नई दिल्ली, 21 जनवरी (हि.स.)। जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने और जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान बेंच ने सुनवाई शुरू कर दी है। याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकीलों ने मामले को बड़ी बेंच में भेजने की मांग की। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार इस मामले की सुनवाई बड़ी बेंच में करने के पक्ष में नहीं है। सुनवाई जारी है।
मंगलवार को वरिष्ठ वकील संजय पारिख और दिनेश द्विवेदी ने मामले को बड़ी बेंच में भेजने की मांग की। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि पहले वो वकील अपना पक्ष रखें जो इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने की मांग कर रहे हैं। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार इस मामले की सुनवाई बड़ी बेंच में करने के पक्ष में नहीं है।
उल्लेखनीय है कि 12 दिसम्बर 2019 को सुनवाई के दौरान राजीव धवन ने पांच जजों की बेंच से मामला और बड़ी बेंच में भेजने की मांग की थी। तब जस्टिस रमना ने कहा था कि हम सभी को सुनकर तय करेंगे। 11 नवम्बर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से राजू रामचंद्रन ने कहा कि इस मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप जरूरी है, क्योंकि दिनदहाड़े संवैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण किया गया है।
सुनवाई के दौरान रामचंद्रन ने कहा था कि लोगों की इच्छाओं का कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला। राज्य विधानसभा भंग करने और बिल को लाने के दौरान लोगों की प्रभावी राय नहीं ली गई। संविधान का उल्लंघन किया गया था और राज्य को विभाजित कर दिया गया। ये तब किया गया जब राज्य में धारा 356 के तहत विधानसभा निलंबित रखी गई थी।
रामचंद्रन ने कहा कि राष्ट्रपति शासन के दौरान वैसे बदलाव किए गए जिन्हें बदला नहीं जा सकता है। उन बदलावों की कानूनी वैधता नहीं है। इस पर जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि आप क्या राहत मांग रहे हैं। क्या 370 के आदेश को वापस करने की मांग है। राजू रामचंद्रन ने कहा कि हां, हम न्यायिक वापसी की मांग कर रहे हैं।
रामचंद्रन ने कहा कि धारा 356 का इस्तेमाल तब होता है जब राज्य संविधान के मुताबिक काम करने में अक्षम हो। एसआर बोम्मई के फैसले में धारा 356 के इस्तेमाल के बारे में कोर्ट ने स्पष्ट दिशा-निर्देश दिया है। यह मनमाना और असंवैधानिक नहीं होना चाहिए।