प्रवासियों का दर्द : जेठ की प्रचंड धूप और भूख-प्यास भी नहीं रोक पा रही रास्ता
बेगूसराय, 26 मई (हि.स.)। जेठ की प्रचंड धूप के बीच विभिन्न शहरों में रह रहे प्रवासी अपने घर जाने के लिए लगातार यात्रा कर रहे हैं। उन्हें ना तो भूख-प्यास का डर है और ना ही सूरज की तपिश उनका रास्ता रोक पा रही है। आजादी के बाद पहली ऐसी त्रासदी है जिसमें लोगों का एकमात्र लक्ष्य है किसी तरह अपने घर पहुंचना। बेगूसराय में गंगा नदी पर बने राजेंद्र पुल से लेकर बछवाड़ा तक, रसीदपुर बॉर्डर से लेकर हीरा टोल तक, रोज सैकड़ों प्रवासी पैदल, साइकिल, ठेला, रिक्शा, मालवाहक, ट्रकों और बसों से अपने घर की ओर बेतहाशा भागते जा रहे हैं। कोई देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई से पैदल आ रहा है तो कोई राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से। राहगीरों में गरीबों के शहर कोलकाता और इलेक्ट्रॉनिक सिटी बेंगलुरु से आने वालों की संख्या भी कम नहीं है।
सिकंदराबाद, मुम्बई, बंगाल जैसे जगहों से भूखे-प्यासे हजारों किलोमीटर सफर तय करने की जिद वही कर सकते हैं जिन्हें पेट की भूख से ज्यादा अपने घर लौटने की तड़प हो। दिल्ली से पैदल लौट रहे मजदूरों का कहना है कि सरकार ने ट्रेन की व्यवस्था तो की है लेकिन हर मजदूर ऑनलाइन टिकट कटा पाने में सक्षम नहीं है। राहगीर मजदूरों से बात करने पर पता चलता है कि कोई विजयवाड़ा से तो कोई मुंबई से, कोई हरियाणा-पंजाब से तो कुछ दिल्ली व भोपाल से चले आ रहे हैं, इस उम्मीद के साथ की किसी भी हाल में उन्हें घर पहुंचना है। हालांकि इस दौरान थकान से चूर मजदूरों के चेहरे उनकी हालात बयां करते हैं।
इस भागम-भाग के बीच बेगूसराय में साईं की रसोई टीम के युवा प्रवासियों के लिए देवदूत से कम नहीं हैं। जेठ की जिस चिलचिलाती धूप में लोग घरों से निकलने से परहेज कर रहे हैं, वहीं टीम के युवा खुले आकाश के नीचे सुबह से शाम तक प्रवासियों की सेवा में जुटे हुए हैं। इनकी टीम राजेंद्र पुल सिमरिया, जीरोमाइल से लेकर बछवाड़ा, रसीदपुर और जिला मुख्यालय तक प्रवासियों को दो सप्ताह से लगातार भोजन और पानी उपलब्ध करवा रही है। प्रवासियों की सहायता के लिए इनके पास मदद भी खुद ही पहुंच रही है। बड़ी संख्या में लोग टीम को संबल प्रदान कर रहे हैं, विभिन्न तरह की खाद्य सामग्री उपलब्ध करवा रहे हैं। सेवा का संकल्प लेकर जब लोग किसी की मदद के लिए खड़े होते हैं तो अपना-पराया नहीं होता। मददगार परिचित, अपरिचित, दोस्त, पड़ोसी कोई भी हो सकता है। गिरते हुए हाथ थामना और जरूरतमंदों का सहारा बनना भारतीय संस्कृति की परंपरा रही है। निःस्वार्थ भाव से की गई सेवा एक तरफ आत्मसंतोष का वाहक बनती है, वहीं इससे समाज में संदेश भी अच्छा जाता है।
आंध्रप्रदेश से पैदल आ रहे मजदूरों की भूख से परेशान हालात का तब पता चला जब रास्ते में मददगार हाथों ने भोजन उपलब्ध कराया। ऐसे ही कुछ बंगाल से पांच दिन पहले खाकर चले मजदूरों के साथ भी हुआ, जब उन्हें भोजन और पानी मिला तो उनके चेहरे खिल उठे। साईं की रसोई टीम ने लॉकडाउन के शुरुआती दिनों से ही राहत सामग्री और पका भोजन वितरण का सिलसिला चलाया, जिससे प्रतिदिन सैकड़ों जरूरतमंद लाभान्वित होते आ रहे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग के रास्ते पैदल और ट्रकों पर जैसे तैसे सवार हो भूखे प्यासे घर लौटते प्रवासी मजदूरों को रोक-रोककर भोजन-पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। इस मुहिम के दौरान कुछ प्रवासी मजदूर ऐसे भी थे, जिन्होंने कहा कि बिहार में प्रवेश के बाद पहली बार भोजन मिल पाया है।