नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (हि.स.)। देश को अटल टनल की सौगात देने के बाद दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में से एक जम्मू-कश्मीर में जोजिला-दर्रे के पास गुरुवार को एशिया की सबसे लम्बी सुरंग बनाने का कार्य शुरू हुआ। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए पहला ब्लास्ट किया।
पाकिस्तान की सीमा तक 14.15 किमी. लंबी बनने वाली इस सुरंग से भारत की एलओसी तक रणनीतिक पहुंच मजबूत होगी। यह सुरंग लोगों की आवाजाही आसान करने के साथ ही सेना की रणनीतिक जरूरतों को भी पूरा करेगी, क्योंकि यह सुरंग पूरे साल राजमार्ग को खुला रखने में मदद करेगी। पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा करीब होने से अभी तक इसी इलाके से होने वाली आतंकवादियों की घुसपैठ पर भी काफी हद तक लगाम लग सकेगी।
वैसे तो इस सुरंग के प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार ने अक्टूबर, 2013 में ही मंजूरी दे दी थी लेकिन पांच बार टेंडर निकाले जाने के बावजूद किसी भी एजेंसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। हर बार बोली रद्द होने के बाद मई 2017 में एलएंडटी, इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज, जेपी इंफ्राटेक और रिलायंस इंफ्रा कम्पनियां सामने आईं। टेंडर प्रक्रिया जुलाई 2017 में आईएल एंड एफएस ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क्स लिमिटेड के पक्ष में पूरी हुई। इस फर्म ने 4,899 करोड़ की लागत से सात साल में सुरंग का निर्माण के लिए बोली हासिल की। जनवरी 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भूमि अधिग्रहण लागत सहित 6808.63 करोड़ की लागत से बनने वाली एशिया की सबसे बड़ी 14.2 किलोमीटर की द्वि-दिशात्मक जोजिला-दर्रे की सुरंग को मंजूरी दी। 19 मई, 2018 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के शिलान्यास करने के बाद सुरंग का निर्माण कार्य भी शुरू हो गया। इस बीच मार्च 2019 में सुरंग का निर्माण कर रही कंपनी दिवालिया घोषित हो गई।
इसके बाद फरवरी 2020 में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इस पूरी परियोजना की विस्तार से समीक्षा की। लागत को कम करने और प्राथमिकता पर सुस्त परियोजना को निष्पादित करने के लिए मंत्रालय के महानिदेशक (आरडी) और एसएस आईके पांडे की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह को मामला भेजा। विशेषज्ञ समूह ने परियोजना विन्यास और कार्यान्वयन के तौर-तरीकों का सुझाव दिया, ताकि कम से कम समय और लागत में परियोजना को पूरा किया जा सके। इसलिए जून 2020 में फिर से नए टेंडर निकाले गए। अगस्त 2020 में मेघा इंजीनियरिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने 4509 करोड़ रुपये में बोली हासिल की। इस प्रोजेक्ट के तहत 14.15 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने के अलावा 18.63 किलोमीटर लंबी एप्रोच रोड का निर्माण ढाई साल में किया जाएगा। इस तरह से पूरे प्रोजेक्ट में 32.78 किलोमीटर लम्बी सड़क बनाई जाएगी।
अब जोजिला सुरंग परियोजना मेघा इंजीनियरिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को ईपीसी मोड (इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट, कंस्ट्रक्शन) के तहत सौंपी गई है, जिसमें भारत सरकार पैसा मुहैया कराएगी और निष्पादन एजेंसी निर्माण कार्य करेगी और बाद में परियोजना भारत सरकार को सौंप देगी। 14.15 किमी. यह द्वि-दिशात्मक सड़क सुरंग छह साल में बनकर तैयार होगी, क्योंकि यह दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में से एक है। यहां कुछ क्षेत्रों में तापमान शून्य से 45 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है। इस परियोजना का पश्चिमी सिरा सोनमर्ग से लगभग 15 किलोमीटर पूर्व 3,000 मीटर की ऊंचाई पर बालटाल में है। पूर्वी सिरा मिनरसग में द्रास-कारगिल छोर पर है। पूरी सुरंग श्रीनगर-कारगिल-लेह राजमार्ग पर 11 हजार 578 फीट की ऊंचाई पर होगी। सेना और सिविल इंजीनियरों की टीम जोजिला-दर्रे के पहाड़ को काट कर इस सुरंग का निर्माण करेगी।
इस अत्याधुनिक सुरंग में नवीनतम सुरक्षा विशेषताएं होंगी जैसे वेंटिलेशन सिस्टम, निर्बाध बिजली आपूर्ति, आपातकालीन प्रकाश व्यवस्था, सीसीटीवी निगरानी, संदेश संकेत, यातायात लॉगिंग उपकरण और सुरंग रेडियो सिस्टम। सुरक्षा सुविधाओं में प्रत्येक 125 मीटर पर आपातकालीन टेलीफोन और अग्निशमन अलमारियां, प्रत्येक 250 मीटर पर पैदल यात्री पार मार्ग और प्रत्येक 750 मीटर पर मोटरेबल क्रॉस मार्ग और ले-बाय शामिल होंगे। यह सुरंग श्रीनगर और कारगिल के बीच साल भर सड़क संपर्क सुनिश्चित करेगी क्योंकि वर्तमान में भारी बर्फबारी के कारण लगभग सात महीने (नवम्बर से मई) तक राजमार्ग बंद रहता है। इस टनल के बनने से श्रीनगर, द्रास, करगिल और लेह क्षेत्रों में हर मौसम के लिए कनेक्टिविटी स्थापित हो जाएगी। इसके अलावा श्रीनगर-लेह के बीच यात्रा में लगने वाले समय में 3 घंटे 15 की कमी आएगी। जोजिला टनल केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करेगी।
टनल का निर्माण कार्य ऐसे समय में फिर से शुरू हो रहा है जब पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर चीन से पिछले पांच महीनों से टकराव चल रहा है। यह सुरंग लद्दाखी लोगों के साथ-साथ सेना की भी रणनीतिक जरूरतें पूरी करेगी, क्योंकि पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा (एलओसी) करीब होने से सीमा तक सैन्य वाहनों की सुरक्षित आवाजाही हो सकेगी और सैनिकों को रसद पहुंचाने में दिक्कत नहीं आएगी। इस सुरंग से भारतीय सीमा पर स्थित अग्रिम चौकियों की चौकसी, मुस्तैदी और ताकत काफी बढ़ जाएगी। अभी रक्षा बलों को बर्फबारी के दिनों में कठिन समय का सामना करना पड़ता है। जोजिला-दर्रे के पार सर्दियों के दौरान कारगिल क्षेत्र सबसे रणनीतिक इसलिए है, क्योंकि अतीत में आतंकियों की घुसपैठ यहीं से होती देखी गई है। अब जब यह सुरंग पूरे साल राजमार्ग को खुला रखने में मदद करेगी तो सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ को भी रोकना आसान होगा।