झारखंड : 11 सीटों पर सियासी कुनबे के सामने विरासत बचाने की चुनौती

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झारखंड की 81 में से इस बार 11 सीट ऐसी हैं, जहां से नेता जी खुद विधायक बने, फिर मंत्री बने और समीकरण बिगड़ने पर अपनी पत्नी, बेटी, बेटा और भाई को मैदान में उतारा है।



रांची, 17 दिसम्बर (हि.स.)। झारखंड विधानसभा चुनाव में पिता और पति की राजनीतिक विरासत बचाने के लिए पुत्र- पुत्री, पत्नी सहित पूरा कुनबा दमखम से जुटा हुआ है। परिवारवाद हमेशा से राजनीति का अहम मुद्दा बनता रहा है और देखा गया है कि इसका लाभ भी राजनीतिक दलों को मिला है। झारखंड की 81 में से इस बार 11 सीट ऐसी हैं, जहां से नेता जी खुद विधायक बने, फिर मंत्री बने और समीकरण बिगड़ने पर अपनी पत्नी, बेटी, बेटा और भाई को मैदान में उतारा है।
इस बार भी चुनाव में राजनीतिक परिवार के कई लोगों पर दांव खेला जा रहा है। बड़कागांव, कोलेबिरा, झरिया, मांडू, भवनाथपुर, लिट्टिपाडा, सिल्ली, गोमिया, रामगढ़, लोहरदगा और पांकी सीटों पर पारिवारिक विरासत बचाने की कड़ी चुनौती है। हजारीबाग जिले के बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र में हैट्रिक लगाने का इतिहास पुराना रहा है। महेश राम ने जनसंघ के दीपक छाप पर चुनाव लड़ा और 1964 से 1974 तक लगातार तीन बार विधायक बने। इसके बाद सीपीआई से चुनाव लड़ते हुए रमेंद्र कुमार ने 1979 से 1989 तक लगातार तीन बार जीत कर हैट्रिक लगायी। 1994 में भाजपा ने वहां के लोकनाथ महतो को टिकट दिया। उन्होंने भी विधायकी में हैट्रिक लगायी। उनकी जीत का पहिया 2009 में योगेंद्र साव ने रोक दिया। पहली बार जीतने के बाद योगेंद्र साव सरकार में मंत्री भी बने लेकिन कई विवादों में पड़ने के बाद 2014 में उनकी पत्नी निर्मला देवी ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और जीतीं।
2019 में फिर से एक बार कांग्रेस ने योगेंद्र साव के परिवार पर ही भरोसा जताया है। योगेंद्र साव की एलएलबी बेटी अंबा प्रसाद चुनावी मैदान में हैं। उनके सामने भाजपा से जीत की हैट्रिक लगाने वाले लोकनाथ महतो तो आजसू से सांसद सीपी चौधरी के भाई रोशन लाल चौधरी मैदान में हैं। देखने वाली बात होगी कि अंबा प्रसाद परिवार की जीत की हैट्रिक लगा पाती हैं या विधानसभा के इतिहास को नहीं दोहरा पाती हैं। कोलेबिरा से एनोस एक्का ने जीत की हैट्रिक पहले ही लगा रखी है लेकिन पारा शिक्षक मनोज कुमार की हत्या के आरोप में उन्हें उम्रकैद की सजा हुई और उनकी विधायकी चली गयी। 2005 में एनोस एक्का ने जनक्रांति पार्टी से विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे, तो 2009 और 2014 में झारखंड पार्टी से चुनाव लड़कर उन्होंने जीत दर्ज की। सजा होने के बाद 2018 के उपचुनाव में एनोस की पत्नी ने पति के विरासत को संभालने की कोशिश की, लेकिन वो कांग्रेस के उम्मीदवार विक्सल कोंगाड़ी से हार गयीं। फिलहाल एनोस एक्का जमानत पर बाहर हैं। उन्होंने परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए अपनी एमबीए बेटी आईरिन एक्का को मौदान में उतारा है।
झरिया विधानसभा में एक ही परिवार की दो बहुएं एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोंक रही हैं। वर्तमान विधायक की पत्नी रागिनी सिंह भाजपा के सिंबल पर चुनावी मैदान में हैं तो उनके चचेरे भाई की पत्नी पूर्णिमा सिंह कांग्रेस के टिकट से चुनावी मैदान में हैं। पिछले चुनाव में इन दोनों के पति एक दूसरे के सामने चुनाव लड़े थे। बाद में भाजपा के टिकट पर विधायक बने संजीव सिंह अपने खिलाफ चुनाव लड़े भाई नीरज सिंह की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं। झरिया विधानसभा सीट पर सिंह मेंशन नाम से प्रसिद्ध इस परिवार का वर्चस्व रहा है। मांडू में तीन भाइयों के बीच महामुकाबला मांडू विधानसभा में एक दूसरे के खिलाफ राज्य के दिग्गज नेता स्व टेकलाल महतो के दोनों बेटे चुनावी मैदान में हैं। वर्तमान विधायक और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से बगावत कर भाजपा के जयप्रकाश भाई पटेल के खिलाफ उनके ही बड़े भाई राम प्रकाश भाई पटेल झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। इन दोनों के खिलाफ इनके अपने चचेरे भाई चंद्रनाथ भाई पटेल बाबूलाल मरांडी की पार्टी से चुनावी मैदान में हैं। टेकलाल महतो ने अपने जीवित रहते ही अपने बड़े बेटे को राम प्रकाश भाई को 2005 में चुनाव लड़ाया था। पर वो हार गये थे। वहीं उनके मरने के बाद जयप्रकाश भाई पटेल पहली बार उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उसके तुरंत बाद 2014 के चुनाव में भी 50 हजार से अधिक वोटों से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उन्होंने अपने चचेरे भाई को ही हराया था, पर समीकरण इस बार अलग है। जयप्रकाश के खिलाफ उनके अपने ही बड़े भाई मैदान में हैं। उनके दलबदल से छवि थोड़ी धूमिल भी हुई है।
इस बार मांडू क्षेत्र से आजसू के टिकट पर तिवारी महतो का भी आना समीकरण को बदल रहा है। भवनाथपुर में पति की लड़ाई पत्नी से सात फेरे लेकर एक-दूसरे का साथ निभाने की कसम लेने वाले मनीष सिंह एवं उनकी पत्नी प्रियंका देवी भवनाथपुर सीट से आमने-सामने हैं। इस सीट पर मुकाबला भानुप्रताप शाही और अनंत प्रताप देव के बीच ही है। तमाड़ सीट अलग लड़ाई का बन रहा गवाह एक के पिता की हत्या की गयी। पिता की हत्या का आरोपित और हत्या कराने का आरोपित और पुत्र, तीनों तमाड़ सीट से विधायक बनने के लिए एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं। वर्तमान विधायक विकास सिंह मुंडा के पिता पूर्व मंत्री रमेश सिंह मुंडा की हत्या एक सभा के दौरान कर दी गयी थी। आरोप है कि राजा पीटर ने हत्या कुंदन पाहन से करायी थी। तीनों चुनावी मैदान में एक दूसरे के खिलाफ हैं। तमाड़ सीट पर इस बार झामुमो के टिकट पर विकास मुंडा लड़ रहे हैं। इन्हें महागठबंधन के उम्मीदवार होने का फायदा है। राजा पीटर और कुंदन पाहन जेल से चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने लिट्टीपाड़ा से विधायक साइमन मरांडी की विरासत संभालने की जिम्मेदारी उनके पुत्र दिनेश विलियम मरांडी को इस क्षेत्र से दी है। रामगढ़ विधानसभा सीट से विधायक और मंत्री रहे चंद्रप्रकाश चौधरी की भी विरासत संभालने की जिम्मेदारी उनकी पत्नी ने उठा ली है। चौधरी इस साल हुए लोकसभा चुनाव में सांसद बन गए, अब उनकी सीट की जिम्मेदारी पत्नी सुनीता चौधरी ने उठा ली है। रामगढ़ सीट से ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) ने सांसद चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी को उम्मीदवार बनाया है।
लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र में भी पूर्व विधायक कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत चुनावी मैदान में हैं। सिल्ली और गोमिया सीट से भी पूर्व विधायक अमित महतो और पूर्व विधायक योगेंद्र प्रसाद महतो की विरासत उन दोनों की पत्नियां ही संभाल रही हैं। दोनों न्यायालय के आदेश के बाद चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित हो चुके हैं। झामुमो ने सिल्ली में पूर्व विधायक अमित महतो की पत्नी सीमा महतो को, जबकि गोमिया से बबीता महतो को फिर से टिकट सौंपा है। दोनों पत्नियां अपने पतियों की राजनीतिक विरासत बचाने में लगी हुई हैं। पलामू जिले के पांकी सीट से भी पूर्व विधायक विदेश सिंह की विरासत उनके पुत्र देवेंद्र सिंह संभाल रहे हैं। बहरहाल, अपने पिता और पति की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए पुत्र, पुत्री, भाई और पत्नियां इस चुनावी समर में पूरा जोर लगाए हुए हैं। हालांकि जनता किसे विरासत सौंपती है, यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चल सकेगा।

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