नई दिल्ली, 16 अक्टूबर (हि.स.)। भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों पर सुनवाई कर रही पांच सदस्यीय संविधान बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने आज सोशल मीडिया और आलेखों पर अपनी आपत्ति जताई। जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाकर उनसे इस संविधान बेंच से हटने की मांग की जा रही है। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि ये पोस्ट किसी विशेष जज के खिलाफ नहीं बल्कि संस्थान के खिलाफ है। संविधान बेंच के दूसरे जज जस्टिस एमआर शाह ने भी सोशल मीडिया कैंपेन पर एतराज जताया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी आपत्ति जताते हुए कहा कि आज कल एक पैटर्न चल पड़ा है कि महत्वपूर्ण सुनवाई से दो दिन पहले सोशल मीडिया और वेबसाइट पर आलेख छपता है और उस आलेख के जरिये सुनवाई को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है। उन्होंने कहा कि आजकल कोई भी सोशल मीडिया को गंभीरता से नहीं ले रहा है लेकिन इस पैटर्न को गंभीरता से लेना होगा। वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि सोशल मीडिया पर जो चीजें आ रही हैं उन्हें गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। तब जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि सवाल ये है कि क्या हमें संविधान बेंच में नहीं होना चाहिए। हमने ही इस मामले को बड़ी बेंच को सुनवाई के लिए रेफर किया था।
जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि अगर मैं अपनी ईमानदारी से संतुष्ट हूं तो मैं यह फैसला करने के लिए स्वतंत्र हूं कि मैं इस सुनवाई में रहूं या अलग हो जाऊं। अगर मुझे ऐसा लगेगा कि भगवान के अलावा कोई है, जो मुझे प्रभावित कर सकता है तो मैं पहला व्यक्ति होऊंगा जो सुनवाई से अलग हो जाऊंगा। मैं इस बात से संतुष्ट हूं कि मैं पक्षपाती नहीं हूं। अगर हमारे दिल में थोड़ा भी पक्षपात होगा तो मैं सुनवाई से अलग हो जाऊंगा। मेरी आलोचना हो सकती है, मैं एक हीरो नहीं हो सकता हूं लेकिन मेरी ईमानदारी साफ है, मैं सुनवाई से नहीं हटूंगा।
उल्लेखनीय है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा 24 की व्याख्या करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने आज से सुनवाई शुरु की है। इस बेंच में जस्टिस अरुण मिश्रा के अलावा जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस रविंद्र भट्ट शामिल हैं।