लाखों आदिवासियों को शिक्षा की रोशनी दे चुकी हैं कमली गुमनाम रहकर भी
कोलकाता, 16 फरवरी (हि. स.)। कमली सोरेन एक ऐसा नाम है जो उम्र के आखिरी पड़ाव में पूरे देश के लिए सुर्खियां बनी हुई हैं। हालांकि कई दशकों तक वह गुमनामी की जिंदगी जीते हुए लाखों आदिवासियों को शिक्षा की रोशनी से नहला चुकी हैं। मूल रूप से मालदा जिले के गाजोल तुड़ीमोड़ के पास रहने काली कमली राज्य के जंगलमहल क्षेत्रों में देवी की तरह पूजी जाती हैं। हालांकि वह कमली नाम से कम और “गुरु मां” के नाम से अधिक मशहूर हैं। गाजोल के तुरीमोड़ के पास जाकर कमली सोरेन पूछने पर शायद ही कोई उन्हें पहचाने लेकिन जैसे ही आप गुरु मां कहेंगे, बच्चे से लेकर बूढ़े तक और महिला से लेकर युवा तक हर कोई आपका हाथ पकड़ कर उनके घर तक पहुंचा देगा। वह भी सम्मान के साथ।
अधेड़ उम्र की कमली वैसे तो बहुत अधिक पढ़ी-लिखी नहीं हैं लेकिन उनकी वजह से जंगलों में गुमनामी की जिंदगी जीने वाले आदिवासी परिवार के कई युवक-युवतियां आज न केवल विश्व पटल पर खुद की पहचान स्थापित कर चुके हैं बल्कि गुरु मां की राह पर चलकर अपने समुदाय के लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की बेहतरी के लिए कार्य कर रहे हैं। गणतंत्र दिवस के दिन जैसे ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोरेन के लिए पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा की उसके बाद उनके घर और आश्रम में प्रशंसकों का तांता लगा था। माथे पर तिलक और होठों पर मुस्कान गुरु मां की नियमित भंगिमा है जो किसी को देखकर बिना हिचक हालचाल पूछती हैं।
आदिवासी समुदाय के लिए जीवन समर्पित करने वाली कमली ने गुरु मां बनने की कहानी बताई है। उन्होंने बताया कि पति की मौत के बाद कोटलहाटी गांव में त्रिपाल की छावनी बनाकर रहती थीं। उनके पति धार्मिक व्यक्ति थे और उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए गांव वालों को दीक्षा देना शुरू किया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध आदिवासी कल्याण आश्रम का प्रभार संभालने वाली गुरु मां ने बताया कि जंगल क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदाय को बरगला कर धर्म बदलवा हीं मिशनरीज और मजहबी कट्टरपंथियों का मुख्य मकसद रहा है। उन्हें जब से इसके बारे में पता चला उसके बाद इस समुदाय के लोगों की घर वापसी ही उनका लक्ष्य बन गया है।
कमली ने साफ किया कि वह किसी भी राजनीतिक पार्टी से संबंध नहीं है। उन्हें जब से पद्मश्री का पुरस्कार मिला है उसके बाद आरोप लग रहे हैं कि संघ से संबंध होने की वजह से उन्हें सम्मानित किया गया है। इस बारे में कमली ने कहा कि कभी भी शिष्यों से कोई भी राजनीतिक चर्चा नहीं हुई है और न ही किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि भिक्षाटन और शिक्षा का दान ही उनका मुख्य काम है।