित सात लोगों को गोलियों से भून दिया गया। कृष्णानंद राय पर 500 राउंड फायरिंग हुई थी। इस हमले में एके-47 का इस्तेमाल हुआ।21 फरवरी 2006- बीजेपी विधायक हत्याकांड में यूपी पुलिस की तरफ से पहली चार्जशीट फाइल हुई। इसमें एजाजुल हक, अफजाल अंसारी, प्रेमप्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी, अताउररहमान और फिरदौस के नाम शामिल किये गए।
15 मार्च 2006- यूपी पुलिस ने इस मामले में दूसरी चार्जशीट दाखिल की। इसमें मुख्तार अंसारी को भी आरोपी बनाया गया।
मई 2006- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय की याचिका पर इस हत्याकांड की सीबीआई जांच का आदेश दिया।
30 अगस्त 2006- सीबीआई ने हत्याकांड में तीसरी चार्जशीट फाइल की, इसमें संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा को भी आरोपी बनाया गया।
12 दिसंबर 2006- सीबीआई ने चौथी चार्जशीट फाइल करते हुए राकेश पाण्डेय व रामू मल्लाह को भी आरोपी बनाया।
20 मई 2007- सीबीआई ने पांचवीं चार्जशीट दाखिल करते हुए बाहबुली विधायक मुख्तार अंसारी को भी आरोपी बनाया गया।
22 अप्रैल 2013- सुप्रीम कोर्ट ने कृष्णानंद हत्याकांड की गाजीपुर जिला अदालत में चल रही सुनवाई को सेशंस कोर्ट दिल्ली में सुनवाई के लिए ट्रांसफर कर दिया।
15 मार्च 2014- सीबीआई ने कृष्णानंद हत्याकांड में छठीं चार्जशीट प्रेमप्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी के खिलाफ दाखिल की।
22 मई 2019- सीबीआई कोर्ट ने इस हत्याकांड में फैसले को सुरक्षित रखा।
3 जुलाई 2019- गवाहों के मुकरने के बाद सीबीआई अदालत ने मुख्तार अंसारी सहित सात लोगों को इस हत्याकांड के आरोप से मुक्त कर दिया।