पटना, 10 अक्टूबर (हि.स.) । बिहार विधानसभा चुनाव के बीच सत्तारूढ़ जदयू में टिकट का खेल जारी है। मीनापुर से जदयू उम्मीदवार का विरोध हुआ तो उन्होंने शनिवार को अपना सिंबल ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह को लौटा दिया। इसके बाद जदयू ने मनोज कुशवाहा से सिंबल लेकर मनोज कुमार को मीनापुर से अपना उम्मीदवार बनाया है। उन्हें पार्टी का सिंबल दे दिया गया है। जदयू कार्यकर्त्ता मनोज कुशवाहा को टिकट देने का विरोध कर रहे थे इसलिए पार्टी को मीनापुर में अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा ।
जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि मनोज कुशवाहा पार्टी के सम्मानित नेता हैं। उनको टिकट देने में गलती हुई है। लिहाजा अब पार्टी सही उम्मीदवार को टिकट दे रही है। ऐसे में जिस मनोज कुशवाहा को पार्टी ने टिकट दिया था, अब उसे वापस ले लिया गया है। उनकी पार्टी में अटूट आस्था है। मनोज कुशवाहा ने शनिवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर अपना सिंबल वापस करने का एलान पहले ही कर दिया था। इस मामले में मनोज कुशवाहा ने कहा कि जब मीनापुर पहुंचकर उन्होंने वहां की जमीनी सच्चाई देखी तो उनके होश उड़ गए। न केवल भाजपा कार्यकर्ता उनके विरोध में खड़े हैं बल्कि उनकी पार्टी जदयू के भी नेताओं और कार्यकर्ताओं के अंदर भी विरोध के स्वर प्रखर हैं। ये ऐसे लोग हैं जो मीनापुर से चुनाव का टिकट चाहते थे। कुशवाहा ने कहा है कि वह कुढ़नी विधानसभा सीट से सिंबल चाहते थे लेकिन वह भाजपा की सीटिंग सीट होने के कारण वहां से पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया। नीतीश कुमार के दबाव में मैं चुनाव लड़ने मीनापुर गया था लेकिन अब मुझे पता चला कि वहां एनडीए एकजुट नहीं है।
मनोज कुशवाहा वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में कुढ़नी सीट से जदयू के उम्मीदवार थे लेकिन उन्हें भाजपा के उम्मीदवार केदार प्रसाद से हार का मुंह देखना पड़ा था। तब नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ थे। लेकिन अब सीटिंग सीट होने के कारण भाजपा के पाले में कुढ़नी विधानसभा सीट है। ऐसे में मनोज कुशवाहा को मीनापुर सीट से चुनाव लड़ने के लिए भेजा गया। लेकिन अब कुशवाहा ने चुनाव लड़ने से पहले ही हाथ खड़े कर दिए हैं। जब उनसे एनडीए की एकजुटता को लेकर सवाल पूछे गए तो उनका कहना था कि बिहार में एनडीए के अंदर एकजुटता की कमी हार का बड़ा कारण बन सकती है। कुशवाहा ने कहा कि अब कुढ़नी की जनता के निर्देश पर वह तय करेंगे कि निर्दलीय चुनाव लड़ा जाए या नहीं।