पुनर्विचार याचिका के पक्ष में नहीं है जमीयत उलेमा-ए-हिंद

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राष्ट्रीय कार्यकारिणी की महत्वपूर्ण बैठक में लिया गया फैसला 



नई दिल्ली, 21 नवम्बर (हि.स.)। अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उसके संदर्भ में विचार-विमर्श करने के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की महत्वपूर्ण बैठक आईटीओ स्थित कार्यालय में हुई। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष कारी सैयद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी की अध्यक्षता में संपन्न हुई बैठक में सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या विवाद पर फैसले के संदर्भ में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने या न करने और 5 एकड़ जमीन स्वीकार करने या न करने जैसे मुद्दों पर पूरे देश में चल बहस पर चर्चा की गई।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में देशभर से आए उलेमा और प्रमुख व्यक्तियों व वकीलों ने उचित विचार-विमर्श और चर्चा करके एक प्रस्ताव पारित किया। बैठक में कहा गया है कि वर्तमान स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से इस फैसले में किसी तरह की बेहतरी की अपेक्षा नहीं है। इसलिए जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की कार्यकारिणी इस निर्णय पर पुनर्विचार याचिका दायर करने को उचित नहीं समझती। इसके अलावा बैठक में मौजूदा हालात और वक्फ सम्पत्ति की सुरक्षा और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मस्जिदों में नमाज की इजाज़त देने पर भी विचार-विमर्श किया गया।
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की कार्यकारिणी की बैठक में कहा गया है कि विभिन्न संस्थाओं ने अपने संवैधानीक अधिकार का उपयोग करते हुए रिव्यू पिटिशन दायर करने की राय बना ली है। इसलिए जमीयत उलेमा-ए-हिन्द इसका विरोध नहीं करेगी और आशा करेगी कि ईश्वर न करे कि इसका कोई नकारात्मक परिणाम सामने आए। इसके अलावा बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया है कि मस्जिद का कोई विकल्प नहीं हो सकता। इसलिए बाबरी बस्जिद के बदले में अयोध्या में पांच एकड़ ज़मीन कबूल नहीं करनी चाहिए। कार्यकारिणी की बैठक में बाबरी मस्जिद केस की पैरवी करने वाली सभी संस्थाओं तथा अधीवक्ताओं की सेवा की कद्र करते हुए इनकी प्रशंशा की गई।
बैठक में फैसले के बाद मुसलमानों की तरफ से जो धैर्य और शांतिपूर्ण नागरिक होने का प्रमाण दिया है, उसको बहुत सराहा गया है और आशा की गई है कि है कि मुसलमान भविष्य में भी निराशा के बजाय साहस के साथ काम करेंगे। बैठक में मुसलमानों से नमाज़ की पाबन्दी और मस्जिदों को आबाद रखने का पूरा एहतेमाम करने की बात कही गई है। बैठक में वक्फ के संरक्षण के सम्बंध में भी बात की गई तथा कार्यकारिणी के सदस्यों ने इस बात को माना कि केंद्र तथा राज्य सरकारों के अनचाहे हस्तक्षेप के कारण अवकाफ के केयर-टेकर ऐसे निर्णय लेते हैं, जो कौम तथा मिल्लत के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं। इस केस में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने मुसलमानों के साथ विश्वासघात करते हुए मीर-जाफर की भूमिका अदा की है। ऐसी स्थिति को सामने रखते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की कार्यकारिणी ने एक कमेटी का गठन करने का निर्णय लिया है।

 


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