करतारपुर कॉरिडोर, 16 अक्टूबर (हि.स.)। वह दिन अब दूर नहीं जब भारतीय श्रद्धालु, विशेषकर सिख समाज की बहु प्रतीक्षित आस पूरी होने वाली है। देश विभाजन के बाद से ही सिख समाज उन पवित्र गुरुद्वारों पर मत्था टेकने की अरदास करता आ रहा है, जो पाकिस्तान में रह गए। उनमें से भी वे गुरुद्वारे सिखों के लिए बहुत महत्व के हैं, जिनके साथ गुरुओं का स्मृति जुड़ी है। इन्हीं में से सबसे प्रमुख है करतारपुर साहिब गुरुद्वारा। यहां सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए और यहीं समाधि भी ली।
भारत पाकिस्तान के बीच हुए समझौते के बाद अब भारतीय श्रद्धालु आठ नवम्बर के बाद से इस पवित्र गुरुद्वारे की यात्रा कर सकेंगे। मत्था टेक सकेंगे, अरदास कर सकेंगे। गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव पर मिलने जा रहे इस ऐतिहासिक तोहफे को लेकर सिख समाज में अत्यंत उत्साह और हर्ष का माहौल है। जहां इन दिनों करतारपुर गलियारे का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है, वहां अभी से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की आवाजाही इन बातों का संकेत है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी आठ नवम्बर को अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट डेरा बाबा नानक में एक बड़ी सभा करेंगे और गलियारे का उद्घाटन करेंगे। इसी के साथ पहला जत्था भी भारत की सीमा पार कर चार किलोमीटर दूर इस पवित्र गुरुद्वारे का दर्शन करने जाएगा। श्रद्धालुओं के लिए 20 अक्टूबर से रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी, जो एक तरह से ‘पहले आओ पहले पाओ’ की तर्ज पर होगी।
भारत और पाकिस्तान के बीच यात्रा के तौर तरीकों और कायदे कानून को लेकर बातचीत अंतिम दौर में है। सामान्य दिनों में रोजाना 5000 श्रद्धालु दर्शन के लिए जा सकेंगे। प्रत्येक श्रद्धालु से 20 डॉलर शुल्क लिये जाने पर अभी सहमति नहीं बन पाई है। भारत की तरफ से इस गलियारे का निर्माण भी अंतिम दौर में है। सारी तैयारियां हर हाल में 31 अक्टूबर तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए युद्ध स्तर पर दिन रात काम चल रहा है। उधर, पाकिस्तान में निर्माण की गति सुस्त है। उसने सीमा पर बनने वाले पुल का काम चालू भी नहीं किया है लेकिन श्रद्धालुओं के जाने के लिए एक वैकल्पिक सड़क बनाई गई है। भारत की तरफ इस पुल का हिस्सा लगभग बनकर तैयार है। इसके अलावा इस पार श्रद्धालुओं की सुविधाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर का केंद्र बनाया जा रहा है।
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के वर्तमान दौर में सभी की निगाह इस गलियारे पर टिकी हैं। कुछ आशंकाएं भी बनी हुईं हैं। इन सबके बीच अभी दूरबीन से उस पवित्र गुरुद्वारे का दर्शन कर जीवन धन्य मान लेने वालों ने जबसे यह सुना है कि वे उस ड्योढ़ी पर मत्था टेक सकेंगे, उनकी उस आस्था के आगे बाकी चुनौतियां बहुत कमतर नजर आती हैं।