केजरीवाल सरकार दिल्ली के मुसलमानों पर है मेहरबान

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पिछले पांच साल में दिल्ली वक्फ बोर्ड के अनुदान में किया आठ गुना इजाफा



नई दिल्ली, 18 जनवरी (हि.स.)। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार दिल्ली वक्फ बोर्ड के माध्यम से मुसलमानों पर किस कदर मेहरबान है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने छः वर्षों के कार्यकाल में सरकारी अनुदान बढ़ा कर आठ गुना से अधिक कर दिया गया है। केजरीवाल सरकार की मुस्लिमों पर मेहरबानी का ही नतीजा है कि दिल्ली की गैर सरकारी मस्जिदों के इमाम एवं मोअज्जिन को भी वक्फ बोर्ड की तरफ से हर महीने 12 हजार रुपये की रकम सीधे उनके खाते में डाली जा रही है। जबकि कई हिन्दू और सिख संगठनों की तरफ़ से मस्जिदों के इमाम एवं मोअज्जिन की तर्ज पर मन्दिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को भी तन्ख्वाह दिए जाने की मांग की जा रही है। इस सिलसिले में दिल्ली की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता और विधानसभा में नेता विपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने भी उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर ध्यान दिलाया है।
आरटीआई कार्यकर्ता एवं समाजसेवी विपिन त्यागी की आरटीआई से मांगी गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2014-15 के दौरान दिल्ली वक्फ बोर्ड को 1,12,50,000 का अनुदान सरकार से मिला था जोकि अगले वर्ष यानी 2015-16 में भी इतना ही था। लेकिन उसके अगले वर्ष 2016-17 में अनुदान में सरकार की तरफ से करीब 25 लाख रुपए की वृद्धि करते हुए हुए 1,37,00,000 कर दिया गया। वर्ष 2017-18 में दिल्ली सरकार ने वक्फ बोर्ड का अनुदान करीब चार गुना बढ़ा कर 4,55,59,000 कर दिया गया। इसके बाद चुनावी वर्ष के बजट 2018-19 में अनुदान को दोगुना बढ़ाकर 8,85,69,000 कर दिया गया है। यह बजट इसलिए बढ़ाया गया था क्योंकि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली के गालिब इंस्टिट्यूट में आयोजित एक कार्यक्रम में ग़ैर सरकारी मस्जिदों के इमाम और मोअज्जिनों को भी वेतन देने की घोषणा की थी। इस चुनावी घोषणा पर अमल करने के लिए ही वक्फ बोर्ड का बजट बेतहाशा बढ़ाया गया है।
चौंकाने वाली बात यह है कि दिल्ली वक्फ बोर्ड का सरकार ने जितना अनुदान बढ़ाया है, उसके अनुपात में बोर्ड का खर्च नहीं बढ़ा है। जबकि इस दौरान बोर्ड का खर्च पहले से घटकर दो तिहाई ही रह गया है। हालांकि बोर्ड ने पिछले पांच सालों के दौरान अपनी आमदनी में भी इजाफा किया है। बोर्ड ने अपनी संपत्तियों आदि का किराया सर्किल रेट पर नए सिरे से तय किया है जिसके कारण बोर्ड आत्मनिर्भर बनने के करीब पहुंच गया है।
आरटीआई कार्यकर्ता विपिन त्यागी का कहना है कि उन्होंने वक्फ बोर्ड से विदेशी चंदे और खर्चों का ब्योरा भी मांगा था लेकिन बोर्ड ने इसकी कोई जानकारी नहीं दी है।

 


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