जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने पर लोकसभा की मुहर

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जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन बिल लोकसभा से पारित



नई दिल्ली, 28 जून (हि.स.)। जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि छह माह बढ़ाने के साथ ही लोकसभा ने इस राज्य में नियंत्रण रेखा पर रह रहे लोगों को भी आरक्षण का लाभ दिए जाने के सरकार के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। गृहमंत्री अमित शाह की ओर से पेश जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि छह माह बढ़ाए जाने संबंधी प्रस्ताव और जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक 2019 पर सदन में चर्चा के बाद इसे मंजूरी दी गई।
लोकसभा में चर्चा का जवाब देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में भारत की ओर से युद्धविराम कर संयुक्त राष्ट्र जाना उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की एक बड़ी भूल थी, जिसकी कीमत आज तक देश भुगत रहा है। उन्होंने ऐसा करते समय तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल को भरोसे में नहीं लिया।
शाह ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा भारत माता की जय और देश की सुरक्षा बनाए रखना है। इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने सुरक्षा बलों की कंपनियों को बढ़ाया, उन्हें अत्याधुनिक बनाया, सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल बनाया। उन्होंने कहा कि सरकार ने देश विरोधी बयानबाजी करने वालों को दी जा रही बेजा सुरक्षा हटाने का निर्णय लिया। उनकी सरकार आंतक पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाए हुए है।
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को लोकतंत्र से धोखा बताने के विपक्ष के आरोप पर शाह ने कहा कि राज्य में 132 बार धारा-356 का उपयोग हुआ, जिसमें से 99 बार कांग्रेस की सरकार थी। शाह ने कहा कि राज्य में अबतक छह बार राज्यपाल और दो बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है। इसके अलावा छह साल तक चुनाव नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि पुरानी सरकारों ने निर्णयों के चलते जनता का विश्वास टूटा है। उनकी सरकार ने स्थानीय स्तर पर पंचायत चुनाव कराने का फैसला किया और सुरक्षित चुनाव कराए। इस दौरान उन्होंने वर्तमान केन्द्र सरकार की ओर से विश्वास बहाली के लिए किए जा रहे कार्यों का जिक्र किया।
चर्चा की शुरुआत में शाह ने कहा कि राज्य में पीडीपी सरकार गिरने के बाद पहले राज्यपाल शासन लगाया गया। इसके बाद सरकार बनाने के लिए होती खरीद-फरोख्त को देखते हुए 21 नवंबर को विधानसभा भंग की गई। 20 दिसंबर को राज्यपाल शासन समाप्त होने के बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया, जिसे तीन जनवरी को संसद ने मंजूरी दी। उन्होंने कहा कि वर्तमान में राज्य में चुनाव कराना संभव नहीं था। रमजान, अमरनाथ यात्रा और बक्कलवाल समुदाय के पलायन के चलते अक्टूबर तक राज्य में चुनाव संभव न देख आयोग ने इसके बाद चुनाव कराने का फैसला लिया है। इसी के चलते दो जुलाई को खत्म होते राष्ट्रपति शासन को छह महीने आगे बढ़ाने का सरकार ने निर्णय लिया है।
लोकसभा में शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर रह रहे लोगों को दिए जा रहे आरक्षण का लाभ सीमा पर रहने वालों को भी दिए जाने संबंधित आरक्षण विधेयक और राष्ट्रपति शासन को छह महीने के लिए आगे जारी रखने के प्रस्ताव पर एक साथ चर्चा की गई थी।
जम्मू-कश्मीर आरक्षण(संशोधन) विधेयक 2019 और राष्ट्रपति शासन बढ़ाए जाने के प्रस्ताव को लोकसभा में ध्वनिमत से पारित किया गया। विपक्ष ने कुछ अन्य आपत्तियों जताते हुए आरक्षण विधेयक का समर्थन किया।
गृहमंत्री ने चर्चा में शुरुआत करते हुए बताया कि आरक्षण संबंधी विधेयक से जम्मू के 70, सांभा के 130 और कठुआ के 232 गांवों के साढ़े तीन लाख लोगों को लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि सीमा पर रहने वाले लोगों और उनके बच्चों को अकसर सीमा पार से होने वाली गोलीबारी का सामना करना पड़ता है। इससे वहां के बच्चों का शिक्षा संबंधित दिक्कतें आती हैं। यह आरक्षण उन्हें लाभ देगा। चर्चा की शुरुआत करते हुए आरएसपी नेता एनके प्रेमचन्द्रन ने कहा कि ‘एक देश एक चुनाव’ की बात करने वाली सरकार को जम्मू-कश्मीर में राज्य विधानसभा के लिए भी लोकसभा के साथ चुनाव कराने चाहिए थे। उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन को एकतरफा और मनमाना निर्णय बताते हुए कहा कि सरकार आने वाले समय में परिसीमन कराकर राज्य की चुनावी स्थिति को बदलना चाहती है। उन्होंने कहा कि राज्य को लेकर राजनीति नहीं करनी चाहिए थे।
आरक्षण विधेयक पर सरकार का समर्थन करते हुए प्रेमचन्द्रन ने कहा कि उन्हें आपत्ती इस बात से है कि सरकार ने इसके लिए अध्यादेश का रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि अध्यादेश दो मार्च को लाया गया और 10 मार्च को लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई। इससे साफ है कि सरकार की अध्यादेश के पीछे राजनीतिक मंशा थी।
कांग्रेस की ओर से मनीष तिवारी ने चर्चा करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर की समस्या पाकिस्तान की ओर से प्रायोजित है। इंदिरा गांधी के बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग किए जाने के बाद से पंजाब और जम्मू-कश्मीर में अलगाव और आतंक की समस्या पैदा हुई। पंजाब में बहुमत की सरकार के साथ मिलकर केन्द्र सरकार ने इस समस्या का समाधान किया। ऐसा की सरकार वर्तमान सरकार को करना चाहिए और आतंक की समस्या से कठोरता से निपटना चाहिए।
वहीं आरक्षण विधेयक पर समर्थन करते हुए तिवारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में सीमा पर रह रहे लोगों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए लेकिन उनका मानना है कि यह काम राज्य सरकार का है। वहां अगर चुनी हुई सरकार इसे विधानसभा में पारित करती तो अधिक बेहतर होता। इस दौरान तिवारी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कश्मीर के लिए इंसानियत, जमूहरियत और इंसानियत की नीति का जिक्र करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार में राज्य में जनता का ‘एलिनेशन’ हो रहा है, जिससे निपटने के लिए सरकार को दो कदम आगे बढ़कर बातचीत करनी होगी।
वहीं सत्ता पक्ष की ओर से पूनम महाजन ने कहा कि वर्तमान सरकार अपनी कई योजनाओं के जरिए कश्मीर के युवाओं को देश से जोड़ने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि कश्मीर जन्नत है और वह नरेन्द्र मोदी की सरकार में ही जन्नत बनी रह सकती है।

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