कार्बी भाषा संरक्षण सिकारी टिस्सौ की दृढ़ इच्छाशक्ति से हो रहा : पीएम मोदी
नई दिल्ली, 28 मार्च (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कार्बी भाषा के संरक्षण की दिशा में सिकारी टिस्सौ के कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि अपनी पहचान को बचाने की उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति की वजह से आज कार्बी भाषा की जानकारियां को लिखित रूप में संरक्षित किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ के 75वें कार्यक्रम में रविवार को कहा कि ‘हमें नया तो पाना है लेकिन पुरातन गँवाना भी नहीं है।’ अगर आज की बेहतरी में नया प्राप्त कर पुराना गंवा दिया तो बच्चों को क्या पता चलेगा कि उनके पास क्या था। इसलिए जरूरी है कि जो हमारे पास है उसका संरक्षण किया जाए। इस क्रम में कार्बी भाषा को बचाने की दिशा में ‘सिकारी टिस्सौ’ के योगदान की प्रशंसा होनी चाहिए।
मोदी ने कहा कि कार्बी आंगलोंग जिले के ‘सिकारी टिस्सौ’ जी पिछले 20 सालों से कार्बी भाषा का डॉक्यूमेंटेशन कर रहे हैं। किसी जमाने में ‘कार्बी आदिवासी’ भाई-बहनों की भाषा ‘कार्बी’ आज मुख्यधारा से गायब हो रही है। लेकिन ‘सिकारी टिस्सौ’ जी ने तय किया कि अपनी इस पहचान को वो बचाएंगे, और आज उनके प्रयासों से कार्बी भाषा की काफी जानकारी लिखित रूप से सुरक्षित की जी रही है। उनके प्रयासों के लिए उन्हें काफी बधाई मिली और वे पुरस्कृत भी हुए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘सिकारी टिस्सौ’ जैसे कई और साधक होंगे जो देश के अन्य हिस्सों में एक काम को लेकर के खपते रहते होंगे, मैं उन सबको भी बधाई देता हूँ। साथ ही उन्होंने कहा कि हमें बहुत परिश्रम के साथ अपने आस-पास मौजूद अथाह सांस्कृतिक धरोहर का संवर्धन करना है, और उसे नई पीढ़ी तक पहुँचाना है।
उल्लेखनीय है कि कार्बी पूर्वोत्तर भारत में असम, मेघालय व अरुणाचल प्रदेश राज्यों में कार्बी समुदाय द्वारा बोली जाने वाली एक भाषा है। इसे मिकिर और आरलेंग भाषा भी कहा जाता है। यह तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार से है लेकिन इस विशाल परिवार के अंदर इसका आगे का वर्गीकरण अस्पष्ट है। इसे अधिकतर असमिया लिपि में लिखा जाता है, हालांकि कुछ हद तक रोमन लिपि भी प्रायोगिक है।