विश्व पटल पर योग का बढ़ता वर्चस्व .

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योग शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक एवं जीवन ऊर्जा का संवाहक है। योग जीवन शैली बदलकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में दुनिया की मदद कर सकता है।



नई दिल्ली, 20 जून (हि.स.)।भारत ने विश्व को आध्यात्मिक, दार्शनिक तथा वैज्ञानिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। शून्य की तरह अब  योग विश्व को भारत की सबसे बड़ी देन माना जा रहा है। दरअसल, योग एक संपूर्ण जीवन पद्धति है, जिसमें भारतीय जीवन मूल्य यानी संस्कृति समाहित है। शून्य के आधार पर आधुनिक विज्ञान स्थापित हुआ, उसी तरह आधुनिक जीवन का आधार बनता जा रहा है योग।
योग शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक एवं जीवन ऊर्जा का संवाहक है। योग जीवन शैली बदलकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में दुनिया की मदद कर सकता है। याद रहे कि जलवायु परिवर्तन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों में जो गुस्सा देखा जा रहा है और विश्वभर में तेजी से आत्महत्याएं बढ़ रही हैं, उसका एक कारण बदलती जलवायु व अनियंत्रित जीवन शैली है। दुनिया ने इसे समझा और इसके समाधान के लिए उचित साधन के रूप में योग को स्वीकार किया है। योग में मानवता को एकजुट करने की अद्भुत शक्ति है। योग में ज्ञान कर्म और भक्ति का समन्वय है। योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। चाहे किसी भी देश, जाति, धर्म-सम्प्रदाय के व्यक्ति हों, योग सभी में सुस्वास्थ्य एवं सकारात्मक सोच विकसित करता है। योग सामाजिक विषमताओं, मन की निर्बलताओं तथा असाध्य व्याधियों से मुक्ति का सबसे सरल, सहज एवं प्रभावी साधन है। योग व्यक्ति निर्माण से विश्व निर्माण का द्योतक है। मानव चेतना का विज्ञान है। तभी तो प्रसिद्ध योगनिष्ठ एवं पतंजलि योगपीठ के संस्थापक सदस्य स्वामी कर्मवीर ने ‘योग युक्त मानव, रोग मुक्त मानव’ का नारा दिया है।
निःसन्देह तनाव, अवसाद, अशांति व तृष्णाओं से मुक्ति एवं शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य तथा आत्म परिष्कार के लिए योग हर व्यक्ति के लिए सबल साधन के रूप में आत्मसात किया जा रहा है। कभी केवल संतों एवं ग्रंथों तक सीमित रहने वाला योग अपनी वैश्विक महत्ता से दिन प्रतिदिन लोकप्रिय होता जा रहा है। 21 जून को मनाया जाने वाला विश्व योग दिवस योग प्रेमियों के लिए वैश्विक पर्व का रूप धारण कर चुका है। योग को विज्ञान के रूप में, सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना के रूप में तथा वैश्विक सद्भावना व सुस्वास्थ्य के रूप में निरन्तर आत्मसात किया जा रहा है। योग के बढ़ते प्रभाव एवं उसकी उपयोगिता से प्रतिदिन दुनियाभर में करोड़ों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। यहां यह भी विचारणीय है कि योग जो कि शाश्वत मानव कल्याण निधि है, कहीं व्यावसायिक विषय न बन जाए। इसलिए योग की मौलिकता एवं योग के उद्देश्य का ध्यान रखना भी अपेक्षित है। महर्षि पतंजलि ने योग की संपूर्णता को आठ भागों यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के रूप में परिभाषित किया है। योग के प्रथम सोपान यम के अंतर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य का विधान है। दूसरे सोपान के अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्रणिधान आते हैं। आसन, प्राणायाम से शरीर व मन की शुद्धि व स्वास्थ्य की वृद्धि की जा सकती है पर योग की सम्पूर्णता अष्टांग योग में ही है।
आज योग निराश और हताश मानवता को उत्साह, आनंद व ऊर्जा प्रदान कर आशा की परिणीति के रूप में अंगीकार किया जा रहा है। यही कारण है कि 21वीं सदी योग सदी का पर्याय बन रही है। योग स्वास्थ्य एवं चिकित्सा का प्रतीक होने के साथ-साथ सामाजिक संबंधों में मजबूती, प्राणी मात्र के कल्याण की भावना, प्रकृति के प्रति प्रेम तथा विश्वबन्धुत्व का संवाहक है। इसी के चलते तेजी से न सिर्फ भारत अपितु पाश्चात्य जगत और यहां तक की बड़ी संख्या में इस्लामिक देश योग की महत्ता को स्वीकार कर इसे आत्मसात कर रहे हैं। पाश्चात्य जगत में जहां विक्रम ठाकुर का विक्रम योग, बी. के. एस. आयंगर का आयंगर योग, कनाडा में आचार्य संदीप का फ्रीडम योग, अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी का शिल्पा योग, स्वामी रामदेव का योग विज्ञान, स्वामी कर्मवीर का शाश्वत योग विश्वभर में लोकप्रिय होता जा रहा है। आचार्य शंकर के बाद 19वीं सदी तक योग गुप्त विद्या ही रहा। नाथ योगी व महात्माजन आत्मकल्याण व सिद्धि प्राप्ति के लिए योग तप से धन्य होते रहे हैं। स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद योगी, स्वामी शिवानंद सरीखे योग विभूतियों ने योग को विश्व पटल पर पहुंचाने का काम किया। महर्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश तथा बौद्ध धर्म ने भी योग को वैश्विक आयाम प्रदान किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवन उन्नति का मूल मंत्र योग को मानते थे।
योग धर्म एवं संप्रदायों की वर्जनाओं तथा संकीर्ण विद्रूपताओं की सीमाओं से परे की विषय वस्तु है जो इन सीमाओं व अवरोधों को लांघकर विश्व के कोने कोने में स्वास्थ्य, सद्भाव, शांति व मैत्री का संचार कर भारतीय संस्कृति का उद्घोष कर रहा है। योग के जरिए किस प्रकार भारत की सभ्यता व संस्कृति का प्रसार दुनिया के हर कोने में हो रहा है, यह इस आंकड़े को देखकर पता लगता है। भारत ने जब योग को विश्व दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ में रखा तो योग को स्वीकार करने वाले देशों में उत्तरी अमेरिका के 23, दक्षिण अमेरिका के 11, यूरोप के 42, एशिया के 40, अफ्रीका के 46 एवं अन्य 12 देशों ने खुलकर समर्थन दिया। गौर करने वाली बात तो यह है कि ईरान, पाकिस्तान और अरब समेत कुल 47 इस्लामिक देशों ने भी योग के महत्व को समझा और स्वीकार किया। योग एलाइन्स की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 से अमेरिका में 3 करोड़ 60 लाख लोग योग से स्वस्थ रहने के तरीकों को अपना रहे हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के 90 प्रतिशत लोग योग के बारे में जानते हैं, जबकि वर्ष 2012 में 70 प्रतिशत अमेरिकी योग के बारे में जानते थे। योग की लोकप्रियता का दायरा लगभग सभी देशों में बढ़ता जा रहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित कई नामचीन हस्तियां योग को आत्मसात कर लाभ प्राप्त कर रही हैं।
योग विश्व को भारत की वसुधैव कुटुंबकम् की भावना का संदेश पहुंचाने में सक्षम रहा है। तभी तो योग को पूरा विश्व पूरी उदारता के साथ अंगीकार कर रहा है। विश्व पटल पर योग का बढ़ता वर्चस्व भारत की बड़ी सांस्कृतिक विजय है।

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